Saturday, 17 June 2017

चाचा चौधरी

चाचा चौधरी

स्पाइडर मैन,सुपर मैन,बैटमैन कॉमिक्स कि दुनिया से निकले वे किरदार है जिनके पास कुछ अद्वतीय शक्तिया होती है और दुनिया कि भलाई करने ये निकले है
परन्तु ये सभ किरदार विदेशो मे जन्मे जिसमे सर्वप्रथम 1933 मे superman का प्रकाशन अमेरिका comic book  मे हुआ; स्पाइडर मैन का सर्वप्रथम AMAZING FANTASY नामक मे 1961 मे हुआ, इन्ही के समकक्ष भारत मे कई किरदारो ने जैसे तेनालीराम,गोपीचंद आदि भारतीय कॉमिक्स बाजार मे आने लगे। उस दौर मे जब विदेशी सुपर हीरो का बोल बाला था तो उसे चुनौती दी 1971 मे लोटपोट नामक कॉमिक्स मे प्रकाशित हए चाचा चौधरी ने जिन्हें आप भारतीय सुपर हीरो मान सकते है। भारत मे लोकप्रियता मे चाचा जी के आगे ये बड़े दिग्गज कही नहीं टिकते थे।
चाचा चौधरी के किरदार को श्री परमकुमार ने गडा और इसके अतिरिक्त बिन्नी चाची,साबू,rocket कई किरदारों का सृजन किया जिन्हें अपने बचपन मे आपने और हमने भी शायद जिया होगा।
ग्रामीण प्रष्टभूमि के चाचा बड़े चतुर थे और गाँव मे चौधरी उन्हें कहा जाता है जो गाँव के बुजुर्ग और सम्मानीय सज्जन होते है तो चाचा चौधरी अद्वतीय शक्तियो वाले इंसान न होकर एक समझदार व्यक्ति थे जो कई मामलो को अपनी बुद्धिमता से सुलझाते थे।
चाचा चौधरी भारतीय सर्जनशीलता के प्रतिक थे कि आधुनिकता के दौर मे भी सहजता , सरलता,भारतीयता और जमीन से जुड़ाव को लोग पसन्द करते ही है।उनकी कहानिया जमीन से जुडी थी,रोज देखि जा सकने वाली घटनाओ से सम्बंधित थी। ये काल्पनिक न होकर के वास्तविक थी जो कुछ नैतिक संदेश देती थी और पढने वाले बाल मन मे भारतीयता के बीज बोती थी।
आज समाज मे ऐसी सर्जनशीलता कि कमी दिखाई पड़ती है जिस कारण 1971 के बाद चाचा चौधरी जैसा कोई राष्ट्रव्यापी किरदार नहीं बना पर बनेगा भी कैसे जब शिक्षा व्यवसाय बन गयी है जिसमे बचपन से बच्चे को IIT OR AIIMS के सपने दिखा दिए जाते है ये जाने बिना कि वो क्या कर सकता है वो क्या नया रच सकता है।
उम्मीद पर दुनिया कायम है और हमें यकीन है कि हमारी आगे आने वाली पीढ़िया इन विदेशि सुपर हीरो  को नहीं किसी नए भारतीय किरदारों को ही पढेगी जैसे हमने चाचा चौधरी को पढ़ा था।

कल्पित हरित

Wednesday, 17 May 2017

विपक्ष मुक्त भारत

विपक्ष मुक्त भारत
2014 के पशचात यदि बिहार, जहाँ दो धुर विरोधी केवल बी.जे.पी को रोकने के लिए साथ आ गए और दिल्ली जहाँ एक नए राजनैतिक विकल्प के चलते आम आदमी पार्टी को सत्ता मिली; इनके अतिरिक्त लगभग हर चुनाव चाहे वो UP,उतराखंड हो या BMB,DMC असम,मणिपुर हर चुनाव BJP के बढ़ते कद  का गवाह बना। UP, DMC उतराखंड आदि मे मिली प्रचंड जीते और देश के मानचित्र के लगभग 60% मे BJP की सरकारे वर्तमान मे है तो प्रधानमंत्री द्वारा देखा गया कांग्रेस मुक्त भारत का सपना निकट भविष्य मे साकार हो सकता है।
संकट कांग्रेस मुक्त भारत को लेकर नहीं पर कमजोर होती विपक्ष कि राजनीत का है जो विपक्ष मुक्त भारत कि और बढ़ चला है वर्तमान मे हर राजनैतिक दल स्वय के आंतरिक संकट से जूझ रहा है और सशक्त विपक्ष के तौर पर काम नहीं कर पा रहा है।
कांग्रेस अपने संघटनात्मक परिवर्तन मे व्यस्त है और कांग्रेस के सामने अपने नेताओ को साथ रखना एक चुनौती है। हाल ही मे जिस तरह बड़े नेता जिनमे रीता बहुगुणा,N.D तिवारी,अरमिन्दर लवली जैसे दिग्गज भी शामिल है BJP मे शिफ्ट हुए है जो शीर्ष नेतृत्व से होते मोह भंग को दर्शाता है। लगातार हर चुनाव मे गिरता प्रदर्शन और पुनः जनता मे विशवास उत्पन करना भी उसके लिए चुनौती है। प्रभावी नेतृत्व और निचले स्तर पर संघटनात्मक ढाचे कि कमजोरी के कारण कोई भी मुद्दा जन आन्दोलन का व्यापक रूप नहीं ले पा रहा है जिस प्रकार पिछली सरकारों मे अन्ना आन्दोलन जैसे जन अन्न्दोलानो ने सरकार को परेशान किया था।
अन्य विपक्षी दलों मे समाजवादी पार्टी बाप-बेटे-चाचा के झगड़ो से बाहर नहीं निकल पा रही है मुलायम जी को लगता है हार कि वजह अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाना तथा कांग्रेस से हाथ मिलाना था तो अखिलेश का कहना है कि ये साथ लम्बा चलेगा। वही चाचा शिवपाल अपनी नयी पार्टी बनाने के मूड मे है। इन्ही के चलते विपक्ष के रूप मे जो मुद्दे उठाने चाहिए वे गौण हो चले है।
जब कोई मुद्दा बन नहीं पा रहा तो सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री जी ने कहा कि गुजरात के सैनिक शहीद क्यो नहीं हो रहे है एसे बयान प्रमाण है कि विपक्ष के तौर पर इनकी स्तिथि कितनी कमजोर है।
BSP मे बयानों का सिलसिला लगातार जारी है और कौन किस को ब्लाक्मैलर साबित कर सकता है इसकी लड़ाई जोरो पर है।
दिल्ली मे बैठी आप के तो आप हाल पूछे ही मत 2015 मे जिस प्रचंड बहुमत के साथ वो आये तो एक नए राजनितिक विकल्प के रूप मे उन्हें देखा जाने लगा और ये वे ही केजरीवाल थे जिनके शपथ ग्रहण मे लोग कह रहे थे आज का CM कल का PM। अपनी महत्वकान्शाओ,पार्टी का विस्तार ,कभी राज्यपाल,कभी मोदी और अपनी आंतरिक कलहो मे पार्टी जनता से दूर होती चली गयी। विधानसभाओ और DMC मे मिली हार ने तो पार्टी के शीर्ष नेतृतव तक मे आपसी मतभेद उत्पन कर दिए कहने का मतलब है कि ये पार्टी भी अपनी परेशानियों से ही जूझ रही है ।
वाही बिहार मे RJD प्रमुख चारे मे फसे है और उनके बेटे-बेटी सम्पति मामले मे रेड का सामना कर रहे है जिसे वह केंद्र कि साजिश बता रहे है और शराबबंदी तथा नोटबंदी पर नितीश और मोदी साथ दिखाई पढ़ते है अर्थात सत्ता मे साथ होते हुए भी लालू नितीश दोनों कि धराए अलग अलग है।
हालांकि विपक्ष का थोडा बहुत शोर जो राज्य सभा मे सुनाई पड़ता है वो भी थोड़े समय मे 2018 मे राज्यसभा मे बहुमत के साथ शांत हो जाएगा।
कुल मिलकर कहा जा सकता है कि देश का विपक्ष बेहद कमजोर स्थिति मे है जो लोकतंत्र के लिए एक खराब स्थिति है गांधीजी का मानना था कि लोकतंत्र बहुमत कि तानाशाही है अतः मजबूत लोकतंत्र के लिए सशक्त विपक्ष अति आवश्यक है।
अपने आंतरिक संकटों से जूझ रही विपक्षी पार्टिया किसी भी मुद्दे को व्यापक नहीं बना पा रही है। इस दौर मे आंदोलनों का अभाव भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है। चाहे किसानो कि आत्महत्या का मामला हो या गौरक्षाको का या लोकपाल नियुक्ति का किसी भी मुद्दे पर सरकार को घेरने मे और जन चेतना पैदा करने मे असमर्थ रहा है। कई बार तो सुप्रिम कोर्ट ने सरकार कि कार्यप्रणाली पर सवाल किये है फटकार लगाई है पर विपक्ष हर बार एसे मुद्दों को हतियाने मे असमर्थ रहा है और BJP कि होती लगातार जीते प्रमाण है कि आज भी जनाधार पर उसकी पकड़ मजबूत है। हर जीत सरकार के काम पर जनता के समर्थन का प्रतिक है।
उम्मीद विपक्ष को इस बात से है कि 2019 मे अगर सभ एकजुट हो जाये तो BJP के जनाधार को पछाड़ सकते है पर हाल ही मे हुए (मुख्यत UP) चुनावो मे जिस प्रकार राजनैतिक समीकरण टूटे है उन्होंने ये संकेत दिया है कि भविष्य मे चुनाव जाति,धर्म,ध्रुवीकरण से हटकर विकास VISION और मुद्दों पर आधारित होंगे कयोकि युवा भारत मे सोच बदल रही है बदलती सोच के बीच पारंपरिक राजनीत को भी बदलना होगा। जनहित के मुद्दे उठाने होगे विकास कि बात करनी होगी और मुद्दों के सहारे जुड़ाव जनता से बनाना होगा।
आज जरुरत है विपक्ष को अपनी जिम्मेदारिया समझने कि सशक्त रूप से जनसमस्याओ को उठाने कि यदि विपक्ष जनसमस्याओ को नही उठाएगा तो उसकी लोकतंत्र मे भूमिका रहेगी ही नहीं।
वर्तमान मे BJP और मोदी के बढ़ते कद के सामने पस्त होता विपक्ष अपनी राजनीति नहीं बदलेगा तो संभवता कांग्रेस मुक्त भारत का सपना जल्द ही विपक्ष मुक्त भारतका रूप ले सकता है जो BJP के लिए भले सही स्थिति हो पर लोकतंत्र के लिए कमजोर स्थिति का घोतक होगा।
कल्पित हरित 

Thursday, 11 May 2017

कशमकश

अजीब सी कशमकश है ये-
यहाँ जीने के लिए हर पल मरना पड़ता है
हर सपने को परिस्तिथियों से समझौता करना पड़ता है
टूटे दिल के आखो से निकले अरमानो को तो बस
ग़ालिब के बोल सहलाते है

और ग़ालिब के शेयर हमें याद आते है

Sunday, 16 April 2017

तीन तलाक,निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy)

तीन तलाक,निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy)

तीन तलाक(triple talak),निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy) को लेकर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से चार सवाल पूछे है।
1- क्या तीन तलाक(triple talak),निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy) को सविधान के अनुछेद 25 के अंतर्गत मान्यता दी जा सकती है?                                                   2- धार्मिक स्वतन्त्रता और प्रचार का अधिकार,अनुछेद 14 (समानता के अधिकार) और अनुछेद 21(जीने का अधिकार) के सामान महत्वपूर्ण है?                
3- क्या personal laws अनुछेद 13 के अंतर्गत आता है?                    
4- क्या इन तीनो नियमो कि अनुपालना भारत द्वारा हस्ताक्षर कि गई अंतराष्ट्रीय संधियों के संगत है?
जब भी तीन तलाक कि बात आती है तो सविधान के मुख्यत 14,13,25,44 अनुछेद का अक्सर जीकर होता है; तो सविधान का अनुछेद 13 कहता है कि अगर कोई भी कानून मूल अधिकार का हनन करता हो तो इस आधार पर न्यायालय उसे रद्द कर सकता है I अनुछेद 14 सामानता का मूल अधिकार है और ये सभी नागरिको के लिए विधि के समक्ष समानता को सुनिश्चित करता है
तो सवाल इन्ही को लेकर उठता है कि तीन तलाक(triple talak),निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy) ये एसे नियम है जिन्हें मुस्लिमं पर्सनल लॉ तो मान्यता देता है पर वास्तिविकता मे ये मुस्लिम महिलाओ के समानता के अधिकार का स्पष्ट रूप से हनन करते है। अतः सुप्रिम कोर्ट को इनहे रद्द करना चाहिए। इस पर मुस्लिम लॉ बोर्ड का तर्क ये है कि अनुछेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता और प्रचार का अधिकार देता है जिस आधार पर देश मे कई हिन्दू मुस्लिम पारसी क्रीशचन आदि धर्मो के अपने अपने पर्सनल लॉ है और कोर्ट को धर्म से जुड़े मामले मे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए कयोकि मुस्लिम पर्सनल लॉ पवित्र कुरान पर आधारित है अतः इसमें परिवर्तन कुरान को वापस लिखने के सामान होगा।
मुस्लिम लॉ बोर्ड कि दलील से लगता तो यही है कि उनकी मंशा इसे ख़तम करने कि है ही नहीं और ये बड़ा विचित्र भी लगता है जब आज हमारी पूरी कोशिशे महिला सशक्तिकरण को लेकर है तो इस दौर मे ऐसे कानूनों को तो बिना किसी बहस के ही ख़तम कर दिया जाना चाहिए था और अब खुद मुस्लिम महिलाओ के विरोध के बावजुद आप किसी तरह तीन तलाक आदि को सही साबित करने मे लगे है।यहाँ तक कि अन्य इस्लामिक देशो मे पकिस्तान तक मे भी तीन तलाक मान्य नहीं है I कोई भी सभ्य समाज इसे सवीकार नहीं करेगा कि तीन बार तलाक कह देने के बाद न मात्र का maintenance और आप इस तरह कुछ मिनटों मे आप विवाह बंधन से आजाद हो सकते है उसके बाद न आपको कोई मासिक निर्वाहन निधि (alimony) देनी है कयोकि मुस्लिम पर्सनल लॉ मे इसका प्रावधान नहीं है
ये तीन तलाक का मुद्दा बहस का विषय शाह बानो केस के बाद बना 62 वर्षीय शाह बानो के पति ने उन्हें पांच बचो सहित छोड़ कर दूसरा विवाह कर लिया और तीन तलाक के माध्यम से उन्हें तलाक देकर मुस्लिम लॉ के अनुसार 5400 रुपये देकर उन्हें हर महीने निर्वाहन निधि (alimony) देना बंद कर दिया I 1978 शाह बानो ने सुप्रिम कोर्ट मे केस दायर किया जिसका फैसला 1985 मे शाह बानो के पक्ष मे आया और मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया और इसमें तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने सुप्रिम कोर्ट के इस निर्णय को कमजोर करने के लिए मुस्लिम वुमन एक्ट 1986 पारित कर दिया जिसमे तलाक के केवल 90 दिन तक निर्वाहन निधि (alimony) देने कि बात थी बाद मे इस कानून को एक अन्य मामले मे सुप्रिम कोर्ट ने रद्द कर दिया
परन्तु तभी से एक बहस शुरू हुई सामान नागरिक संहिता (comman civil code) को लेकर जिस पर आज तक सहमती नहीं बन पायी है पर गोवा एक मात्र ऐसा राज्य है जिसमे सामान नागरिक संहिता लागू है I सविधान के अनुचेअद 44 मे सामान नागरिक संहिता (comman civil code) का जिक्र है अर्थात देश मे शादी,तलाक,गोद लेना आदि मामलो मे धर्म से हटकर सभी के लिए सामान कानून होना चाहिए ताकि सभी के लिए समानता को सुनिश्चित किया जा सके

Kalpit harit
  

Sunday, 12 March 2017

राष्ट्रवाद और देशद्रोह

हम भारत के लोगये पंक्तिया तो भारत के संविधान कि प्रस्तावना मे सबसे पहली पंक्ति है। जो कहती है कि हम सभ भारत के लोग है तो फिर उठती आजादी कि मांग और लगते देशद्रोह के आरोपों का मतलब है क्या!
आज के दौर मे कोई उपनिवेशिक सरकार भारत मे नहीं है बल्कि लोकतान्त्रिक प्रणाली है तो आपको विरोध का पूरा अधिकार है फिर भी जब गुरमेहर सरीखी कोई लड़की सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरे पोस्ट करती है तो उसे देशद्रोही कह दिया जात है। ये कहने वाले वे ही लोग है जो उमर खालिद के रामजस आने पर हिंसा भी खूब करते है।
 मै खुद व्यक्तिगत रूप से गुरमेहर के पोस्ट और रामजस मे खालिद का समर्थन नहीं करता और इसका विरोध करने वालो कि भावनाओ को भी गलत नहीं मानता पर सवाल ये है कि अगर कोई आपके विचारो से सहमत न हो तो उसे अराष्ट्रवादी(antinationalist) कह देना और हिंसा करने मे भी कोइ परहेज़ न करना ये किस तरह का राष्ट्रवाद(nationalist) है आप अपनी अभिव्यक्ति कि आजादी के नाम पर किसी को अराष्ट्रवादी कैसे बता सकते है कयोकि अभिव्यक्ति के कुछ दायरे है जिसमे आपकी बातो से अन्य किसी कि भावनाए आहात नहीं होनी चाहिए और दूसरा महत्वपूर्ण सवाल ये है कि क्या राष्ट्रवाद के नाम पर हिंसा जायज है
यूनिवर्सिटीज तो वे स्थान है जहा आप वाद विवाद कर सकते है अपना पक्ष रख सकते है,दुसरो को सुन सकते है और अपनी असहमति जाता सकते है ,अपने निंदको से भी कुछ सीख सकते है और वैसे भी कबीर दास जी ने कहा हैनिंदक नयारे राखिये आँगन कुटीर छवाय ,बिन पानी साबुन के निर्मल करे सुहाय अर्थात लोकतंत्र मे वाद विवाद का महत्त्व क्या होता है ये आप यही सीखेगे कयोकि यही से पढ़कर आप के हाथो मे देश का भविष्य होगा और राष्ट्रीय राजनीत मे आप दिखाई देंगे परन्तु अगर आप यहाँ से ही ये सीखेगे कि अपने विरोधियो को कुचल दो ,विरोध कि आवाजों को अराष्ट्रवादी कह दो तो भारत कि एकता और अखंडता आपके हाथो मे सुरक्षित रह पाएगी?
यहाँ मै एक कविता का जिक्र करना चाहता हु :-
ये पंक्तिया रेशमी नगर नाम कि कविता कि है जिसे राष्ट्रीय कवि दिनकर ने नेहरू कि सत्ता के विरोध मे लिखा था और नेहरु जी के कहने पर ही दिनकर जी ने इस कविता का पाठ देश कि संसद मे किया था अर्थात उस समय अपने विरोधियो को सुना जात था और विरोध को समझने का प्रयास होता था न कि विरोधियो को अराष्ट्रवादी कहकर विरोध को दबा दिया जाता था।
हमें यहाँ समझ लेना चाहिए कि देश मे रहने वाला प्रत्येअक नागरिक राष्ट्रवादी है और कोई भी राष्ट्रविरोधी नहीं हैपरन्तु आज के दौर मे सत्ता अपने को राष्ट्रवादी बताना और दुसरो को अराष्ट्रवादी बताना चाहती है ताकि उनकी तरफ लोगो का भावनात्मक जुडाव हो सके जिसका फायदा चुनाव मे उन्हें मिले और शायद ये देश कि राजनीति मे पहली बार होगा जब राष्ट्रवाद को भी वोट पाने का हथकंडा बनाया जा रहा है
इस देश मे पैदा होने वाला हर व्यक्ति शुरू से राष्ट्रवादी है हर किसी को राष्ट्र से प्रेंम  है और हमें बताने कि जरुरत नहीं कि जन गन मन सुनते ही खड़े होना है ये संस्कार बचपन से हमारे अन्दर बोये जाते है एसे देश भक्ति से भरे देश मे हरियाणा के मंत्री अनिल विज कहते है कि अगर आप गुरमेहर का समर्थन करते है तो आप pro Pakistani है और JNU मे ABVP  के साथ खड़े होकर गायक अभिजीत कहते है कि इन लोगो को हम यही ठोक देंगे और इन बातो के बावजूद इनके ऊपर कोई एक्शन नहीं होता, तथाकथित राष्ट्रवादी इनका विरोध भी नहीं करते कयोकि अभिजीत ABVP के साथ खड़े है तो उनको कुछ भी कहने का हक है तो अब आप सोचिये एक छात्र जो इस देश का नागरिक है उससे प्रेंम करता है अगर केवल इस वजह से अराष्ट्रवादी कह दिया जाये कयोकि वह social media पे उस पोस्ट का समर्थन करता जिससे आप सहमत नहीं है तो ये कहाँ का लोकतंत्र हुआ और कैसा एक तरफ़ा राष्ट्रवाद है?
देशद्रोह कानून कि अगर बात करे तो ये एक उपनिवेशिक कानून है जिसे भारत ने ऐसा का ऐसा अपना लिया जिसके अनुसार सरकार के खिलाफ कुछ लिखना बोलना,छापना देशद्रोह है पर आज तक ब्रिटेन ने अपने किसी नागरिक पर देशद्रोह नहीं लगाया,अमेरिका और फ्रांस मे भी देशद्रोह कानून है पर वो केवल गैर नागरिकों के लिए है सुप्रिम कोर्ट ने अपनी देश्द्रोह कि व्याख्या मे कहा है जिससे हिंसा हो वो देशद्रोह मे आता है तो ध्यान दीजिये कि रामजस मे जिन्होंने हिंसा कि वे ही राष्ट्रवादी होने का दावा करते है और दुसरो को अराष्ट्रवादी बता रहे है
अतः राष्ट्रवाद को राजनीतिक हथियार कि तरह उपयोग नहीं किया जाना चाहिए और देश मे हर नागरिक जन्म से राष्ट्रवादी है और जो हिंसा करते है और आतंकियों का साथ देते है वो वास्तव मे अराष्ट्रवादी है और इनका व्यापक विरोध होना चाहिए पर आप से असहमत होने पर किसी को भी अराष्ट्रवादी कह देना किसी भी तरह से सही नहीं है   


Thursday, 2 February 2017

“दंगल 2”

दंगल 2

वैसे तो पांच राज्यों मे चुनाव का बिगुल बज चूका है और सभी दल अपनी- अपनी बिसाद भी बीछाने लग गए है। पर इन सभी मे सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है तो उत्तर प्रदेश का ही है कयोकि भारतीय राजनीति मे उत्तर प्रदेश एक एसा गड है जिसे फतह किये बिना केंद्र कि सत्ता मे काबिज होना मुश्किल है।
तो ये चुनाव भविष्य कि संभावनाओ का चुनाव भी होगा। इस चुनाव के नतीजे इस बात का संकेत भी देगे कि 2019 के लिए संगठित विपक्ष का चेहरा क्या होगा और उसका नेता होगा कौन। कहते है राजनीति संभावनाओं का खेल है और आज इन्ही संभावनाओं को टटोलने कि कोशिस हम करेगे कि कैसे कैसे समीकरण बन रहे है और किस सोच के साथ कौन सा दल कैसे उन्हें भुना रहा है।
उत्तर प्रदेश मे कई जातिया है और हर राजनीतिक दल इनको target  करते हुए  अपनी रणनीति तय करते है। आकड़ो के अनुसार उत्तर प्रदेश मे:-
मुस्लिम-19%
दलित(SC-ST)- 20-22%
पिछड़ा (OBC)- 45%;  (पिछड़ा वर्ग मे 9% यादव जो कि लगभग 4% है पूरी जनसँख्या का है तथा यादवो के अलावा कुर्मी, नाइ ,मौर्या ,कुशवा आदि लगभग 39%है )
ब्राह्मण-13%
ठाकुर-7%

·       समाजवादी-कांग्रेस गठ्बंधन:-

प्रदेश मे किसी भी तरह मुस्लिम वोट को साधने के लिए ये गठबन्ध किया गया है इनकी नज़र अगड़ा वर्ग(ब्राह्मण-ठाकुर) के लगभग 20-22%और मुस्लिम के 19% वोटो पर है जिसका कुल योग 41%  लगभग होगा और इसी के साथ यदि समाजवादी का पारंपरिक वोटर यादव भी इस मे मिला लिया जाये तो आसानी से दंगल जीता जा सकता है।
इसी बीच परिवार वाद से दूर और साफ छवि वाले के रूप मे अखिलेश ने अपनी छवि को पेश किया जिस कारण उन्होंने कोमी एकता दल के विलय का विरोध किया कयोकि उनकी छवि दागदार थी और उनके साथ खड़े होने से अखिलेश कि साफ़ छवि धूमिल हो सकती थी और अगर अखिलेश कि ये छवि पिछडे वर्ग मे कुछ हद तक सेंध लगा देती है तो ये दंगल का परिणाम काफी हद तक उनके पक्ष मे हो सकता है।
कांग्रेस को शामिल कर बसपा कि तरफ मुस्लिम वोट शिफ्ट न हो जाये और उसे  अपने पक्ष मे रखने का प्रयास हो रहा है। वर्तमान मे कांग्रेस हर उस दल के पीछे खड़े होने को तैयार है जो बीजेपी को रोक सके और अपने दम पर आज चुनाव मे जाने लायक स्थिति मे कांग्रेस है नहीं तो गठबंधन उसकी मज़बूरी भी है और जरुरत भी।
 अगड़ा (ब्राह्मण,ठाकुर)    + मुस्लिम +यादव = समाजवादी-कांग्रेस गठ्बंधन
           
·       बी.जे.पी :-

पिछाडा वर्ग (नॉन यादव) जो कि खुद लगभग 39% है विकास के नाम पर नरेन्द्र मोदी को वोट देगा और इसके साथ अगर ब्राह्मण का 13% भी मिल जाये तो उत्तर प्रदेश मे फतह हो सकती इसके सहारे बी.जे.पी चुनाव के मैदान मे है।
इसी के चलते उत्तर प्रदेश मे बी.जे.पी ने सबसे जयादा ब्राह्मणों को टिकेट दिए है और राम मंदिर का मुद्दा अपने घोषणा पत्र तक मे रखा है ताकि ब्राह्मण वोटो मे सेंध लगाई जा सके और पिछाडा वर्ग(जो कि हिन्दू वर्ग है) को साथ लाने के लिए साधू, साध्वी निरंजन ज्योति ,योगी आदित्य नाथ जी सभी मैदान मे है जो अपने बयानों द्वारा हिन्दू ,मुस्लिम कि बात करते हुए हिन्दू अर्थात पिछडे वर्ग को साथ लाने का प्रयास करेगे ही।
बी.एस.पी से बी.जे.पी मे शामिल हुए प्रदेशा अध्यक्ष केसव प्रसाध मोर्य दलितो मे मोर्य और कुशवा को प्रभावित करेगे इस उद्देश से उनका बी.जे.पी मे आना भी इस लिहाज से लाभप्रद हो सकता कि ये मायावती जी दलित वोटरों मे एक बड़े मोर्य और कुशवा को बी.जे.पी कि तरफ लाकर बी.स.पी का गणित बिगाड़ सकते है।

         पिछाडा (नॉन यादव) + ब्राह्मण = बी.जे.पी
·       बी.एस.पी :-

बी.एस.पी कि पूरी राजनीति ही दलित पर केन्द्रित है जो 20-22% है तो इनका भी मुसलमानों का साथ लिए बिना दंगल मे बेडा पार होना मुश्किल प्रतीत होता है। और इसी कारण मायावती जी ने सबसे जयादा टिकेट मुसलमानों को दिए है और अंसारी बंधुओ(कोमी एकता दल) को भी ये कहते हुए शामिल कर लिया कि इनपर लगे इलज़ाम अभी तक साबित नहीं हुए है।
                दलित+ मुस्लिम = बी.एस.पी      

·       अनुमान:-
1.     प्रस्तुत विवेचना और मेरे अनुमान के अनुसार BSP और समाजवादी गठबंधन दोनों मुस्लिम वोटरों को लुभाने का प्रयास करेगे जिस कारण मुस्लिम वोटो का बिखराव होना संभव है और पूर्ण रूप से किसी के पक्ष ने नही जाएगा।
2.     मुस्लिम वोटो के अलावा देखे तो समाजवादी-कांग्रेस गठबन्ध का अगड़ा+यादव वोट कुल 24% लगभग होता है जो मायावती जी के दलित वोटर 20-22% के सामान ही है इसकी तुलना मे बी.जे.पी का पिछाडा वोटर 39% के साथ इन दोनों से कई ज्यादा है।
3.     इसी के साथ अगर ब्राह्मण वोटर भी गठबंधन और BJP मे बटता है तो उसका फायदा BJP को होगा ही साथ ही अपनी साफ़ छवि और विकास के नाम पर अखिलेश भी BJP के पिछड़े वोटर को प्रभावित कर सकते है।
4.     संभवतः BJP और समाजवादी-कांग्रेस गठबन्ध मे कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है पर मेरे अनुसार कयोकि पिछड़ा वर्ग काफी बड़ा है और उसके ज्यादा बिखराव के आसार भी नही है और वो विकास के नाम पर मोदी जी को वोट देगा और BJP का पलड़ा भारी रहेगा

   

कल्पित हरित             


Sunday, 22 January 2017

प्रकृति

प्रकृति

प्राचीनकाल से ही भारतीय समाज प्रकृति से प्रेम करता है उनसे सदैव प्रकृति से समरसता स्थापित करने का प्रयास किया है। धरती माता, सूर्य , चन्द्र देवता, नदियों मे देवी और पेड़ो मे देवताओ का वास उसके प्रकृति से प्रेम के उदहारण है।
प्रकृति ने मानव को जीवन यापन के लिए पेड़,पोधे,फल,फूल,पानी सब चीजे उपलब्ध करायी परन्तु एक ख़ास बात यह है कि प्रकृति ने हर किसी को कुछ मूल सवभाव प्रदान किये है जिन्हें यदि बदलने का प्रयास किया जाता है तो उसके परिणाम भुगतने भी पड़ेगे और प्रकृति अपनी तरह से अपना बदला भी लेगी ही।  और पर्यावरण जिस तरह आज एक वैशविक समस्या के रूप मे उभर कर आया है वो उसी प्रकृति के मूल स्वभाव को परिवर्तित करने कि कोशिश के नतीजे है।
हमने जिस तरह प्राकर्तिक सम्पदा को नुक्सान पहुचाकर आधुनिक शहरो के नाम पर कंक्रीट के जंगल खड़े करे है उनका ही परिणाम जरा सी बारिश मे शहरो मे होने वाले बाड के हालत है।
भारतीय उपमहादीप के पशचिम मे जो विशाल मरुस्थल है जो राजस्थान मे जैसलमेर,बीकानेर,बाड़मेर,और कुछ जोधपुर और चुरू तक भी है इस मरुस्थल कि जगह कभी टेथिस सागर हुआ करता था ये केसे मरुस्थल मे बदला इस पर भूगोल मे कई थ्योरी है पर मै आज इसके पीछे कि एक पौराणिक कथा का जिक्र करना चाहता हू।
जब भगवान् श्री राम ने लंका जाने के लिए समुद्र से ये प्रार्थना कि कि वो बिना डुबाये वानर सेना को समुद्र पार करने दे पर जब समुद्र देवता नही माने तो तो श्री राम ने समुद्र को सुखाने के लिए बाण कमान पर चढ़ाया उसी समय समुद्र देवता ब्राहमण के रूप मे प्रकट हुए और कहा हे प्रभु प्रकृति ने सभी को एक मूल स्वरुप दिया है जिसमे चाहकर भी हम परिवर्तित नही कर सकते और अगर आप बाण चलायेगे तो जल मे रहने वाले सभी जीव भी नष्ट हो जायेगे क्युकि बाण पर तीर चढ़ चूका था तो उसे वापस नही लिया जा सकता था जिस कारण ये तीर पश्चिम कि तरफ छोड़ दिया गया और विशाल मरुस्थल रेगिस्तान बन गया।  (प्रस्तुत लोककथा का जिक्र रामायण के पांचवे अध्याय सुन्दरकाण्ड मे है)
लोककथा से स्पष्ट है कि प्रकृति ने जब भगवान् के लिए ही अपना मूल सवभाव नही बदला तो फिर हम मानुष होते हुए उसके साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास क्यों कर रहे है।
प्रकृति को भारत के सविधान कि तरह माना जा सकता है जिसमे संशोधन तो संभव है पर मूल ढाचे मे परिवर्तन नही किया जा सकता(सविधान के  मूल ढाचे मे परिवर्तन नही किया जा सकता ये सुप्रीम कोर्ट का निर्णय था, मिर्नावा मिल्स केस 1980 का) पर सविधान के रक्षा के लिए तो सुप्रिमे कोर्ट है पर पर प्रकृति अपना न्याय खुद ही करती है।  और आप भले मुझसे असहमत हो पर प्रकृति कभी अन्याय नही करती आपको देने मे, सबको बराबर देती है और जब अपने साथ हुए छेड़छाड़ का बदला लेती है तो भी इतने विनाशकारी ढंग से लेती है कि आप को मुझ को किसी को नही बक्श्ती; सुनामी ,भूकंप ,जवालामुखी ,बाड ,अकाल ,सुखा ,भूजल मे कमी ,पर्यावरण प्रदुषण ,भू स्खलन ,ग्लेशियर पिघलना ,समुद्र जल स्तर मे व्रह्धि ,और हाल ही मे घोषित नासा द्वारा 2016 सबसे गरम वर्ष ,प्रथ्वी के ओसत  तापमान मे एक डिग्री बढ़ोतरी प्रकृति से किये खिलवाड़ के नतीजे है।
पेड़ ,पोधे आदि ही नही अपितु संसार मे उपस्थित हर एक वस्तु व्यक्ति प्रकृति का भाग है तो बात आती है कि जब हम प्रकृति के भाग है और प्रकृति मे सब का मूल स्वभाव है तो हमारा मूल स्वभाव क्या है कयोकि हम मनुष्य है तो मानवता प्रकृति द्वारा प्रदत हमारा मूल स्वभाव है और जब हमने इसे बदला अर्थात मानवता छोड़ी तो उसके परिणाम भी प्रकृति ने हमें दिखा  दिए है बढ़ता आतंकवाद इसी क्रम मे दिन प्रतिदिन बढती वारदाते इसी मूल सवभाव मे परिवर्तन के नतीजे है।
उदेश्य केवल इतना है कि आप समझ जाइए, प्रकृति के नियमो का पालन कीजिये उसके साथ न छेड़छाड़ कीजिये और न बदलने का प्रयास कीजिये कयोकि जो प्रकृति आपको सब कुछ दे सकती है अपनी खुबसुरती से मोहित कर सकती है वही सबकुछ उजाड़ भी सकती है
इस बारे मे एक प्रचलित कहावत है आपने सुनी होगी :-
    NATURE WILL NEVER CHANGE   

कल्पित हरित