“लाफिंग बुद्धा”
ये
बहु प्रचलित चित्र है “लाफिंग बुद्धा” का है। इनके बारे मे मानयत तो ये है कि अगर इनहे सुबह सबसे पहले देखा जाये तो पुरा
दिन खुशहाल जाता है। कयोकि ये हंसती आ़़कृति बिना बोले
बहुत कुछ कहे जाती है।
हाथ
मे पकड़ी, पीठ पर लदी झोली और एक प्याला निर्धनता और भिक्षु साधू होने का प्रतिक है। परन्तु मुख पर एक
बड़ी सी मुस्कान इस बात को इंगित करती है कि वास्तव मे ख़ुशी और सुख धन दौलत के
मोहताज नहीं है। सुख आंतरिक है जो न किसी दोलत से ख़रीदा जा सकता है और इसे प्राप्त करने के
लिए संतुष्टि आवश्यक है कयोकि बिना संतुष्टि के सुख प्राप्त हो नही सकता जैसा कि
चित्र मे दिखाया गया है। कि भिक्षुक होने के बावजूद बुद्धा संतुष्ट है जो मिल जाए उसमे सुखी है और
जितना मिल जाए उसे प्रसाद समझ कर ग्रहण कर लेते है प्याले मे रखा एक लड्डू इस बात
का प्रतिक है कि जो उपर वाले ने दिया है वो ठीक है हमें न जयादा कि चेष्ठा है , न
कुछ खोने का गम है , और न कुछ पाने कि इचछा।
वास्तव
मे जब हम रोज उठकर इनहे देखते है तो लगता है मानो ये हम पर ही हंस रहे हो और हमसे
पुछ रहे हो कि भाई तुम्हारी आवश्यकता जितना तो सभ है तुम्हारे पास फिर भी तुम दुखी
क्यों हो मुझे देखो बिना किसी चीज के भी कितना सुखी हू।
लाफिंग
बुद्धा केवल मूर्ति नहीं है ये कई मायनों मे हमें संकेत देते है कि हमारे पास जो
कुछ भी है वो आवश्यकता अनुसार प्रयाप्त है पर हम उसमे सुखी नहीं है कयोकि हम औरौ
को देखकर सदा चेष्ठा रखते है कि हमें भी वो सभ प्राप्त हो जाये जो औरौ के पास है
और सुविधाओ को पाने मे जीवन खपा देते है (धयान दीजिये सुविधाओ को पाने मे खपा देते
है न कि सुख पाने मे )
जो
सुख अपने पास उपलब्ध साधनों से मिल सकता था हम उसे खो देते है और कभी खुश नही रह
पाते है। और लाफिंग बुद्धा रोज सुबह आपसे कहते है कि बेटा जो तेरे पास अपना है उसमे
सुखी रह वो तेरे लिए प्रयाप्त है और उसी से तुझे ख़ुशी मिल सकती है जैसे मुझे एक
झोली और भिक्षा मे मिले भोजन से मिल रही है।
सन्देश
यही है कि सुख आपके पास ही है और जो आप जिन्दगी भर ढूंढेंगे वो सुविधाए है और ख़ुशी
सुख मे है या सुविधाओ मे ये आप सब का अपना नजरिया हो सकता है पर लाफिंग बुद्धा तो
यही कहते है कि ख़ुशी सुख से मिलेगी न कि सुविधाओ से और सुख संतुष्टि से
।
कल्पित हरित
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