कॉलेज के पास थडी पर बैठे बैठे बातो का सिलसिला लगभग रोज कि सी ही
बात थी पर आज चाय में स्वाद रोज सा न था तो एक मित्र ने अचानक से कहा आज चाय
सुरेन्द्र ने नहीं बनायीं है|
सुरेन्द्र
बड़ी अच्छी चाय बनता है और लगभग रोज पीते पीते उसकी चाय की आदत सी हो गयी थी | आज सुरेन्द्र शायद आया नहीं था
काम पे , तो मालुम
हुआ कि आज किसी रिश्तेदार की शादी में गया है और दो दिन बाद आएगा | वास्तव में चाय की थडी किसी और
की थी और सुरेन्द्र तो बस वहां काम करता था पर प्रसिद्धी तो सुरेन्द्र की ही थी | लोग उसे सुरेन्द्र की थडी के
नाम से ही जानते थे |
हम जैसे
अंजानो को तो बहुत समय तक ऐसा लगता था शायद ये थडी सुरेन्द्र के पिता की है | कई दिनों से थडी पर बैठने के
कारण घुल मिल सा गया था और ऐसा लगता था जैसे वह भी अपने ही कॉलेज का सहपाठी ही हो | पर सुरेन्द्र केवल 12-13 वर्ष का एक बालक था|
सुरेन्द्र
वैसे तो उम्र में मात्र 12-13 साल का बालक था पर शायद
परिस्थितियों ने उसे परिपक्व बना दिया था| बालपन की नादानिया और चंचलता से
दूर वह काफी गंभीर था जिन्दगी की कठनाइयो में बचपन की रौनक धूमिल हो चुकी थी और
समय से पूर्व ही वयस्कता तथा व्यवहार में गंभीरता आ गयी थी |
वैसे कुछ
ज्यादा बात वो करता नहीं था बस अपने ही काम से काम रखता था | एक बार की बात थी जब एक मित्र
ने उससे कहा कि क्या यार सुरेन्द्र सारे दिन काम ही करता है आ थोड़ी देर बैठ बाते
करें तो सुरेन्द्र ने तुरंत उत्तर दिया कि तुम चाय तो पिलाते नहीं हो क्या बात करू
! मुझे उसी दिन मालुम हुआ की ये तो बस यंहा काम करता है अर्थात बाल मजदूरी का
उदहारण हमारे समक्ष मौजूद है |
उत्सुकता
बढ़ी और मन में कई सवाल थे कि आखिर किन कारणों से ये यंहा काम करता है तो आसपास के
लोगो और थडी पे रोज आने वाले कुछ ख़ास लोगो से पता किया तो मालुम हुआ कि सुरेन्द्र
के पिता उसके साथ नहीं है माता और एक छोटा भाई है | पिता किसी पराई महिला के साथ
उन्हें छोड़कर कहाँ चले गए उसका कोई पता किसी को नहीं है | सरकारी पेंशन जो उसकी माँ को
विधवा मानकर दी जाती है वह केवल 750/- रूपए थी जिसमे दो बच्चो के साथ
गुजर बसर मुश्किल था अलबत्ता छोटी उम्र से ही सुरेन्द्र ने यंहा कार्य करना शुरू
कर दिया था |
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विधि के
विद्यार्थी होने के कारण हम महाविद्यालय परिसर में कितनी ही समानता की बात कर ले
बहार आते ही सारी समानता सुरेन्द्र की परिस्थितियों के आगे केवल किताबी बाते
नजर आने लगी थी तो कई दिनों से एक और सवाल मन में था कि सुरेन्द्र स्कूल जाता है
कि नहीं क्योकि अक्सर दिन के समय वो थडी पर काम करता ही नज़र आता था | परन्तु अभी तक इस सवाल का जवाब
ढूँढना बाकी था |
आखिर एक
दिन पूंछ ही लिया कि “ क्यों
सुरेन्द्र तू स्कूल जाता है क्या ?” पर उत्तर में सुरेन्द्र ने पलट
कर सवाल ही कर लिया कि “ स्कूल जाने से क्या हो जाएगा ?”
अब उसके
सवाल का कोई उत्तर मेरे पास नहीं था कि अगर वो स्कूल जाकर भविष्य की सोचे तो
वर्तमान का क्या होगा और क्या स्कूल चले जाने मात्र से सबकुछ बदल जाएगा |
उसके
सवाल का जवाब आज भी मेरे पास नहीं है ?................
कल्पित
हरित
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