Saturday, 7 October 2017

देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव





चुनाव एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है परन्तु भारतीय परिपेक्ष में चुनाव केवल प्रक्रिया नहीं बल्कि उत्सव है ये उत्सव पुरे पांच साल देश में कही न कही चलता रहता है और ख़ास बात ये है कि  चुनाव किसी भी राज्य का हो उसके अक्स को महसूस पूरा देश करता है ।
चुनाव चाहे यूपी,बिहार ,दिल्ली,उतराखंड मणिपुर पंजाब ,हरियाणा ,राजस्थान कंही का भी हो चौपालों घरो नुक्कड़ो से लेकर राष्ट्रीय न्यूजो चैनल तक पर चुनावो से पूर्व के अनुमान और बाद के परिणामो पर चर्चा होती है अर्थात राजनैतिक रूप से आम जन में चेतना और सरकारी नीतियों के प्रति पक्ष और विपक्ष सोचने की स्थिथि  चुनाव के माध्यम से अनायास ही बन जाती है । इसी कारण केंद्र में सत्ता पक्ष राज्य चुनावों में सफलता को  अपनी प्रशासनिक और योजनाओ की सफलता से जोड़ता है तो विपक्ष इन चुनावों में सफलता को अपनी बढती लोकप्रियता से जोड़ता है।
अगर सीधे अर्थो में समझे तो ये निरंतर चुनाव देश में राजनैतिक शुन्यता नहीं आने देते। जिस कारण विपक्ष अपनी भूमिका अदा कर पाता है । वैसे भी लोकतंत्र में विपक्ष की अपनी भूमिका है उसका महत्वपूर्ण स्थान है क्योकि बिना विपक्ष की सत्ता तो लोकतांत्रिक तानाशाही के सामान है और विपक्ष ही है जो इस तानाशाही पर लगाम लगाने का कार्य करता है और हर बरस होने वाले चुनाव विपक्ष को अति सक्रिय रहने के लिए ,चुनावी जीत पाने के लिए प्रेरित करते है ।
इसी हर अगले चुनावी रण को जितने के लिए सत्ता उत्तम कार्य करती है ताकि उसी स्वीकार्यता बनी रहे और विपक्ष उसकी गलत नीतियों का विरोध करता है जनता भी अपनी आवाज़ सत्ता के समक्ष पहुचाने के लिए विपक्ष का सहारा लेती है । इन सभ से लोकतंत्र को मजबूती प्राप्त होती है ।
अगर देश में एक साथ चुनाव करा दिए जाते है तो मेरे ख्याल से एक चुनाव से दुसरे चुनाव के मध्य चार  साल के अन्दर राजनैतिक शुन्यता का माहौल  उत्पन होगा तथा सत्ता बिना रोक टोक तानाशाही व्यवहार करने से नहीं चुकेगी ।
हालाकि एक साथ चुनाव करवाने से आर्थिक लाभ अवशय होगा पर इसके लिए लोकतंत्र को कमजोर कर देना ठीक नहीं है

“कल्पित हरित”

Thursday, 21 September 2017

शिक्षण बाज़ार

भारत मे प्राइवेट स्कूली शिक्षा का कारोबार लगभग 8 लाख करोड़ का है तो सरकारी शिक्षा बजट 46 हज़ार करोड़ का जबकि 18 करोड़ मे से 11 करोड़ बच्चे सरकारी स्कूलो मे पढ़ते है। प्राइमरी के 87% और उच्च कक्षाओं के 95% बच्चे प्राइवेट टयुशन लेते है। भारत इस किस्म का शायद एक मात्र ऐसा देश है जिसमे शिक्षा का निजीकरण इस हद तक हो चला है कि ये सबसे मुनाफे वाली इंडस्ट्री बन गयी है। ASSOCHAM कि 2013 कि रिपोर्ट के अनुसार देश मे कोचिंग isdustrइंडस्ट्री 23.4 BILLION कि है जो 2015 तक 50 BILLION पार करेगी जबकि देश मे उच्च  शिक्षा बजट 30 हज़ार करोड़ है।
तो प्रधान मंत्री जिस युवा भारत का जिक्र लगभग हर मंच से करते है और उसके सहारे नए भारत कि कल्पना करते है उस युवा भारत कि आँखों मे कई सपने है चाहे वो नौकरी पाने  का हो या उच्च शिक्षण संस्थान मे प्रवेश लेने का और हर सपना बाज़ार मे बिकने को तैयार है। युवा भारत और उसके अभिभावक हर कीमत पर सपनो  को खरीदना चाहते है। एक मिडिल क्लास अपनी कमाइ का एक तिहाई बच्चो कि शिक्षा पर खर्च करते है।
जब सब कुछ ही दाव पर लगा दिया जाता है और सफलता नजर नहीं आती तो आत्महत्या एकमात्र रास्ता और मौत सबसे सही विकल्प लगने लगता है। जो रोज बढती आत्महत्या कि घटनाओं मे प्रघटित होता है। वैसे हमें कोचिंग से इंडस्ट्री से कोई परेशानी नहीं है। हमारी संवेदना तो शिक्षा के उस model की तरफ है जो युवा भारत को ये विशवास नहीं दिला पा रहा कि अगर आप शिक्षा बाज़ार मे उपभोक्त नहीं बन सकते तब भी आपके सपने पुरे हो सकते है।
इसमें क्या कोई ऐसा रास्ता है जो उच्च शिक्षण संस्थांनो/उच्च पदों के लिए होने वाली दौड़ को बाज़ार से निकाल कर उसे झुग्गियो, झोपड़ियो ,मजदूरी  करने वाले बच्चो और समाज के निम्नतम वर्ग के बीच लाकर खड़ा कर दे । ताकि वे भी सपने देख सके और विपरीत परिस्थितियो मे भी कम से कम उम्मीद कर सके, सपने पुरे होने कि।
समाधान का रास्ता फिर उसी और जाता है जिसका सपना मौजूदा सरकार ने दिखाया है “डिजिटलाइजेशन” जहा ग्लोबल गाँव परिकल्पना नहीं भविष्य कि वास्तविकता है कयोकि हर तबके तक जो अच्छे शिक्षको तक पहुँच नहीं सकते वंहा मुफ्त मे इन्टरनेट से शिक्षक पहुच सकता है। कंप्यूटर के माध्यम से पढ़ा भी जा सकता है और पढाया भी जा सकता है। डिजिटल माध्यमो से कौशल विकास को अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुचाया भी जा सकता है।
परन्तु आवश्यकता जमीनी स्तर तक ऐसा डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की  है जिसमे डिजिटलाइजेशन कि पहुच ग्राम पंचायत स्तर तक हो। वर्तमान आवश्यकताओ को देखते हुए देश के लिए पृथक डिजिटल शिक्षा निति पर विचार होना चाहिए। ताकि हर वो सपना चाहे वो IIT का हो , नौकरी पाने का हो उसके लिए युवा भारत को बाज़ार मे उसे खरीदने न जाना पड़े और वो सपना उसे अपने गाँव/नगर मे बिना किसी कीमत के मौजूद हो सके। इसके लिए प्रयास दोनों यानी केन्द्रीय व जमीनी दोनों स्तर पर आवश्यक है जहा केंद्र और राज्य विभिन्न प्रत्योगी परीक्षाओं/कौशल से सम्बंधित डिजिटल पाठ्यक्रम तैयार करे तथा जमीनी स्तर पर नगर पालिकाए /पंचायत डिजिटल LABs बनवाकर, जिनमे ऐसे कंप्यूटर हो जो तैयार पाठ्यक्रम से लेस हो के माध्यम से इन्हें पहुचाने  का प्रयास करे।
आर्थिक रूप से कोई ग्रामीण या नगरीय इकाई इतनी कमजोर नहीं होगी जो कुछ कंप्यूटर या इन्टरनेट खर्च वहन न कर सके। नियत से कमजोर हो तो हम कह नहीं सकते हो सकता है कई ग्रामीण या नगरीय इकाइयों कि परिस्थितयो अनुसार अन्य महत्वपूर्ण प्रथमिकताए हो पर अधीकतर समर्थ ही है।
शायद इन प्रयासों से हम उस समानता कि तरफ एक कदम बढ़ सके जिसका जिक्र प्रस्तावना से मूलाधिकारो तक विधि निर्माताओ ने किया है।
          “हंगामा खड़ा करना मेरा उद्देश नहीं ,
           कोशिश ये है कि ये तस्वीर बदलनी चाहिए”

कल्पित हरित

Friday, 15 September 2017

POLICE REFORMS


Violence on the name of cow, on the name of beef, on the slogan “BHARAT MATA KI JAI”, communal riots, murder for occupying seat in train, mob lynching, Is India such a violent country that is the question?
NO doubt India is a peaceful country but as you see at crime statics of India. It shows increasing pattern which is an indication that how tendency of violence involve in our society & spoil the ancient culture of humanity & peace.
But whenever you see the debates on national news channels, there is only blame game going on, BJP criticise congress for 10 years of UPA governance and cong try to criticise modi govt.
The question which comes in my mind, that all the violence activities as mention in starting were the result of spontaneous reaction, if anyone or mobs are ready to give these type of reactions, it means they have no fear of  law and this is a failure of policing system, Is the local police is not responsible for it?
Because every violence activity, occurs in any region is done by the local violent peoples, it’s not a one day process to anyone became violent, it takes time, my means to say is that only few peoples are violent in certain region, who is very well known by local police these peoples done some offences then “why we do not put questions and also take actions against the local policing like circle inspectors (CIs), sub inspectors (SI), city SPs etc.”
When our media starts to analyse these offences in such manner , this spread a message in police that action have been taken against us so they try to work in pro active manner not in reactive manner as they do today.
It’s  my personal feeling that it is the most corrupt department and special controversy attached with this department is , AAM AADMI have fear of police because they do nothing wrong while KHAAS AADMI have no fear of police because they do everything wrong, KHAAS AADMI does not mean a rich person it involves, the persons who is relatives or known to some local leader , MLA etc    
Police reforms are very much needed today to stop violence and make a better society which is govern by law & justice.
Moreover, the reason behind the incidents of violence against women is due to worst policing. In which women or any comman man have feared to report harassment against us. Because all knows that police try to dilute the matter and could not registered FIR easily  
Now the time comes in which police change their working attitude so that ordinary people, women etc feels that police is like a friend and help us in every situation and similarly the violent peoples or anyone who does something wrong should be feared with police.
If these types of police reforms comes into the practice this will be very helpful to make safe & better society.


KALPIT HARIT

Saturday, 17 June 2017

चाचा चौधरी

चाचा चौधरी

स्पाइडर मैन,सुपर मैन,बैटमैन कॉमिक्स कि दुनिया से निकले वे किरदार है जिनके पास कुछ अद्वतीय शक्तिया होती है और दुनिया कि भलाई करने ये निकले है
परन्तु ये सभ किरदार विदेशो मे जन्मे जिसमे सर्वप्रथम 1933 मे superman का प्रकाशन अमेरिका comic book  मे हुआ; स्पाइडर मैन का सर्वप्रथम AMAZING FANTASY नामक मे 1961 मे हुआ, इन्ही के समकक्ष भारत मे कई किरदारो ने जैसे तेनालीराम,गोपीचंद आदि भारतीय कॉमिक्स बाजार मे आने लगे। उस दौर मे जब विदेशी सुपर हीरो का बोल बाला था तो उसे चुनौती दी 1971 मे लोटपोट नामक कॉमिक्स मे प्रकाशित हए चाचा चौधरी ने जिन्हें आप भारतीय सुपर हीरो मान सकते है। भारत मे लोकप्रियता मे चाचा जी के आगे ये बड़े दिग्गज कही नहीं टिकते थे।
चाचा चौधरी के किरदार को श्री परमकुमार ने गडा और इसके अतिरिक्त बिन्नी चाची,साबू,rocket कई किरदारों का सृजन किया जिन्हें अपने बचपन मे आपने और हमने भी शायद जिया होगा।
ग्रामीण प्रष्टभूमि के चाचा बड़े चतुर थे और गाँव मे चौधरी उन्हें कहा जाता है जो गाँव के बुजुर्ग और सम्मानीय सज्जन होते है तो चाचा चौधरी अद्वतीय शक्तियो वाले इंसान न होकर एक समझदार व्यक्ति थे जो कई मामलो को अपनी बुद्धिमता से सुलझाते थे।
चाचा चौधरी भारतीय सर्जनशीलता के प्रतिक थे कि आधुनिकता के दौर मे भी सहजता , सरलता,भारतीयता और जमीन से जुड़ाव को लोग पसन्द करते ही है।उनकी कहानिया जमीन से जुडी थी,रोज देखि जा सकने वाली घटनाओ से सम्बंधित थी। ये काल्पनिक न होकर के वास्तविक थी जो कुछ नैतिक संदेश देती थी और पढने वाले बाल मन मे भारतीयता के बीज बोती थी।
आज समाज मे ऐसी सर्जनशीलता कि कमी दिखाई पड़ती है जिस कारण 1971 के बाद चाचा चौधरी जैसा कोई राष्ट्रव्यापी किरदार नहीं बना पर बनेगा भी कैसे जब शिक्षा व्यवसाय बन गयी है जिसमे बचपन से बच्चे को IIT OR AIIMS के सपने दिखा दिए जाते है ये जाने बिना कि वो क्या कर सकता है वो क्या नया रच सकता है।
उम्मीद पर दुनिया कायम है और हमें यकीन है कि हमारी आगे आने वाली पीढ़िया इन विदेशि सुपर हीरो  को नहीं किसी नए भारतीय किरदारों को ही पढेगी जैसे हमने चाचा चौधरी को पढ़ा था।

कल्पित हरित

Wednesday, 17 May 2017

विपक्ष मुक्त भारत

विपक्ष मुक्त भारत
2014 के पशचात यदि बिहार, जहाँ दो धुर विरोधी केवल बी.जे.पी को रोकने के लिए साथ आ गए और दिल्ली जहाँ एक नए राजनैतिक विकल्प के चलते आम आदमी पार्टी को सत्ता मिली; इनके अतिरिक्त लगभग हर चुनाव चाहे वो UP,उतराखंड हो या BMB,DMC असम,मणिपुर हर चुनाव BJP के बढ़ते कद  का गवाह बना। UP, DMC उतराखंड आदि मे मिली प्रचंड जीते और देश के मानचित्र के लगभग 60% मे BJP की सरकारे वर्तमान मे है तो प्रधानमंत्री द्वारा देखा गया कांग्रेस मुक्त भारत का सपना निकट भविष्य मे साकार हो सकता है।
संकट कांग्रेस मुक्त भारत को लेकर नहीं पर कमजोर होती विपक्ष कि राजनीत का है जो विपक्ष मुक्त भारत कि और बढ़ चला है वर्तमान मे हर राजनैतिक दल स्वय के आंतरिक संकट से जूझ रहा है और सशक्त विपक्ष के तौर पर काम नहीं कर पा रहा है।
कांग्रेस अपने संघटनात्मक परिवर्तन मे व्यस्त है और कांग्रेस के सामने अपने नेताओ को साथ रखना एक चुनौती है। हाल ही मे जिस तरह बड़े नेता जिनमे रीता बहुगुणा,N.D तिवारी,अरमिन्दर लवली जैसे दिग्गज भी शामिल है BJP मे शिफ्ट हुए है जो शीर्ष नेतृत्व से होते मोह भंग को दर्शाता है। लगातार हर चुनाव मे गिरता प्रदर्शन और पुनः जनता मे विशवास उत्पन करना भी उसके लिए चुनौती है। प्रभावी नेतृत्व और निचले स्तर पर संघटनात्मक ढाचे कि कमजोरी के कारण कोई भी मुद्दा जन आन्दोलन का व्यापक रूप नहीं ले पा रहा है जिस प्रकार पिछली सरकारों मे अन्ना आन्दोलन जैसे जन अन्न्दोलानो ने सरकार को परेशान किया था।
अन्य विपक्षी दलों मे समाजवादी पार्टी बाप-बेटे-चाचा के झगड़ो से बाहर नहीं निकल पा रही है मुलायम जी को लगता है हार कि वजह अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाना तथा कांग्रेस से हाथ मिलाना था तो अखिलेश का कहना है कि ये साथ लम्बा चलेगा। वही चाचा शिवपाल अपनी नयी पार्टी बनाने के मूड मे है। इन्ही के चलते विपक्ष के रूप मे जो मुद्दे उठाने चाहिए वे गौण हो चले है।
जब कोई मुद्दा बन नहीं पा रहा तो सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री जी ने कहा कि गुजरात के सैनिक शहीद क्यो नहीं हो रहे है एसे बयान प्रमाण है कि विपक्ष के तौर पर इनकी स्तिथि कितनी कमजोर है।
BSP मे बयानों का सिलसिला लगातार जारी है और कौन किस को ब्लाक्मैलर साबित कर सकता है इसकी लड़ाई जोरो पर है।
दिल्ली मे बैठी आप के तो आप हाल पूछे ही मत 2015 मे जिस प्रचंड बहुमत के साथ वो आये तो एक नए राजनितिक विकल्प के रूप मे उन्हें देखा जाने लगा और ये वे ही केजरीवाल थे जिनके शपथ ग्रहण मे लोग कह रहे थे आज का CM कल का PM। अपनी महत्वकान्शाओ,पार्टी का विस्तार ,कभी राज्यपाल,कभी मोदी और अपनी आंतरिक कलहो मे पार्टी जनता से दूर होती चली गयी। विधानसभाओ और DMC मे मिली हार ने तो पार्टी के शीर्ष नेतृतव तक मे आपसी मतभेद उत्पन कर दिए कहने का मतलब है कि ये पार्टी भी अपनी परेशानियों से ही जूझ रही है ।
वाही बिहार मे RJD प्रमुख चारे मे फसे है और उनके बेटे-बेटी सम्पति मामले मे रेड का सामना कर रहे है जिसे वह केंद्र कि साजिश बता रहे है और शराबबंदी तथा नोटबंदी पर नितीश और मोदी साथ दिखाई पढ़ते है अर्थात सत्ता मे साथ होते हुए भी लालू नितीश दोनों कि धराए अलग अलग है।
हालांकि विपक्ष का थोडा बहुत शोर जो राज्य सभा मे सुनाई पड़ता है वो भी थोड़े समय मे 2018 मे राज्यसभा मे बहुमत के साथ शांत हो जाएगा।
कुल मिलकर कहा जा सकता है कि देश का विपक्ष बेहद कमजोर स्थिति मे है जो लोकतंत्र के लिए एक खराब स्थिति है गांधीजी का मानना था कि लोकतंत्र बहुमत कि तानाशाही है अतः मजबूत लोकतंत्र के लिए सशक्त विपक्ष अति आवश्यक है।
अपने आंतरिक संकटों से जूझ रही विपक्षी पार्टिया किसी भी मुद्दे को व्यापक नहीं बना पा रही है। इस दौर मे आंदोलनों का अभाव भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है। चाहे किसानो कि आत्महत्या का मामला हो या गौरक्षाको का या लोकपाल नियुक्ति का किसी भी मुद्दे पर सरकार को घेरने मे और जन चेतना पैदा करने मे असमर्थ रहा है। कई बार तो सुप्रिम कोर्ट ने सरकार कि कार्यप्रणाली पर सवाल किये है फटकार लगाई है पर विपक्ष हर बार एसे मुद्दों को हतियाने मे असमर्थ रहा है और BJP कि होती लगातार जीते प्रमाण है कि आज भी जनाधार पर उसकी पकड़ मजबूत है। हर जीत सरकार के काम पर जनता के समर्थन का प्रतिक है।
उम्मीद विपक्ष को इस बात से है कि 2019 मे अगर सभ एकजुट हो जाये तो BJP के जनाधार को पछाड़ सकते है पर हाल ही मे हुए (मुख्यत UP) चुनावो मे जिस प्रकार राजनैतिक समीकरण टूटे है उन्होंने ये संकेत दिया है कि भविष्य मे चुनाव जाति,धर्म,ध्रुवीकरण से हटकर विकास VISION और मुद्दों पर आधारित होंगे कयोकि युवा भारत मे सोच बदल रही है बदलती सोच के बीच पारंपरिक राजनीत को भी बदलना होगा। जनहित के मुद्दे उठाने होगे विकास कि बात करनी होगी और मुद्दों के सहारे जुड़ाव जनता से बनाना होगा।
आज जरुरत है विपक्ष को अपनी जिम्मेदारिया समझने कि सशक्त रूप से जनसमस्याओ को उठाने कि यदि विपक्ष जनसमस्याओ को नही उठाएगा तो उसकी लोकतंत्र मे भूमिका रहेगी ही नहीं।
वर्तमान मे BJP और मोदी के बढ़ते कद के सामने पस्त होता विपक्ष अपनी राजनीति नहीं बदलेगा तो संभवता कांग्रेस मुक्त भारत का सपना जल्द ही विपक्ष मुक्त भारतका रूप ले सकता है जो BJP के लिए भले सही स्थिति हो पर लोकतंत्र के लिए कमजोर स्थिति का घोतक होगा।
कल्पित हरित 

Thursday, 11 May 2017

कशमकश

अजीब सी कशमकश है ये-
यहाँ जीने के लिए हर पल मरना पड़ता है
हर सपने को परिस्तिथियों से समझौता करना पड़ता है
टूटे दिल के आखो से निकले अरमानो को तो बस
ग़ालिब के बोल सहलाते है

और ग़ालिब के शेयर हमें याद आते है

Sunday, 16 April 2017

तीन तलाक,निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy)

तीन तलाक,निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy)

तीन तलाक(triple talak),निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy) को लेकर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से चार सवाल पूछे है।
1- क्या तीन तलाक(triple talak),निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy) को सविधान के अनुछेद 25 के अंतर्गत मान्यता दी जा सकती है?                                                   2- धार्मिक स्वतन्त्रता और प्रचार का अधिकार,अनुछेद 14 (समानता के अधिकार) और अनुछेद 21(जीने का अधिकार) के सामान महत्वपूर्ण है?                
3- क्या personal laws अनुछेद 13 के अंतर्गत आता है?                    
4- क्या इन तीनो नियमो कि अनुपालना भारत द्वारा हस्ताक्षर कि गई अंतराष्ट्रीय संधियों के संगत है?
जब भी तीन तलाक कि बात आती है तो सविधान के मुख्यत 14,13,25,44 अनुछेद का अक्सर जीकर होता है; तो सविधान का अनुछेद 13 कहता है कि अगर कोई भी कानून मूल अधिकार का हनन करता हो तो इस आधार पर न्यायालय उसे रद्द कर सकता है I अनुछेद 14 सामानता का मूल अधिकार है और ये सभी नागरिको के लिए विधि के समक्ष समानता को सुनिश्चित करता है
तो सवाल इन्ही को लेकर उठता है कि तीन तलाक(triple talak),निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy) ये एसे नियम है जिन्हें मुस्लिमं पर्सनल लॉ तो मान्यता देता है पर वास्तिविकता मे ये मुस्लिम महिलाओ के समानता के अधिकार का स्पष्ट रूप से हनन करते है। अतः सुप्रिम कोर्ट को इनहे रद्द करना चाहिए। इस पर मुस्लिम लॉ बोर्ड का तर्क ये है कि अनुछेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता और प्रचार का अधिकार देता है जिस आधार पर देश मे कई हिन्दू मुस्लिम पारसी क्रीशचन आदि धर्मो के अपने अपने पर्सनल लॉ है और कोर्ट को धर्म से जुड़े मामले मे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए कयोकि मुस्लिम पर्सनल लॉ पवित्र कुरान पर आधारित है अतः इसमें परिवर्तन कुरान को वापस लिखने के सामान होगा।
मुस्लिम लॉ बोर्ड कि दलील से लगता तो यही है कि उनकी मंशा इसे ख़तम करने कि है ही नहीं और ये बड़ा विचित्र भी लगता है जब आज हमारी पूरी कोशिशे महिला सशक्तिकरण को लेकर है तो इस दौर मे ऐसे कानूनों को तो बिना किसी बहस के ही ख़तम कर दिया जाना चाहिए था और अब खुद मुस्लिम महिलाओ के विरोध के बावजुद आप किसी तरह तीन तलाक आदि को सही साबित करने मे लगे है।यहाँ तक कि अन्य इस्लामिक देशो मे पकिस्तान तक मे भी तीन तलाक मान्य नहीं है I कोई भी सभ्य समाज इसे सवीकार नहीं करेगा कि तीन बार तलाक कह देने के बाद न मात्र का maintenance और आप इस तरह कुछ मिनटों मे आप विवाह बंधन से आजाद हो सकते है उसके बाद न आपको कोई मासिक निर्वाहन निधि (alimony) देनी है कयोकि मुस्लिम पर्सनल लॉ मे इसका प्रावधान नहीं है
ये तीन तलाक का मुद्दा बहस का विषय शाह बानो केस के बाद बना 62 वर्षीय शाह बानो के पति ने उन्हें पांच बचो सहित छोड़ कर दूसरा विवाह कर लिया और तीन तलाक के माध्यम से उन्हें तलाक देकर मुस्लिम लॉ के अनुसार 5400 रुपये देकर उन्हें हर महीने निर्वाहन निधि (alimony) देना बंद कर दिया I 1978 शाह बानो ने सुप्रिम कोर्ट मे केस दायर किया जिसका फैसला 1985 मे शाह बानो के पक्ष मे आया और मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया और इसमें तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने सुप्रिम कोर्ट के इस निर्णय को कमजोर करने के लिए मुस्लिम वुमन एक्ट 1986 पारित कर दिया जिसमे तलाक के केवल 90 दिन तक निर्वाहन निधि (alimony) देने कि बात थी बाद मे इस कानून को एक अन्य मामले मे सुप्रिम कोर्ट ने रद्द कर दिया
परन्तु तभी से एक बहस शुरू हुई सामान नागरिक संहिता (comman civil code) को लेकर जिस पर आज तक सहमती नहीं बन पायी है पर गोवा एक मात्र ऐसा राज्य है जिसमे सामान नागरिक संहिता लागू है I सविधान के अनुचेअद 44 मे सामान नागरिक संहिता (comman civil code) का जिक्र है अर्थात देश मे शादी,तलाक,गोद लेना आदि मामलो मे धर्म से हटकर सभी के लिए सामान कानून होना चाहिए ताकि सभी के लिए समानता को सुनिश्चित किया जा सके

Kalpit harit