Monday, 30 December 2019

THE हिन्दू


हिन्दू और हिन्दुत्व को लेकर देश मे काफी लंबे समय से बहस रही और कई बार राजनीति मे इसका उपयोग वोटो की खेप तैयार करने के लिए किया गया तो कभी सांप्रदायिकता को भड़काने के लिए किया गया | CAA और NRC तथा NPR से शुरू हुए गतिरोधों ने इन शब्दो को आज सही से समझने की आवश्यकता पैदा  की है |
किसी पार्टी या संघ की विचारधारा से प्रेरित न होकर के हमने स्वतंत्र रूप से इस बात को जानने के कोशिश करी कि असल मे क्या मायने है हिन्दू होने के और ये हिन्दुत्व है क्या ?
मै विश्लेषण से पूर्व एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हु कि ये पूरा विश्लेषण सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये निर्णयो पर आधारित है किसी के व्यकतिगत विचार या किसी विशेष विचारधारा से प्रेरित नहीं है |

सर्वप्रथम 1966 मे एक केस शास्त्री यांगना पुरुषाद जी बनाम मूलदास वैश्य के केस मे सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया |
इस केस मे जो अपील कर्ता थे वे स्वामीनारायण संप्रदाय को मानने वाले थे जिन्हे सतसंगी नाम से भी जाना जाता था इन्होने कोर्ट से अपील करी कि  स्वामीनारयन संप्रदाय हिन्दू से अलग है इसलिए “the Bombay hindu places of public worship act 1956” स्वामीनारायन संप्रदाय पर लागू नहीं होता तथा इस एक्ट कि धारा “तीन” के अंतर्गत स्वामीनारायन संप्रदाय के मंदिर नहीं आते  अतः जो सतसंगी नहीं है उनका प्रवेश वर्जित रखा जाए |
हाई कोर्ट ने इस मामले मे माना कि स्वामीनारायण संप्रदाय पेशेवर हिन्दू है और “the Bombay hindu places of public worship act 1956” इनके मंदिरो पर लागू होता है तथा अपील रद्द कर दी |
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट मे अपील की गयी :- सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय मे कहा की जो विवाद है उसमे मूल प्रश्न यही है कि क्या स्वामीनारायण संप्रदाय हिन्दू से अलग है जिस कारण उनके  मंदिरो पर ये 1956 का एक्ट लागू नहीं होना चाहिए ?
इस प्रश्न के उतर को जानने के लिए हमे इस बात का जवाब ढूँढना होगा कि हिन्दू क्या है ?
हिन्दू शब्द कि उत्पत्ति को लेकर कई अलग आलग अवधारणा है पर जो अधिकतर शोधकर्ता मानते है उसके अनुसार हिन्दू शब्द कि उत्पत्ति सिंधु नदी से हुई है जो कि पंजाब से बहती है | इसके आस पास आर्यन जाति का निवास था |
मोनाईट विलियम के अनुसार ये आर्यन सेंट्रल एशिया से आए थे जो पहाड़ो को पार करके सर्वप्रथम सिंधु नदी के आस पास बस गए | पारसी लोग इन्ही आर्यन लोगो को हिन्दू नाम से बोलने लगे |
The encyclopedia of religion  and ethics volume 6 के अनुसार Hinduism उस religion को बताया गया है  जो भारतीय साम्राज्य मे बहुतायत से फैला हुआ है |
Dr. radhakrishnan ने अपनी स्टडि मे ये पाया की हिन्दू civilization के शुरुआती लोग सिंधु नदी के क्षेत्र मे रहा करते थे मुख्यत दक्षिण पश्चिम और पंजाब मे तथा ये जानकारी ऋग्वेद मे भी मिलती है |
तत्पश्चात सिंधु नदी के भारतीय क्षेत्र की तरफ रहने वाले लोगो को पश्चिमी आक्रांताओ तथा पर्शियन लोगो द्वारा हिन्दू कहा जाने लगा और यंही से हिन्दू शब्द की उत्पत्ति हुई |
इस तरह के कई refrences के बाद निर्णय मे कहा गया कि जब हम हिन्दू धर्म कि बात करते है तो इसे परभाषित करना अत्यंत कठिन है क्योकि ये धर्म न तो किसी एक पैगंबर मे विश्वास करते है, न हे किसी एक भगवान को मानते है , न ही एक जैसी आस्थाए है और न ही एक जैसे धार्मिक संस्कार है , न ही ये एक जैसे दर्शन मे विश्वास रखते है |
किसी भी अन्य धर्म कि तरह के संकुचित और सीमित गुण इसमे नहीं है इसलिए हिन्दू धर्म को साधारणत: केवल जीवन को जीने के तरीके के रूप मे वर्णित किया जा सकता है |
डॉ राधाकृष्णन बताते है कि कैसे Hinduism उसके संपर्क मे आने वालो से रीति रिवाजो और गुणो को अपनी श्रेष्टता हेतु स्वीकार कर लेता है | इस केस मे सुप्रीम कोर्ट ने स्वामीनारायन संप्रदाय के मंदिरो  मे किसी को प्रवेश से वर्जित करने कि अपील को रद्द कर दिया |

इसके बाद साल 1976 मे commissinor of wealth tax बनाम late
R shridharan के केस मे निर्णय आया | जिसमे फिर हिन्दू के बारे मे बताया गया | इस केस के तथ्य इस प्रकार थे :-
  • ·        R shridharan अपने पिता और भाइयो के साथ रहते थे उनके पिता कि जायदाद का बंटवारा 1952 मे हुआ जिसमे उनके पास तीन कंपनी व एक अन्य कंपनी के शेयर आए |
  • ·        1954 मे श्रीधरन ने Austria मूल कि rosa के साथ विवाह किया जो कि special marriage act 1954 के अंतर्गत हुआ | इस शादी से उनका एक पुत्र हुआ nikolus shridharan
  • ·        श्रीधरन income tax , wealth tax आदि मे अपना staus individual भरते थे पर 1962-63 मे अपना status हिन्दू undevided family भरा |
  • ·        जिसे income tax और wealth tax officials ने ये कहकर अस्वीकार कर दिया कि shridhran कि शादी special marriage act के अंतर्गत हुई है जिसकी धारा 21 के अनुसार आप पर hindu laws अप्लाई नहीं होते आपका अससेसमेंट  indian sucession act से होगा न कि हिन्दू sucession act से इसलिए आपको हिन्दू undevided family का पार्ट नहीं बल्कि individual माना जाएगा|
  • ·        इसके खिलाफ श्रीधरन ने हाइ कोर्ट मे अपील कि तो निर्णय श्रीधरन के पक्ष मे रहा और उसे हिन्दू undevided family का पार्ट माना गया |
  • ·        9 अप्रैल 1962 को श्रीधरन कि डैथ हो जाती है श्रीधरन कि पत्नी ROSA उनके wealth tax रिटर्न के लिए आवेदन करती है जिसे commissnor wealth tax द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है और तर्क दिया जाता है कि shiridharan को भले हिन्दू undevided family का भाग माना गया हो पर ROSA को किसी भी case मे हिन्दू नहीं माना गया है अतः ROSA पर हिन्दू laws अप्लाई नहीं होते तथा आपकी शादी special marriage act के अंतर्गत हुई है तो nikolus को पैतृक संपती के अधिकार प्राप्त नहीं है |

·        ROSA ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मे अपील कि तो कोर्ट ने अपने निर्णय मे कहा कि यंहा मुख्य प्र्शन है कि क्या nikolus हिन्दू है जिस पर हिन्दू laws अप्लाई हो सकते है ?
कोर्ट ने nikolus को हिन्दू undevided family का पार्ट न मानते हुए ROSA कि अपील रद्द कर दी पर साथ ही अपने निर्णय मे हिन्दू के बारे मे कहा कि :-
हिन्दू को सटीकता के साथ परिभाषित करना बहुत कठिन है और interational dictionary ऑफ इंगलिश के आधार पर hinduism सांस्कृतिक , धार्मिक , और सामाजिक व्यवहारों कि एक जटिल संरचना है | यह अत्यंत लचीला धर्म है जिसमे किसी भी भगवान और मान्यताओ को मानने कि आजादी है |

इसके बाद 1996 मे डॉ YASHWANT PRABHOO और बाला साब ठाकरे कि अपील दोनों पर साथ मे निर्णय दिया | जिसमे हिन्दुत्व शब्द के मतलब के साथ  सही उपयोग को लेकर बताया गया |
इस केस के तथ्य इस प्रकार थे :-
  • ·        13 dec 1987 को महाराषट्र विधानसभा चुनावो मे dr प्रभू मुंबई विले पार्ले सीट से कैंडिडैट थे | 14 dec 1987 को नतीजे आए तो डॉ प्रभू चुनाव जीत गए |
  • ·        7 अप्रैल 1989 को बॉम्बे हाइ कोर्ट ने people representation act 1951 कि धारा 100 sub section 1 clause (b) के तहत उनका चुनाव रद्द कर दिया क्योकि उन्हे people representation act 1951 कि धारा 123 के subsection 3 और 3-ए के अंतर्गत CORRUPT PRACTICE का दोशी पाया गया |
  • ·        इस इलैक्शन के दौरान 9 dec 1987 तथा 29 nov 1987 को बाला साहब ठाकरे द्वारा dr  प्रभू के समर्थन मे रैलीयां कि गयी थी जिसमे हिन्दू और हिन्दुत्व शब्दो का प्रयोग वोट मांगने के लिए हुआ और यंहा तक कहा गया कि केवल हिन्दू dr प्रभू को वोट दें |

जब ये केस सुप्रीम कोर्ट मे पहुंचा तो सवाल यही था कि क्या हिन्दू , हिन्दुत्व Hinduism आदि शब्दो का प्रयोग चुनावी रैलियो मे किया जा सकता है और ऐसा करना क्या सही है ?
कोर्ट ने अपने निर्णय मे पुराने केसेस का हवाला देते हुए कहा कि public speech मे दिये गए भाषण मे कोई संदेहस्पद प्रसंग ना हो तो हिन्दुत्व का अर्थ भारतीय लोगो के जीवन जीने के तरीके से लिया जाएगा न कि केवल उस धर्म को मानने वाले लोगो से |
कोर्ट ने अपने निर्णय मे कहा कि केवल हिन्दुत्व शब्द का उपयोग करने से ये मान लेना कि ये स्पीच हिन्दू धर्म पर आधारित है और दूसरे धर्मो के विपरीत ये कानूनी रूप से गलत एवं त्रुटिपूर्ण है |
साथ ही कोर्ट ने कहा पब्लिक speech और रैलियो मे इन्हे प्रयोग किया जा सकता है परंतु इन शब्दो का उपयोग सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने के लिए करना गलत है |
अतः इस केस मे सुप्रीम कोर्ट ने बाला साहब ठाकरे , डॉ prabhoo आदि को चुनावो मे CORRUPT PRACTICE का दोषी करार दिया |

इस तरह इस देश मे हिन्दू और हिन्दुत्व को लेकर बड़ी लंबी बहस रही है जिसे कोर्ट के निर्णयो के आधार पर सरल शब्दो मे आपके सामने रखने की कोशिश हमने की | इस पूरे विवरण से जो मै समझ पाया वो यही है कि शब्दो मे हिन्दू को परिभाषित करना कठिन है ये एक ऐसा लचीला धर्म है जो हर उस अच्छाई को अपना लेने के क्षमता रखता है जो उस तक किसी भी माध्यम और किसी के जरिये आ जाए अतः किसी वर्ग के साथ इसे जोड़ा नहीं जा सकता इसका scope काफी विशाल है |
कल्पित हरित


Friday, 6 December 2019

RARE OF THE RAREST


दंड संहिता की धारा 376 के अनुसार रेप की सजा 10 वर्ष है | जबकि मर्डर के केस मे धारा 302 के अनुसार मौत की सजा और आजीवन कारावास की सजा है |
सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयो मे स्पष्ट है कि मौत कि सजा केवल उसी स्थिति मे ही दी जाएगी जब के अपराध “RARE OF THE RAREST कैटेगरी का हो |
इस RARE OF THE RAREST सिद्धांत को सुप्रीम कोर्ट ने सर्वप्रथम बचन सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब के केस मे कुछ इस तरह से व्याख्यित किया कि “इस प्रकार कि जघन्यता जिसमे कोई अन्य विकल्प न्याय करने के लिए बचता ही ना हो उसे RARE OF THE RAREST माना जाएगा | 2012 के निर्भया केस को भी अदालत ने इसी कैटेगरी मे रखते हुए कहा फांसी से कम कुछ न्याय हो ही नहीं सकता |
अभी तक कोई भी निश्चित परिभाषा तय नहीं हो पायी है कि किसे आप RARE OF THE RAREST  मानेंगे तो फिर चाहे हैदराबाद हो , उन्नाव हो , मालदा हो या कोई अन्य केस जिन्होने मानवता को झकझोर के रख दिया हो | जिनके लिए न्याय कि आस न केवल पीड़ित और उसके समाज को हो बल्कि पूरा देश को हो | जिसमे न्याय से राहत पूरे देश को मिलती हो और हैदराबाद मे भी ऐसा ही हुआ जब खबर निकाल कर आई कि चारो अपराधी ढेर हो गए है तो उस ठंडक को हर किसी ने अपने कलेजे मे महसूस किया किया जैसे आज उस के साथ ही न्याय हो गया हो और उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि न्याय अदालत के रास्ते हुआ या सड़क पर खड़े होकर | जिसका प्रगटिकरण जश्नो , नारो , उल्लास के रूप मे देश मे देखा गया |
हम लोकतान्त्रिक देश मे है जंहा सड़क पर न्याय का कोई औचित्य नहीं है हमारे पास सशक्त कानून है जिसकी एक प्रक्रिया है | यही वह प्रक्रिया है जो इतनी लंबी है कि इसमे सालो ट्राइल मे चले जाते है फिर आगे से आगे पिटिशन फिर मर्सी पिटीशन और स्थिति “जस्टिस ड़ीले जस्टिस डेनाय ” वाली हो जाती है | इतने लंबे समय के बाद हुआ निर्णय न तो दिल को सुकून देता है न ही न्याय तंत्र मे विश्वास उत्पन्न करता है |
जब केस कि कैटेगरी अलग है हम आम अपराध से अलग उसे RARE OF THE RAREST   मान ही रहे है तो उसके लिए भी वही सामान्य न्याय प्रक्रिया अपनाकर हम न्याय के नाम पर पूरे सिस्टम का मज़ाक बना रहे है इस तरह के केसो कि प्रक्रिया अलग होनी चाहिए जो त्वरित हो | इन केसो मे जंहा पूरा देश केवल न्याय का इंतज़ार कर रहा हो लंबी प्रक्रियाए असहिष्णुता को जन्म देती है |
ये वक्त है जब RARE OF THE RAREST को परिभाषित कर उसके लिए त्वरित न्याय कि प्रक्रिया तैयार की जाये वरन चाहे उन्नाव हो या हैदराबाद , मालदा हो या कोई अन्य अगर सड़क पर कानून तांक पर पर रखकर भी न्याय होगा तो खुशी मनाई जाएगी |
आंखो पर पट्टी बांधे न्यायालयों मे खड़ी न्याय की मूर्ति जब हैदराबाद के एंकाउंटर की खबर पाकर ये सोच के मुस्करा दी होगी कि भले कानूनी प्रक्रियाओ का कुछ भी हुआ हो पर आज न्याय तो हो ही गया |

कल्पित हरित   

Thursday, 3 October 2019

गांधी होना


नाम तो उनका मोहनदास करमचंद गांधी था पर कहा हमेशा महात्मा गांधी ही जाता है | महात्मा का अर्थ है महान आत्मा और जब हम आत्मा की बात करते है तो हम किसी शरीर की नहीं विचार की बात करते है | एक ऐसा विचार जो आत्मा की तरह ही अजर और अमर है | इसलिए महात्मा गांधी का अर्थ उन विचारो और जीवन जीने के तरीको से है जिन्हे उस व्यक्ति ने अपने जीते जी प्रस्तुत किया या अभिव्यक्ति द्वारा समझाया |
अगर आप महात्मा गांधी की आत्मकथा “MY EXPERIMENT WITH TRUTH ” पढे तो पाएंगे की कैसे व्यक्ति अपने जीवन के हर अच्छे बुरे अनुभव से कुछ सीख सकता है | कठिन परस्थितियों मे किसी तरह मुक़ाबला किया जा सकता है और बिना किसी हिंसा के बड़ी से बड़ी शक्ति का लड़ा जा सकता है और ये बदलाव कैसे उपयोगी हो सकते है |
जब गांधी जी इंग्लैंड मे थे तो उन्होने पैसे बचाने के लिए किसी साधन के बजाय पैदल चलना शुरू किया | उन्होने अपनी आत्मकथा मे इसका वर्णन किया है कि इस आदत ने उन्हे स्वस्थ्य व्यकति बनाया और इंग्लैंड मे रहने के दौरान कभी बिमार नहीं पड़ने दिया, इसके अलावा दो की बजाय एक ही कमरे मे रहकर बाहर की जगह घर पर खाना बनाना और कई विलासिता युक्त चीज़ों से अपने आप को मुक्त कर बचत भी की जा सकती है और जीवन को साधारण तरीके से जीया जा सकता है ऐसी कई बातो का वर्णन है |
गांधी जी को पढ़ना जीवन जीने के तरीके और सादगी से जीवन व्यतीत करना सीखना है | एक बार गांधी जी के विरोध करने के कारण भीड़ ने एक व्यक्ति को पीटा था तो गांधी जी ने उस व्यक्ति को अपने मंच से उसकी बात कहने का अवसर दिया | अपने वैचारिक विरोधी को अपना दुश्मन न समझते हुए उसे अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्रदान करना और अपने खिलाफ उठने वाली आवाज़ को दबाना नहीं बल्कि सुनना उनके व्यक्तित्व से सीखा जा सकता है |
असहयोग, सविनय अवज्ञा , अनशन ये विरोध के उनके एसे तरीके थे जिन्होने अंग्रेजी सत्ता को बिना किसी हथियार के बेचैन कर दिया , उन्होने जन सहयोग के माध्यम और स्वदेशी अपनाने के विचार से , भारत के बाज़ार से विदेशी को बाहर करने का प्रयास किया जिसने सीधे उस व्यापार को खत्म किया जिसके लिए अंग्रेज़ भारत आए थे उनके यह प्रयोग अन्य देशो के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत बने और अफ्रीका आदि देशो ने भी उनके इन कारगार उपायो को अपनाया |
गांधीजी विदेश से शिक्षा ग्रहण करके आए थे पर जब उन्होने देखा कि देश मे लोगो के पास पहनने के लिए वस्त्र तक नहीं है तो उन्होने स्वयं भी वस्त्र त्याग कर केवल एक छोटी सी धोती व शाल को वस्त्र के रूप मे जीवन भर के लिए अपना लिया | सादगी और समाज के साथ समरसता स्थापित करने के तथा परिवर्तन कि शुरुआत खुद से करने के कई उधारणों से उनका जीवन भरा पड़ा है जिसे उन्होने अपनी जीवनी मे “सत्य के प्रयोग” कहकर संबोधित किया है |
गांधी के देश मे ही अज्ञानतावश और गलत जानकारी के कारण कई बार गांधी जी का विरोध और अपमान ऐसे लोगो द्वारा किया जाता है जिन्होने शायद कभी गांधी को पढ़ा ही नहीं | गांधी के धर्म , अध्यात्म , समाज को लेकर जो विचार थे वे सभी को समानता और बराबरी के साथ समरूपता स्थापित करने वाले थे जो आज 150 साल बाद भी उतने ही साशवत और सटीक है |
अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के लिए कहा था कि “आने वाली पीढ़िया यकीन नहीं करेंगी कि रक्त , हाड़ और मास का ऐसा व्यक्ति भी हुआ था” |
तो इतना आसान नहीं है देश और समाज के लिए सम्पूर्ण समर्पित होना |
और अपने आप मे गांधी होना |

कल्पित हरित

Monday, 8 July 2019

पॉलिश वाला


भैया थोडा आगे तक छोड़ देगे।  सुबह 10 बजे का लगभग वक्त था। सरकारी स्कूलों का समय यही होता है। हाथ में बस्ता और मैली सी शर्ट ,टांके लगी पेंट और पैरों में हवाई चप्पल शायद कोई सरकारी स्कूल का विद्यार्थी होगा जो स्कूल के लिए लेट हो रहा है।
हां जरूर छोड़ देंगे बैठो! स्कूल जा रहे हो, नही। तो फिर कहां , वो जो आगे कचहरी वाली रोड पे जो ऑफिस है वहां, वहां कैसे ,मैं पॉलिश करता हूँ | कहां आफिस के बाहर नहीं आफिस के अन्दर जाकर।
कौन पॉलिश कराता है वहां, साहब लोग करा लेते है। रोज, नहीं कभी कोई कभी कोई,   काली, भूरी दोनो रंग की पॉलिश है तेरे पास। हां दोनो हैं पर मैं सफेद जूतो को भी पानी से बहुत साफ कर देता हूं। मेरे जूते सफेद थे उसने ये देख लिया था। आज शुरूआत यहीं से हो जाये ये समझ कर अपना पहला ग्राहक मुझमे ही तलाशने लगा। कचहरी वाली रोड़ के आगे ही बड़ा पेस्ट ऑफिस वहां नहीं जाता क्या तू। पहले गया था पर वहां घुसने नही देते इसलिए नहीं जाता।
वैसे रहता कहां है, नेहरू नगर, कच्ची बस्ती में , हां वहीं ,परिवार में कौन कौन है, चार भाई और दो बहने, तु सबसे छोटा है क्या, हां, क्या उम्र होगी तेरी, 11 साल का हूं। भाई भी काम पर जाता होगा, सभी जाते है। आप इस तरफ जाओगे क्या नही मूझे दूसरी तरफ जाना है, अच्छा तो मुझे यहीं उतार दो।
इसे सलाह दूं कि स्कूल जाया कर पर ये वास्तविकता से परे एक बेवजह की नसीहत ही होगी दिमाग ने तुरंत दिल के इस तर्क का खंडन कर दिया अक्सर दिमाग के तर्क प्रभावी हुआ करते है। सुन इस रोड़ के आगे से उल्टे हाथ पर जाकर एक बिल्डींग आती है वो देखी है तुने, हां देखी है पता है वहां बहुत सारे लोग आते है, शहर का सबसे बड़ा सरकारी कॉलेज है वो और वहां कोई अंदर जाने से भी नहीं रोकेगा। ठीक है जा आउंगा।
अरे.........अरे........अरे  सुन नाम तो बता जा तेरा बड़ी तेजी से निकल गया शायद ये प्रशन उसने सुना ही नहीं खैर विलियम शैक्सपीयर ने कहा है नाम मे क्या रखा है कुछ भी रख लिजिए” तो फिर पॉलिश वाला ही सही।



कल्पित हरित