Monday, 8 July 2019

पॉलिश वाला


भैया थोडा आगे तक छोड़ देगे।  सुबह 10 बजे का लगभग वक्त था। सरकारी स्कूलों का समय यही होता है। हाथ में बस्ता और मैली सी शर्ट ,टांके लगी पेंट और पैरों में हवाई चप्पल शायद कोई सरकारी स्कूल का विद्यार्थी होगा जो स्कूल के लिए लेट हो रहा है।
हां जरूर छोड़ देंगे बैठो! स्कूल जा रहे हो, नही। तो फिर कहां , वो जो आगे कचहरी वाली रोड पे जो ऑफिस है वहां, वहां कैसे ,मैं पॉलिश करता हूँ | कहां आफिस के बाहर नहीं आफिस के अन्दर जाकर।
कौन पॉलिश कराता है वहां, साहब लोग करा लेते है। रोज, नहीं कभी कोई कभी कोई,   काली, भूरी दोनो रंग की पॉलिश है तेरे पास। हां दोनो हैं पर मैं सफेद जूतो को भी पानी से बहुत साफ कर देता हूं। मेरे जूते सफेद थे उसने ये देख लिया था। आज शुरूआत यहीं से हो जाये ये समझ कर अपना पहला ग्राहक मुझमे ही तलाशने लगा। कचहरी वाली रोड़ के आगे ही बड़ा पेस्ट ऑफिस वहां नहीं जाता क्या तू। पहले गया था पर वहां घुसने नही देते इसलिए नहीं जाता।
वैसे रहता कहां है, नेहरू नगर, कच्ची बस्ती में , हां वहीं ,परिवार में कौन कौन है, चार भाई और दो बहने, तु सबसे छोटा है क्या, हां, क्या उम्र होगी तेरी, 11 साल का हूं। भाई भी काम पर जाता होगा, सभी जाते है। आप इस तरफ जाओगे क्या नही मूझे दूसरी तरफ जाना है, अच्छा तो मुझे यहीं उतार दो।
इसे सलाह दूं कि स्कूल जाया कर पर ये वास्तविकता से परे एक बेवजह की नसीहत ही होगी दिमाग ने तुरंत दिल के इस तर्क का खंडन कर दिया अक्सर दिमाग के तर्क प्रभावी हुआ करते है। सुन इस रोड़ के आगे से उल्टे हाथ पर जाकर एक बिल्डींग आती है वो देखी है तुने, हां देखी है पता है वहां बहुत सारे लोग आते है, शहर का सबसे बड़ा सरकारी कॉलेज है वो और वहां कोई अंदर जाने से भी नहीं रोकेगा। ठीक है जा आउंगा।
अरे.........अरे........अरे  सुन नाम तो बता जा तेरा बड़ी तेजी से निकल गया शायद ये प्रशन उसने सुना ही नहीं खैर विलियम शैक्सपीयर ने कहा है नाम मे क्या रखा है कुछ भी रख लिजिए” तो फिर पॉलिश वाला ही सही।



कल्पित हरित

Friday, 10 May 2019

BEYOUND THE BOUNDRIES




श्रीलंका में चर्च पर हुए आतंकवादी हमले ने पूरी दुनिया के अंतराष्ट्रीय मंचों को आतंकवाद के मुद्दे पर पुन: सोचने विचारने पर मजबूर किया है।
आतंकवादी हमले पहले भी होते रहे है पर इस बार को हमले का निशान श्रीलंका को  बनाया जाना किसी के भी समझ नही बैठ रहा। कि किस कारण से श्रीलंका को निशाना बनाया गया और इसके जरिए किसे डराने की कोशिश या किस तक आतंकवादी  अपना क्या संदेश पहुंचाना चाहते है। साथ ही दुसरी बात जो इस हमले से उभ कर आयी है कि क्या आतंकवाद अब अपने पांव पसारने की कोशिश में है। नयी जगहों को तलाश कर रहा है वह अपना आकार क्षेत्रीय से वैश्विक करने की फिराक मे है।
इतिहास ग्वाह है आज तक जितना भी आतंकवाद और आतंकवादी संगठन हुए है उनका संघर्ष आसपास कुछ मुल्को तक सीमित रहा है जो कि अपनी विचारधारा को स्थापित करने के लिए सरकारों व अन्य मूल्कों से संघर्षरत रहे है।
दरअसल जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व दो गुटो में बंट गया तथा शीत युद्ध चलने लगे तब उनमें अमेरिका और कई देशो ने दुसरे देशों के उग्रवादी संगठनो को बढावा देकर उन देशों में इसे अपने हित साधने का जरिया बना लिया। इराक में सद्दाम हो चाहे पाकिस्तान में तालिबान या अलकायदा इन संगठनों को पैदा करने में पश्चिमी देशों का ही हाथ रहा जो बाद में उन्ही के लिए मुसीबत साबित हुए।
इस बार आतंकवाद का परिपेक्ष्य कुछ अलग है जिस तरह मुख्यत ISIS उभरा उसने लगभग कई देशो से लोगों को शामिल किया गया। टेक्नोलॉजी का उपयोग कर अपनी विचारधार को फैलाया गया और अब जब अमेरिका ने ईराक से ISIS की समाप्ति की घोषणा की तो श्रीलंका में हमला कर उसने खुद के मौजूद होने का प्रमाण दे दिया।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद पर वैश्विक नीति बनाने का प्रस्ताव रखा है जो आज अत्यंत आवश्यक है। पूर्व में जिस तरह देखा गया है कि कहीं पर भी पनपे किसी आतंकवादी संगठन में सबसे ज्यादा हाथ उसे मिलने वाली विदेशी मदद का होता है। अत कुछ वैश्विक मापदंड तैयार किए जाने चाहिए ताकि ऐसे संगठनो की मदद पर रोक लगे। आज के दौर में किसी क्षेत्रीय उग्रवादी संगठन को उस एक क्षेत्र की समस्या मान कर विश्व का उसपर ध्यान न देना या अन्य देशो द्वारा अपने फायदे हेतु उसे बढवा देना पूरे विश्व के लिए खतरा पैदा करना हो सकता है।
यहां मै दो लागो की बाते quote करना चाहूंगा पहली तो अमेरिका में राष्ट्रपति पद की उम्मीद्वार रही हिलेरी क्लिंटन कि "YOU CAN'T KEEP SNAKES IN YOUR BACKYARD AND EXPECT THEM ONLY TO BITE YOUR NEIGHBOURS.  दुसरी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी की कविता की पंक्तिया “चिंगारी का खेल बुरा होता है “
पहले भी विश्व ऐसे कई दौर देख चुका है जिसमें उग्रवादी लोगो के हाथों मे सत्ता आई तो हिटलर जैसो ने concentration camps मे लोगों का कत्लेआम किया तो सद्दाम हुसैन जैसो ने कैमिकल हथियारों का उपयोग कर हजारों को मौत के घाट उतारा तो लादेन को अमेरिका ने भुगता और अलकायदा और तालिबान जैसो को लगातार भारत आज तक भुगत रहा है परन्तु फिर भी ये सभ किसी न किसी क्षेत्र तक सीमित थे पर ISIS के जरिए आतंकवाद का वैश्विक रूप सामने आया है वह अधिक खतरनाक है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नियम तय होने चाहिए ताकि कोई देश न तो खुद आतंकवाद को हथियार के रूप में उपयोग करे जैसे हमारा पडोसी करता है और नही अन्य देश दुसरे देशो में ऐसे उग्रवादी संगठनों की मदद करे जिससे भविष्य में विश्व के लिए खतरा हो।  

कल्पित हरित

Friday, 8 March 2019

पैसा बोलता है


जिसने खजाना दिया है खोल,उसके बाजाओ ढ़ोल”     90 के दशक मे बनी कई फिल्मों मे under world का पैसा लगा था और उसका प्रभाव उस दौर की फिल्मों मे देखने को भी मिलेगा जिसमे under world don की छवि को महानायक के रूप मे महिमा मंडित करके  दिखाया गया जो इतना प्रभावशाली और शक्तिशाली होता की मुल्को की पुलिस भी उसके सामने कुछ नहीं थी और ये सब दिखाया जाना लाज़मी भी है क्यूकी आखिरकार फिल्मे बनाने मे under world का ही पैसा तो लगा हुआ है | ये उदहारण बताता है कि कैसे पैसे के बल पर हित साधे जाते है पर यहाँ बात बॉलीवुड कि नहीं चुनावी तंत्र कि करने वाले है |
चुनावी लोकतन्त्र पैसे के उस तंत्र पर टीका है जिसका स्त्रोत किसी को नहीं पता | राजनैतिक पार्टियो को चंदा मिलता है जिसके बल पर वे चुनाव मैदान मे उतरती है और पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ती भी है| ADR(association for democratic reform’s) की रिपोर्ट के अनुसार 6 नेशनल पार्टियो ने इलैक्शन कमिशन को जानकारी दी है की 2017-18 मे जो चंदा उन्हे मिला उसके 60% का स्त्रोत क्या है, ये पैसा किसने दिया इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है | राजनैतिक पार्टियो को यदि कोई 20000 से कम चंदा देता है तो देने वाले का नाम बताना आवश्यक नहीं है | 2017-18 मे 694 करोड़ रूपये जो की कुल चंदे का 60% है ऐसे गुमनाम चंदे से आया |
यदि हम मान ले की सभी ने अधिकतम राशि 20000 दान दी तो भी न्यूनतम 347000 दान देने वालो की आवश्यकता होगी और अगर इनमे 20000 से ज्यादा दान देने वालो को भी मिला ले तो आंकड़ा कुछ लाख और बढ़ जाएगा | इतने लोग देश मे राजनैतिक पार्टियो को दान देते है ये मानना थोड़ा मुश्किल है| फिर भी अगर इसे ही सत्य मान लिया जाये तो जो लोकतन्त्र आपको एक वोट  के जरिये बराबरी प्रदान करता है वो इन पार्टियो के सत्ता मे आने पर इन्ही के इर्द गिर्ध सिमट कर रह जाता है| जिसके कारण चुने गए प्रतिनिधियों और शीर्ष स्तर के अधिकारियों का ऐसा नेक्सस तैयार होता है जो भ्रष्टाचार का जनक होता है |
इसके अतिरिक्त चंद लोग जो चंदा देकर सत्ता तक दलो को पहूंचाते है उनका सरकार मे हस्तशेप व कार्यो के लिए दबाव रहता है उन्हे contract देना उनके सभी गलत सही कार्यो को राजनैतिक संरक्षण प्रदान करना सत्ता की मजबूरी बन जाती है | यही मजबूरी सभी तरह के गलत कार्यो चाहे फिर तस्करी हो , अवैध निर्माण हो , कालधन हो उसे रोकने वाली सरकारी मशीनरी को कमजोर बनाती है |
कुल मिलाकर सत्ता मे भ्रष्टाचार , कालधन और अनैतिक कार्यो की जड़े उसी चुनावी तंत्र मे है जो कि पैसे के बल पर लड़े और जीते जाते है | वैसे तो चुनाव आयोग ने एक लोकसभा क्षेत्र मे चुनावी खर्च कि सीमा 50 से 70 लाख तय कर रखी है| ये सीमा असल चुनावी खर्च के सामने कई पीछे रह जाती है |
इस तरह के सिस्टम को रोकने के लिए आजकल चुनावो मे स्टेट फंडिंग कि बाते भी हो रही है जिसमे चंदा लेने कि बजाय पार्टियो को उनके मत प्रतिशत के अनुसार चुनाव लड़ने का खर्चा सरकारी खजाने से दिया जाये ताकि चुनाव मे उपयोग होने वाला हवाला का पैसा , कालधन आदि पर रोक लग सके | इसके भी अपने लाभ व हानिया है जो आजकल बहस का विषय है |
खैर भारत मे चुनाव और चुनाव मे पैसा तो लगातार चलने वाली प्रक्रिया है| अंत 1960 मे आई एक फिल्म “कालाबाजार” के एक गीत कि पंक्तियो के साथ करते है|
“झन झन कि सुनो झंकार,
ये दुनिया है काला बाजार,
ये पैसा बोलता है , ये पैसा बोलता है ”

कल्पित हरित   

Tuesday, 19 February 2019

मेरे पड़ोसी ने कुत्ते पाले


मेरे और मेरे पड़ोसी के बीच जमीन के टुकड़े को लेकर जब से विवाद चलता आ रहा था जब से हमने मकान बनवाया था। असल में अगर किसी भी सरकारी दस्तावेज या local authority के नक्शे में देखा जाए तो उस जमीन पर मालिकाना हक तो मेरा ही था परन्तु मेरा पड़ोसी उसे जबदस्ती हथियाना चाहता था काफी सालों तक मतभेदों का सिलसिला चलता रहा। कभी-कभी इस मुद्दे पे हम बैठ के बात कर लिया करते थे तो कभी कभी बातचीत बंद रहा करती थी। साल बीतते गये और मेरी समृद्धि , सफलतांए आदि बढ़ती गयी परन्तु पड़ोसी हमेशा समृद्धि के मामले मे पीछे ही रहा।
जमीन के उस टुकड़े को कहीं पड़ोसी हथिया न ले इसके लिए हमने बड़े ही काबिल चौकीदार भी रखे हुए थे फिर भी उसके चौकीदारो ने कई बार हिमाकत करके जमीन के हिस्से को हथियाने की हिमाकत कि परन्तु हमारे चौकीदारों के सामने वे टिक नही पाते थे उपर से पूरा महौल्ला भी मेरे पड़ोसी को बार-बार उसकी हरकतों के लिए टोकने लगा, मेरा पड़ोसी समझ गया कि इस तरह से उसे यह जमीन का टुकड़ा हासिल नहीं हो पयेगा।
अब जब हमारे पडोसी की सभी कोशिशे नाकाम होती रही तो उसने अपने घर में चार-पांच कुत्ते पाल लिए और पडोसी के चौकीदारों ने हमे परेशान करने के लिए उन कुत्तों को हमारे घर की तरफ छोड़ना शुरू कर दिया जैसे ही हमारे चौकीदार थोड़े से इधर उधर होते वो मौका मिलते ही किसी कुते को हमारे घर की तरफ छोड दिया करते थे कभी वो कुत्ते हमारे घर के बच्चों को नुकसान पहुंचाया करते थे तो कभी सामान आदि का नुकसान कर दिया करते थे। हमे परेशान करने का ये तरीका हमारे पड़ोसी को बड़ा ही रास आने लगा। एक दिन हमने उसके द्वारा भेजे गये तीन कुत्तों को हमने पकड़ लिया और अपने घर मे कैद कर लिया। इस बात की जानकारी मिलते ही उस पड़ोसी ने बड़ी निचता दिखाते हुए हमारे घर के कुछ बच्चों का अपहरण कर लिया हमारे लिए बच्चों की जान अनमोल थी तो हमने तीनो कुतों को तुरन्त छोड़ दिया।
अब ये तीनों कुते हमारे यहां से छुटकर फिर अपने असली घर में चले गये। अब मेरे पड़ोसी के कुतों ने महौल्लों के जंगली कुतो को भी अपना दोस्त बनाना शुरू कर दिया और मेरे पड़ोसी का घर पूरे महौल्ले के कुतों का प्रमुख अड्डा बन गया पहले तो ये कुते हमे ही परेशान करते थे परन्तु धीरे-धीरे ये कुते पूरे महौल्ले के लिए परेशानी का सबब बनने लगे।
जब महौल्ले वालों ने हमारे पडोसी को कहा की इन कुतो को महौल्ले से बाहर निकाला जाये तो उसने साधनों कमी का बहाना बना दिया महौल्ले वालों ने खुद की भलाई के लिए चंदा इक्ठ्ठा कर उसे दिया कि इससे आप साधनों की व्यवस्था करें और कुतो को महौल्ले से बाहर कर दे। परन्तु ये तरीका हमारे पडोसी को बड़ा अच्छा लगा अब वो कुतो का खौफ दिखा कर महौल्ले वाले से चंदा लेने लगा क्योंकि ये कुते अब उसकी आय का अच्छा जरिया बनने लगे तो उसने कुतो को भगाने के बजाय अच्छी सुविधांए दी उन्हे अच्छे से खिलाने पिलाने लगा ताकि वे और शक्तिशाली हो जाएं।
धीरे -धीरे कुते शक्तिशाली होने लगे और पडोसी के चौकीदार कुतो को रोज घुमाने ले जाते तो कुते अपने मालिक से ज्यादा चौकीदारो के प्रति अधिक वफादार थे चौकीदार जैसा निर्देश देते वैसा ही कुते करते चौकीदारों के इशारों पर वे लोगों को काटते हमारे घर मे आके भी परेशानी उत्पन्न करते और मारे जाते।
अंततः हुआ ये की चौकीदारों और कुतों की शक्तियां इतनी ज्यादा हो गयी की अब वे मालिक को ही खाने को दौड़ने लगे मालिक केवल नाम मात्र का रह गया उसकी चौकीदार और कुतो के सामने कुछ नही चलती थी। वे मालिक के परिवार तक को भी हानि पहुंचाने लगे।
अब मालिक का उनपर कोई कंट्रोल नहीं है वे बिचारा बेबस है क्योंकि जब महौल्ले वालों द्वारा चंदा देने के बावजूद भी उसने कतों को बाहर नही किया तो अब महौल्ले ने भी चंदा देना बंद कर दिया है। आज स्थिति ये है कि चौकीदार जो काम नहीं कर पाते वे कुतो से करवाते है और बदले में चौकीदार खुद ही कुतो की रक्षा करते है दुसरी और मालिक और उसका परिवार बेचारा बेबस पूरे महौल्ले से मुंह छिपाता फिरता है क्योंकि अब उसे कोई चंदा क्या भीख देने को राजी नहीं है।
तो अब आपको इस काल्पनिक कहानी के असली किरदारों से मिलाते है। यहां मेरा पड़ोसी पाकिस्तान है। कुतो का मालिक पाकिस्तान सरकार है और मालिक का परिवार पाकिस्तान की जनता है। पड़ोसी के चौकीदार पाकिस्तान सेना और आईएसआई है और कुते तो कुते ही है पर इस कहानी के परिपेक्ष्य में ये आतंकवादी है।
जमीन जिसे लेकर विवाद है वो कश्मीर है।

NOTE:-
हमाने यहां आतंकवादियो को कुता कहकर, कुता प्रजाति का जो अपमान किया है उसके लिए हम क्षमा प्राथी है।

 कल्पित हरित

Saturday, 1 December 2018

कौन है ये लोग, कहां से आते है ये लोग


"कौन है ये लोग, कहां से आते है ये लोग" फिल्म जॉली एलएलबी का ये डॉयलाग आज उन भारतीय राजनेताओं पर बिल्कुल सटीक बैठता है जो कि धर्म की राजनीति करने में इतने मशगुल है कि उन्हे भगवान भी अब जातियों में बंटे नजर आने लगे है।
नजर आयें भी क्यों न ये उनकी राजनीति को फायदा पहुंचाता है और प्यार व जंग मे सब जायज है। परन्तु दिक्कत आपकी राजनीति से नहीं आपकी रणनीति से है। वे रणनीति जो बन्द कमरों में तय की जाती है जिसमें धर्म के आधार पर जातियों के आधार पर, भडकाउ भाषणों के जरिए अपने दल के पक्ष में माहौल तैयार करने की कोशिश की जाती है।
अगर हिंदु वोट एकत्रित करना है तो राम जी का उपयोग होगा पर हिन्दु वर्ग भी तो कई जातियों में बंटा है जिसमें दलितो में SC/ST एक्ट में परिवर्तन को लेकर गुस्सा है तो इस नाराजगी को दूर करने के लिए बजरंग बली को दलित बता दिया जाए तो क्या बुराई है? जो ब्रहाम्ण नहीं है उसे हिन्दुत्व की व्याख्या करने का कोई हक नही है ये भी कह दिया जाए क्योकि उस वक्त तो आप ब्रहाम्ण बहुल इलाके में सभा को सम्बोधित कर रहे है तो उन्हें रिझाना आवश्यक है। पूरी टीवी डिबेट मे सामने वाले का केवल गोत्र ही बार-बार पूछा जाए और समाने वाला भी अपना गोत्र सही या गलत ढूंढ लाये क्योंकि उसे भी तो अपने आप को असली हिंदु साबित जो करना है। चुनावी घोषणपत्रों में परशुराम बोर्ड़ का जिक्र हो जाए , योजनाओ के फायदे लाभ के इतर व्यक्तिगत हमले मे सबकी दिलचस्पी हो, और चुनाव आते-आते धर्म संसद राम मंदिर की हुंकार भरती नजर आए। राष्ट्रवाद को चुनावी पैंतरा बना दिया जाए और भारत माता की जय कहने तक का उपयोग चुनावी सभा से इसलिए कर दिया जाए ताकि सामने वाले को अराष्ट्रवादी बताया जा सके।
ये कैसी रणनीति बनाई जा रही है जिसमें विकास प्राथमिकता में नही है तथा व्यक्तिगत हमले व धर्म की राजनीति सर्वोपारि है। भविष्य के लिए नीति क्या है, भविष्य उज्ज्वल कैसे बनेगा, स्वास्थ्य और शिक्षा जिनमें समाजवादी नितियां होनी चाहिए उनमें पूंजीवाद हावी है ये कैसे कम होगा। इन मुद्दों पर अगर चुनावी चर्चा होगी तो किसी को कोई लाभ नही होगा क्योंकि अंतत: तो हमाम में सभी नंगे है इसलिए धुव्रीकरण करना ही सही विकल्प है और ये भारतीय राजनीति का चरित्र सा बनता जा रहा है।
वैसे इस तरह की रणनीति के पीछे स्पष्ट कारण है कि ये फायदेमंद साबित होती है अर्थात इस तरह के बेफालतू मुद्दो को भी जनता तवज्जो देती है तथा मिडिया इन्हे लेकर लंबे-लंबे कार्यक्रमों के माध्यम से इस रणनीति को हवा देने का काम करता है मीडिया की अपनी TRP की मजबूरियां है जिसके चलते उसे वे सभ प्राथमिकता से दिखाना पडता है जिसे देखने में दर्शकों का रूझान हो।
इस तरह की राजनीति समाज के लिए और प्रगति के लिए घातक होती है इससे पीछा छुड़ाने के तथा असल मुद्दो पर केंद्रित करने के लिए जरूरी है कि हमारे द्वारा ऐसी बातों पर ध्यान न दिया जाए और मिडिया द्वारा इन्हे तवज्जो न दी जाए जिससे दलों को ये चाल विफल होती नजर आए और उन्हें पता चले कि अब ये सभ आगे चलने की गुंजाइश नही है अब उन्हें जनता से जुडे मुद्दो पर जवाबदेह होना पड़ेगा। अंत में सभी दलों के लिए कुछ पंक्तियां याद आती है किः-
तू इधर उधर की बात न कर………
यह बता की काफिला क्यूं लूटा………
हमें रहजनो से गिला नही…………
तेरी रहबरी पर सवाल है ………….

कल्पित हरित

Thursday, 8 November 2018

चुनावी चौसर-2019


जैसे जैसे लोकसभा आम चुनाव नजदीक आ रहे है वैसे-वैसे राजनैतिक दलो में हलचल तेज होती जा रही है, हर कोई अपने हिसाब से बिसात बिछाने की कोशिश मे है और उसी के अनुसार अपनी चाले तय कर रहा है। कहीं हिन्दु होने का दंभ भरा जा रहा है तो कंही जातिगत समीकरण तलाशे जा रहे है तो कंही गठबंधन की सुगबुगाहट तेज हो चली है।
इन सभ के बीच 2014 में प्रमुख भूमिका मे रहा विकास इस बार अपनी बारी का इंतजार कर रहा है कि मेरी चर्चा कब कौन और कैसे करेगा।
हाल मे जिस तरह का माहौल नजर आ रहा है उसमे कई सियासी चाले नजर आ रही है जैसे-
1.     हिन्दुः- देश मे कांग्रेस मंदिर-मंदिर जाकर अपने आप को हिंदु दिखाने का प्रयास कर रही है। 2014 के चुनाव की समीक्षा के बाद ये बात मुख्य तौर से उभर कर आई कि कांग्रेस की एंटी हिन्दु छवि उसकी हार का बड़ा कारण है। वंही दुसरी ओर B.J.P सियासत की तो शुरूआत ही हिंदु और कमण्ड़ल की राजनीति से हुई है तो B.J.P का तो एजेंडा ही सामने वाले को नकली हिंदु साबित करना है इसी रणनीति के तहत कुछ दिन पूर्व ही B.J.P ने राहुल गांधी के गोत्र का मुद्दा उठाया था। इसके अलावा देश में 80 प्रतिशत जनसंख्या लगभग हिन्दु ही है तो बहुसंख्यक वर्ग होने के कारण हिंदु विरोधी छवि कोई निर्माण नही करना चाहता बल्कि हिंदु हितैषी अपने आप को सबित करना आज की मांग है।
2. रामः- राम तो आज से नही बल्कि दशको से भारतीय राजनीति के मुख्य किरदार रहे है। सबसे बड़े राज्य यूपी जहां लोकसभा की सबसे अधिक 80 सीटे है वहां की राजनीति में इनका प्रभाव इतना है कि चुनाव आते ही बयानबाजी का दौर और मंदिर निर्माण की हवाई बाते शुरू हो जाती है। इस बार मुश्किल B.J.P के लिए यह है कि राम के मुद्दे पर संत समाज, अपने खुद के साथी शिवसेना, संगठन RSS  और विश्व हिंदु परिषद सभी सुप्रीम कोर्ट के ढीले रवैये के बाद कानुनी रूप से राम मंदिर पर अड़ गये है। राम को लेकर देश में विपक्ष है ही नही जो आज के दौर मे राम मंदिर का विरोध करे साथ ही राज्य व केंद्र दोनो मे B.J.P की सरकार है इन सभ अनुकुल परिस्थितियों के होते हुए भी यदि राम मंदिर न बने तो ये B.J.P के लिए मुश्किल का सबब हो सकता है।
वंही दुसरी ओर विपक्ष इसे अलग तरह से देख रहा है, उनका मानना है कि चुनाव नजदीक आते ही राम मंदिर की याद आना स्वभाविक नही है यह चुनावी पैंतरा है जिससे हिंदु धुव्रीकरण करने का प्रयास B.J.P करेगीं।
 अगर हिंदु धुव्रीकरण वाली विपक्ष की बात सही है तो राम के नाम पर हिन्दु वोट पाने की चाल B.J.P के लिए रामबाण साबित हो सकती है परन्तु अगर ये चाल उल्टी पड़ी और राम मंदिर न बनने से हिंदु B.J.P से खफा हुआ तो राम मंदिर ही B.J.P के लिए सबसे बड़ा सियासी नुकसान साबित होगा।
विकासः- 2014 की चुनावी चालो मे सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में विकास ही था लगभग हर मंच से विकास की बात की जाती थी और कांग्रेस को कम विकास करने तथा अधिक भ्रष्टाचार करने के लिए कोसा जाता था लेकिन अबकि बार विकास अपनी बारी का इंतजार कर रहा है क्योंकि इस बार उसे कोई नही पुंछ रहा है बिते साढ़े चार सालो मे सैंकडो योजनाएं घोषित की गई पर उनकी चर्चा इस बार चुनाव में करने से सताधारी दल बचता नजर आ रहा है वहीं विपक्ष चाहता है कि बात विकास की हो ताकि गिरता रूपया, डीजल की कीमते, मंहगाई,योजनाओ का क्रियान्वयन , बेरोजगारी दिखाकर विकास के मॉडल को फेल बताया जा सके।
4 राफेलः- इस डील के जरिए सता पक्ष को दगदार और भ्रष्टाचारी बताने का पूर्ण प्रयास किया जा रहा है, जिस तरह से हर मंच से इसका जिक्र हो रहा है उसमे लगता तो ऐसा है कि 2019 में मुख्य चुनावी चाल ये साबित होगा। इसकी जानकारी आम जनता तक पहुंचाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है क्योंकि अभी तक भ्रष्टाचार को लेकर B.J.P की छवि लगभग साफ सुथरी है।
राफेल के साथ साथ बैंको का पैसा लेकर विदेश भागे लोगो का सता से गठजोड़ साबित कर भी विपक्ष B.J.P को भ्रष्टाचार मे लिप्त बताने के प्रयास में है। इसी रणनीति के तहत राफेल को सीधे प्रधानमंत्री पर तथा भगोडो को भारत से बाहर भगाने को लेकर मंत्रियो पर जुबानी हमले किए जा रहे है।
5 महागठबंधनः- इस चुनावी चाल के गर्त में आंकडों का गणित छुपा हुआ है जिससे हर विपक्षी दल को लग रहा है कि यदि साथ मिल कर चले तभी नैया पार होगी वरना अपने अस्तित्व का संकट पैदा हो जायेगा।
पिछली बार 2014 में B.J.P को 31.3 प्रतिशत वोट मिला जबकि कांग्रेस को 19.5 प्रतिशत व समाजवादी पार्टी को 3.4 प्रतिशत , BSP को 4.2 प्रतिशत TMC को 4.7 प्रतिशत तथा अन्य को  37.7 प्रतिशत वोट मिले यदि SP,BSP,TMC व कांग्रेस के वोट मिला दिये जाए तो B.J.P के बराबर 31 प्रतिशत बैठता है इसके अलावा B.J.P की साढे चार साल की एंटी इनकमबैन्सी व क्षेत्रीय दल जिनके पास बड़ा वोट बैक 37.7 प्रतिशत का है इनमे से भी कुछ को मिलाकर यदि बड़ा गठबंधन बना लिया जाए तो 2019 मे मजबूत चुनौती पेश की जा सकती है इसी कारण विभिन्न विपरित विचाराधाराओ वाले दल आपस में गठबंधन बनाने को आतुर नजर आ रहे है।
जहां एक ओर आंकडो के लिहाज से गठबंधन की रजनीति विपक्ष को सकुन देने वाली है वंही इसमे कई समस्यांए भी है जैसे गठबंधन का नेता कौन होगा जो सभी को स्वीकार्य हो, सभी की विचारधाराएं एक दुसरे से अलग-अलग है, सीटो का बंटवारा किस प्रकार होगा आदि। पर अगर ये गठबंधन बनता है तो ये चुनावी चाल देखने लायक और अनुठा नायाब प्रयोग होगा क्योंकि राजनीति में दो और दो चार ही हो ये अवश्य नही और वोट प्रतिशत सीटो मे बदले ये भी तय नही होता है।
6 नेता V.s नेताः- आज के दौर मे नरेन्द्र मोदी जी के बराबर कद वाला ताकतवर नेता जो मोदी की छवि से टकरा सके जिसे सर्वमान्य नेता कहा जा सके ऐसा कोई दिखाई नही पड़ता इसलिए B.J.P का प्रयास रहता है कि चुनाव को मोदी V.s विपक्षी नेता के रूप मे बना दिया जाये जिससे मोदी के नाम पर वोट लिये जा सके जबकि विपक्ष की चाल है कि चुनाव मुद्दो, विकास और योजनाओं के क्रियान्वयन, आर्थिक मुद्दो पर केंद्रित हो जाये। अपनी इसी चाल के तहत B.J.P प्रवक्ता अधिकतर मोदी राहुल की तुलना करते है और डिबेटो में सोनिया, राहुल पर निजी हमले करते है।
जैसे-जैसे समय बीतेगा इस चुनावी शतरंज में नई-नई चाले सामने आती रहेंगी, समीकरण बनते बिगड़ते रहेंगे, शह और मात का खेल दिलचस्प होता जायेगा और हो भी क्यो न 2019 सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनावी साल है। तो आप भी मजा लिजिए इस खेल का क्योंकि इस खेल की अंतिम चाल आखिर आपको ही चलनी है जो तय करेगी की कौन जीता , कौन हारा।

कल्पित हरित

Tuesday, 9 October 2018

राम


26 अक्टूबर से राम मंदिर पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट मे शुरू होने वाली है  लिहाजा राम को लेकर देश मे राजनैतिक रण तो शुरू होना तय है। हर कोई श्रीराम के जरिए अपने आप को सामने वाले से बड़ा हिन्दु सबित करने की कोशिश करेगा।
राम तो अयोध्या के राजा थे और उनका राज्य एक आर्दश राज्य माना जाता था और उन्हीं राम के नाम पर नब्बे के दशक मे शुरू हुई राजनीति ने कईयो को राजनीति के शिखर तक भी पहुँचाया परन्तु राजनीति से परे भी राम का भारतीय समाज मे महत्वपूर्ण दर्जा है जो आस्था से जुड़ा है।
राम भारतीय संस्कृति मे आर्दशवादिता के प्रतीक है जीवन चक्र कैसा होना चाहिए कर्म और कर्तव्यों का पालन व उनके मध्य सामंजस्य कैसे बैठाना है इसकी शिक्षा आज भी रामायण के माध्यम से बड़े बुजुर्गो द्वारा घर की युवा पीढ़ी मे संचरित की जाती है।
आज जब देश मे अपराधो, उत्पीड़नो के आंकड़ो मे निरंतर बढोतरी हो रही है तो यह प्रमाण है कि राम आज केवल सियासत तक ही सीमित होकर रह गये है  उनके द्वारा स्थापित आदर्शों पर कोई जोर नही देता जिस कारण मर्यादा पुरूषोतम राम के आदर्शों से समाज दुर होता जा रहा है।
राम को मर्यादा पुरूषोतम कहा जाता है अर्थात मर्यादाओं का पालन करने वाले व पुरूषों मे सबसे उतम पुरूष। परन्तु जो तस्वीरे आज हमे दिखाई देती है उनमे मर्यादाए तो तार-तार है तथा उतम पुरूष कोरी कल्पना लगती है आज के दौर मे आवश्यकता राम को समझने की है तथा उनके द्वारा बनाये गये मार्ग पर चलने की है।

वाल्मिकी रामायण( बालकाण्ड़, सर्ग-1 , श्लोक-18)
इक्ष्वाकुवंश्प्रभावो रामो नाम जैनैश्श्रतुः।

नित्यामा महावीर्यो, दयुतिमान्धृतिमान वशी।

यह रामायण का वो पहला शलोक है जिसमे श्रीराम के गुणों का वर्णन है। इस श्लोक मे महर्षि वाल्मिकी द्वारा भगवान श्रीराम के वंश की जानकारी व उनके गुणों के बारे मे बताया गया है।
अर्थात राजा इक्ष्वाकुश के वंश मे जन्मे जिन्हें लोग राम के नाम से जानेगे तथा उनमे निम्न गुण है- नित्यात्मा, माहावीर्य, दयुतिमान, धृतिमान, वशी ।
नित्यात्मा- इसका अर्थ है स्थिर प्रकृति । चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो विकट या सरल वो हर परिस्थिति मे एक समान है। श्रीराम के जीवन काल मे कई कठिनाइयां आई पर अपने आदर्शों मे वह सदैव अड़िग रहे।
महावीर्यः(अद्वितीय कौशल) - राज्य का शासन कैसा हो इसके लिए अगर आज भी कोई उदहारण दिया जाता है तो जिक्र आता है रामराज्य का जो उनके शासन कौशल का प्रमाण है। प्रजा मे उनके लिए कोई भेदभाव नहीं था आज के राजनेताओं को श्रीराम के इस गुण को अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
दयुतिमान (स्वयं प्रकाशमान)- जिस प्रकार सूर्य स्वंय प्रकाशमान है और सदियों से हम उससे ऊर्जा प्राप्त करते आ रहे है और करते रहेंगे उसी प्रकार श्रीराम का चरित्र एक आर्दश चरित्र है। भ्राता, पुत्र, राजा, हर पात्र मे कर्तव्य का निर्वहन किस तरह करना है इसका मार्ग श्रीराम का प्रकाशमान चरित्र हमेशा बताता रहेगा।
धृतिमान(स्वयं पर नियंत्रण)- अपनी आत्मा की आवाज को सुनकर अपने निर्णय लेने की क्षमता । जो निर्णय किसी के प्रभाव मे आकर नहीं लिए जाए और ऐसे निर्णयो पर खुद का पूर्ण नियंत्रण हो।
वशी(इंद्रियों पर नियंत्रण)- मनुष्य द्वारा इंद्रियों पर नियंत्रण कर सात्विक जीवन व्यतीत किया जा सकता है साधारण मनुष्य से संत बनने की प्रकिया केवल इंद्रियों पर नियंत्रण द्वारा संभव है। श्रीराम के इस गुण का ही समाज मे सबसे ज्यादा हास्व हुआ है। बढ़ते उत्पीड़न, शोषण के मामले इंद्रियों पर नियंत्रण न होने का दोष है जो दीमक बनकर नैतिकता की जड़े कमजोर कर रहा है।
इस प्रकार श्रीराम के ऐसे अनेको गुण है जो आज हमे और समाज को अपनाने की आवश्यकता है यदि हम इन गुणो  को नही अपनाते तो यकिन मानिए श्रीराम केवल मंदिरों और मंदिर की सियासत तक सिमट कर ही रह जायेंगें हमे श्रीराम के आदर्शों को गुणों को अपने जीवन मे लाने का प्रयास करना होगा ताकि सशक्त समाज का निर्माण हो जो श्रीराम के आदर्शों पर आधारित हो।
मंदिर कहां बनेगा कैसे बनेगा ये अभी भविष्य का प्रशन है लेकिन श्रीराम भक्त होने के नाते मेरा मन इस बात का पूर्ण समर्थन करता है कि "जहां जन्मे राम लला मंदिर वंही बने" और श्रीराम के आर्दश सारे विश्व मे प्रचारित हो।

कल्पित हरित