Saturday, 1 December 2018

कौन है ये लोग, कहां से आते है ये लोग


"कौन है ये लोग, कहां से आते है ये लोग" फिल्म जॉली एलएलबी का ये डॉयलाग आज उन भारतीय राजनेताओं पर बिल्कुल सटीक बैठता है जो कि धर्म की राजनीति करने में इतने मशगुल है कि उन्हे भगवान भी अब जातियों में बंटे नजर आने लगे है।
नजर आयें भी क्यों न ये उनकी राजनीति को फायदा पहुंचाता है और प्यार व जंग मे सब जायज है। परन्तु दिक्कत आपकी राजनीति से नहीं आपकी रणनीति से है। वे रणनीति जो बन्द कमरों में तय की जाती है जिसमें धर्म के आधार पर जातियों के आधार पर, भडकाउ भाषणों के जरिए अपने दल के पक्ष में माहौल तैयार करने की कोशिश की जाती है।
अगर हिंदु वोट एकत्रित करना है तो राम जी का उपयोग होगा पर हिन्दु वर्ग भी तो कई जातियों में बंटा है जिसमें दलितो में SC/ST एक्ट में परिवर्तन को लेकर गुस्सा है तो इस नाराजगी को दूर करने के लिए बजरंग बली को दलित बता दिया जाए तो क्या बुराई है? जो ब्रहाम्ण नहीं है उसे हिन्दुत्व की व्याख्या करने का कोई हक नही है ये भी कह दिया जाए क्योकि उस वक्त तो आप ब्रहाम्ण बहुल इलाके में सभा को सम्बोधित कर रहे है तो उन्हें रिझाना आवश्यक है। पूरी टीवी डिबेट मे सामने वाले का केवल गोत्र ही बार-बार पूछा जाए और समाने वाला भी अपना गोत्र सही या गलत ढूंढ लाये क्योंकि उसे भी तो अपने आप को असली हिंदु साबित जो करना है। चुनावी घोषणपत्रों में परशुराम बोर्ड़ का जिक्र हो जाए , योजनाओ के फायदे लाभ के इतर व्यक्तिगत हमले मे सबकी दिलचस्पी हो, और चुनाव आते-आते धर्म संसद राम मंदिर की हुंकार भरती नजर आए। राष्ट्रवाद को चुनावी पैंतरा बना दिया जाए और भारत माता की जय कहने तक का उपयोग चुनावी सभा से इसलिए कर दिया जाए ताकि सामने वाले को अराष्ट्रवादी बताया जा सके।
ये कैसी रणनीति बनाई जा रही है जिसमें विकास प्राथमिकता में नही है तथा व्यक्तिगत हमले व धर्म की राजनीति सर्वोपारि है। भविष्य के लिए नीति क्या है, भविष्य उज्ज्वल कैसे बनेगा, स्वास्थ्य और शिक्षा जिनमें समाजवादी नितियां होनी चाहिए उनमें पूंजीवाद हावी है ये कैसे कम होगा। इन मुद्दों पर अगर चुनावी चर्चा होगी तो किसी को कोई लाभ नही होगा क्योंकि अंतत: तो हमाम में सभी नंगे है इसलिए धुव्रीकरण करना ही सही विकल्प है और ये भारतीय राजनीति का चरित्र सा बनता जा रहा है।
वैसे इस तरह की रणनीति के पीछे स्पष्ट कारण है कि ये फायदेमंद साबित होती है अर्थात इस तरह के बेफालतू मुद्दो को भी जनता तवज्जो देती है तथा मिडिया इन्हे लेकर लंबे-लंबे कार्यक्रमों के माध्यम से इस रणनीति को हवा देने का काम करता है मीडिया की अपनी TRP की मजबूरियां है जिसके चलते उसे वे सभ प्राथमिकता से दिखाना पडता है जिसे देखने में दर्शकों का रूझान हो।
इस तरह की राजनीति समाज के लिए और प्रगति के लिए घातक होती है इससे पीछा छुड़ाने के तथा असल मुद्दो पर केंद्रित करने के लिए जरूरी है कि हमारे द्वारा ऐसी बातों पर ध्यान न दिया जाए और मिडिया द्वारा इन्हे तवज्जो न दी जाए जिससे दलों को ये चाल विफल होती नजर आए और उन्हें पता चले कि अब ये सभ आगे चलने की गुंजाइश नही है अब उन्हें जनता से जुडे मुद्दो पर जवाबदेह होना पड़ेगा। अंत में सभी दलों के लिए कुछ पंक्तियां याद आती है किः-
तू इधर उधर की बात न कर………
यह बता की काफिला क्यूं लूटा………
हमें रहजनो से गिला नही…………
तेरी रहबरी पर सवाल है ………….

कल्पित हरित

Thursday, 8 November 2018

चुनावी चौसर-2019


जैसे जैसे लोकसभा आम चुनाव नजदीक आ रहे है वैसे-वैसे राजनैतिक दलो में हलचल तेज होती जा रही है, हर कोई अपने हिसाब से बिसात बिछाने की कोशिश मे है और उसी के अनुसार अपनी चाले तय कर रहा है। कहीं हिन्दु होने का दंभ भरा जा रहा है तो कंही जातिगत समीकरण तलाशे जा रहे है तो कंही गठबंधन की सुगबुगाहट तेज हो चली है।
इन सभ के बीच 2014 में प्रमुख भूमिका मे रहा विकास इस बार अपनी बारी का इंतजार कर रहा है कि मेरी चर्चा कब कौन और कैसे करेगा।
हाल मे जिस तरह का माहौल नजर आ रहा है उसमे कई सियासी चाले नजर आ रही है जैसे-
1.     हिन्दुः- देश मे कांग्रेस मंदिर-मंदिर जाकर अपने आप को हिंदु दिखाने का प्रयास कर रही है। 2014 के चुनाव की समीक्षा के बाद ये बात मुख्य तौर से उभर कर आई कि कांग्रेस की एंटी हिन्दु छवि उसकी हार का बड़ा कारण है। वंही दुसरी ओर B.J.P सियासत की तो शुरूआत ही हिंदु और कमण्ड़ल की राजनीति से हुई है तो B.J.P का तो एजेंडा ही सामने वाले को नकली हिंदु साबित करना है इसी रणनीति के तहत कुछ दिन पूर्व ही B.J.P ने राहुल गांधी के गोत्र का मुद्दा उठाया था। इसके अलावा देश में 80 प्रतिशत जनसंख्या लगभग हिन्दु ही है तो बहुसंख्यक वर्ग होने के कारण हिंदु विरोधी छवि कोई निर्माण नही करना चाहता बल्कि हिंदु हितैषी अपने आप को सबित करना आज की मांग है।
2. रामः- राम तो आज से नही बल्कि दशको से भारतीय राजनीति के मुख्य किरदार रहे है। सबसे बड़े राज्य यूपी जहां लोकसभा की सबसे अधिक 80 सीटे है वहां की राजनीति में इनका प्रभाव इतना है कि चुनाव आते ही बयानबाजी का दौर और मंदिर निर्माण की हवाई बाते शुरू हो जाती है। इस बार मुश्किल B.J.P के लिए यह है कि राम के मुद्दे पर संत समाज, अपने खुद के साथी शिवसेना, संगठन RSS  और विश्व हिंदु परिषद सभी सुप्रीम कोर्ट के ढीले रवैये के बाद कानुनी रूप से राम मंदिर पर अड़ गये है। राम को लेकर देश में विपक्ष है ही नही जो आज के दौर मे राम मंदिर का विरोध करे साथ ही राज्य व केंद्र दोनो मे B.J.P की सरकार है इन सभ अनुकुल परिस्थितियों के होते हुए भी यदि राम मंदिर न बने तो ये B.J.P के लिए मुश्किल का सबब हो सकता है।
वंही दुसरी ओर विपक्ष इसे अलग तरह से देख रहा है, उनका मानना है कि चुनाव नजदीक आते ही राम मंदिर की याद आना स्वभाविक नही है यह चुनावी पैंतरा है जिससे हिंदु धुव्रीकरण करने का प्रयास B.J.P करेगीं।
 अगर हिंदु धुव्रीकरण वाली विपक्ष की बात सही है तो राम के नाम पर हिन्दु वोट पाने की चाल B.J.P के लिए रामबाण साबित हो सकती है परन्तु अगर ये चाल उल्टी पड़ी और राम मंदिर न बनने से हिंदु B.J.P से खफा हुआ तो राम मंदिर ही B.J.P के लिए सबसे बड़ा सियासी नुकसान साबित होगा।
विकासः- 2014 की चुनावी चालो मे सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में विकास ही था लगभग हर मंच से विकास की बात की जाती थी और कांग्रेस को कम विकास करने तथा अधिक भ्रष्टाचार करने के लिए कोसा जाता था लेकिन अबकि बार विकास अपनी बारी का इंतजार कर रहा है क्योंकि इस बार उसे कोई नही पुंछ रहा है बिते साढ़े चार सालो मे सैंकडो योजनाएं घोषित की गई पर उनकी चर्चा इस बार चुनाव में करने से सताधारी दल बचता नजर आ रहा है वहीं विपक्ष चाहता है कि बात विकास की हो ताकि गिरता रूपया, डीजल की कीमते, मंहगाई,योजनाओ का क्रियान्वयन , बेरोजगारी दिखाकर विकास के मॉडल को फेल बताया जा सके।
4 राफेलः- इस डील के जरिए सता पक्ष को दगदार और भ्रष्टाचारी बताने का पूर्ण प्रयास किया जा रहा है, जिस तरह से हर मंच से इसका जिक्र हो रहा है उसमे लगता तो ऐसा है कि 2019 में मुख्य चुनावी चाल ये साबित होगा। इसकी जानकारी आम जनता तक पहुंचाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है क्योंकि अभी तक भ्रष्टाचार को लेकर B.J.P की छवि लगभग साफ सुथरी है।
राफेल के साथ साथ बैंको का पैसा लेकर विदेश भागे लोगो का सता से गठजोड़ साबित कर भी विपक्ष B.J.P को भ्रष्टाचार मे लिप्त बताने के प्रयास में है। इसी रणनीति के तहत राफेल को सीधे प्रधानमंत्री पर तथा भगोडो को भारत से बाहर भगाने को लेकर मंत्रियो पर जुबानी हमले किए जा रहे है।
5 महागठबंधनः- इस चुनावी चाल के गर्त में आंकडों का गणित छुपा हुआ है जिससे हर विपक्षी दल को लग रहा है कि यदि साथ मिल कर चले तभी नैया पार होगी वरना अपने अस्तित्व का संकट पैदा हो जायेगा।
पिछली बार 2014 में B.J.P को 31.3 प्रतिशत वोट मिला जबकि कांग्रेस को 19.5 प्रतिशत व समाजवादी पार्टी को 3.4 प्रतिशत , BSP को 4.2 प्रतिशत TMC को 4.7 प्रतिशत तथा अन्य को  37.7 प्रतिशत वोट मिले यदि SP,BSP,TMC व कांग्रेस के वोट मिला दिये जाए तो B.J.P के बराबर 31 प्रतिशत बैठता है इसके अलावा B.J.P की साढे चार साल की एंटी इनकमबैन्सी व क्षेत्रीय दल जिनके पास बड़ा वोट बैक 37.7 प्रतिशत का है इनमे से भी कुछ को मिलाकर यदि बड़ा गठबंधन बना लिया जाए तो 2019 मे मजबूत चुनौती पेश की जा सकती है इसी कारण विभिन्न विपरित विचाराधाराओ वाले दल आपस में गठबंधन बनाने को आतुर नजर आ रहे है।
जहां एक ओर आंकडो के लिहाज से गठबंधन की रजनीति विपक्ष को सकुन देने वाली है वंही इसमे कई समस्यांए भी है जैसे गठबंधन का नेता कौन होगा जो सभी को स्वीकार्य हो, सभी की विचारधाराएं एक दुसरे से अलग-अलग है, सीटो का बंटवारा किस प्रकार होगा आदि। पर अगर ये गठबंधन बनता है तो ये चुनावी चाल देखने लायक और अनुठा नायाब प्रयोग होगा क्योंकि राजनीति में दो और दो चार ही हो ये अवश्य नही और वोट प्रतिशत सीटो मे बदले ये भी तय नही होता है।
6 नेता V.s नेताः- आज के दौर मे नरेन्द्र मोदी जी के बराबर कद वाला ताकतवर नेता जो मोदी की छवि से टकरा सके जिसे सर्वमान्य नेता कहा जा सके ऐसा कोई दिखाई नही पड़ता इसलिए B.J.P का प्रयास रहता है कि चुनाव को मोदी V.s विपक्षी नेता के रूप मे बना दिया जाये जिससे मोदी के नाम पर वोट लिये जा सके जबकि विपक्ष की चाल है कि चुनाव मुद्दो, विकास और योजनाओं के क्रियान्वयन, आर्थिक मुद्दो पर केंद्रित हो जाये। अपनी इसी चाल के तहत B.J.P प्रवक्ता अधिकतर मोदी राहुल की तुलना करते है और डिबेटो में सोनिया, राहुल पर निजी हमले करते है।
जैसे-जैसे समय बीतेगा इस चुनावी शतरंज में नई-नई चाले सामने आती रहेंगी, समीकरण बनते बिगड़ते रहेंगे, शह और मात का खेल दिलचस्प होता जायेगा और हो भी क्यो न 2019 सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनावी साल है। तो आप भी मजा लिजिए इस खेल का क्योंकि इस खेल की अंतिम चाल आखिर आपको ही चलनी है जो तय करेगी की कौन जीता , कौन हारा।

कल्पित हरित

Tuesday, 9 October 2018

राम


26 अक्टूबर से राम मंदिर पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट मे शुरू होने वाली है  लिहाजा राम को लेकर देश मे राजनैतिक रण तो शुरू होना तय है। हर कोई श्रीराम के जरिए अपने आप को सामने वाले से बड़ा हिन्दु सबित करने की कोशिश करेगा।
राम तो अयोध्या के राजा थे और उनका राज्य एक आर्दश राज्य माना जाता था और उन्हीं राम के नाम पर नब्बे के दशक मे शुरू हुई राजनीति ने कईयो को राजनीति के शिखर तक भी पहुँचाया परन्तु राजनीति से परे भी राम का भारतीय समाज मे महत्वपूर्ण दर्जा है जो आस्था से जुड़ा है।
राम भारतीय संस्कृति मे आर्दशवादिता के प्रतीक है जीवन चक्र कैसा होना चाहिए कर्म और कर्तव्यों का पालन व उनके मध्य सामंजस्य कैसे बैठाना है इसकी शिक्षा आज भी रामायण के माध्यम से बड़े बुजुर्गो द्वारा घर की युवा पीढ़ी मे संचरित की जाती है।
आज जब देश मे अपराधो, उत्पीड़नो के आंकड़ो मे निरंतर बढोतरी हो रही है तो यह प्रमाण है कि राम आज केवल सियासत तक ही सीमित होकर रह गये है  उनके द्वारा स्थापित आदर्शों पर कोई जोर नही देता जिस कारण मर्यादा पुरूषोतम राम के आदर्शों से समाज दुर होता जा रहा है।
राम को मर्यादा पुरूषोतम कहा जाता है अर्थात मर्यादाओं का पालन करने वाले व पुरूषों मे सबसे उतम पुरूष। परन्तु जो तस्वीरे आज हमे दिखाई देती है उनमे मर्यादाए तो तार-तार है तथा उतम पुरूष कोरी कल्पना लगती है आज के दौर मे आवश्यकता राम को समझने की है तथा उनके द्वारा बनाये गये मार्ग पर चलने की है।

वाल्मिकी रामायण( बालकाण्ड़, सर्ग-1 , श्लोक-18)
इक्ष्वाकुवंश्प्रभावो रामो नाम जैनैश्श्रतुः।

नित्यामा महावीर्यो, दयुतिमान्धृतिमान वशी।

यह रामायण का वो पहला शलोक है जिसमे श्रीराम के गुणों का वर्णन है। इस श्लोक मे महर्षि वाल्मिकी द्वारा भगवान श्रीराम के वंश की जानकारी व उनके गुणों के बारे मे बताया गया है।
अर्थात राजा इक्ष्वाकुश के वंश मे जन्मे जिन्हें लोग राम के नाम से जानेगे तथा उनमे निम्न गुण है- नित्यात्मा, माहावीर्य, दयुतिमान, धृतिमान, वशी ।
नित्यात्मा- इसका अर्थ है स्थिर प्रकृति । चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो विकट या सरल वो हर परिस्थिति मे एक समान है। श्रीराम के जीवन काल मे कई कठिनाइयां आई पर अपने आदर्शों मे वह सदैव अड़िग रहे।
महावीर्यः(अद्वितीय कौशल) - राज्य का शासन कैसा हो इसके लिए अगर आज भी कोई उदहारण दिया जाता है तो जिक्र आता है रामराज्य का जो उनके शासन कौशल का प्रमाण है। प्रजा मे उनके लिए कोई भेदभाव नहीं था आज के राजनेताओं को श्रीराम के इस गुण को अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
दयुतिमान (स्वयं प्रकाशमान)- जिस प्रकार सूर्य स्वंय प्रकाशमान है और सदियों से हम उससे ऊर्जा प्राप्त करते आ रहे है और करते रहेंगे उसी प्रकार श्रीराम का चरित्र एक आर्दश चरित्र है। भ्राता, पुत्र, राजा, हर पात्र मे कर्तव्य का निर्वहन किस तरह करना है इसका मार्ग श्रीराम का प्रकाशमान चरित्र हमेशा बताता रहेगा।
धृतिमान(स्वयं पर नियंत्रण)- अपनी आत्मा की आवाज को सुनकर अपने निर्णय लेने की क्षमता । जो निर्णय किसी के प्रभाव मे आकर नहीं लिए जाए और ऐसे निर्णयो पर खुद का पूर्ण नियंत्रण हो।
वशी(इंद्रियों पर नियंत्रण)- मनुष्य द्वारा इंद्रियों पर नियंत्रण कर सात्विक जीवन व्यतीत किया जा सकता है साधारण मनुष्य से संत बनने की प्रकिया केवल इंद्रियों पर नियंत्रण द्वारा संभव है। श्रीराम के इस गुण का ही समाज मे सबसे ज्यादा हास्व हुआ है। बढ़ते उत्पीड़न, शोषण के मामले इंद्रियों पर नियंत्रण न होने का दोष है जो दीमक बनकर नैतिकता की जड़े कमजोर कर रहा है।
इस प्रकार श्रीराम के ऐसे अनेको गुण है जो आज हमे और समाज को अपनाने की आवश्यकता है यदि हम इन गुणो  को नही अपनाते तो यकिन मानिए श्रीराम केवल मंदिरों और मंदिर की सियासत तक सिमट कर ही रह जायेंगें हमे श्रीराम के आदर्शों को गुणों को अपने जीवन मे लाने का प्रयास करना होगा ताकि सशक्त समाज का निर्माण हो जो श्रीराम के आदर्शों पर आधारित हो।
मंदिर कहां बनेगा कैसे बनेगा ये अभी भविष्य का प्रशन है लेकिन श्रीराम भक्त होने के नाते मेरा मन इस बात का पूर्ण समर्थन करता है कि "जहां जन्मे राम लला मंदिर वंही बने" और श्रीराम के आर्दश सारे विश्व मे प्रचारित हो।

कल्पित हरित  

Saturday, 28 July 2018

“स्कूल जाने से होगा क्या ?”

कॉलेज के पास थडी पर बैठे बैठे बातो का सिलसिला लगभग रोज कि सी ही बात थी पर आज चाय में स्वाद रोज सा न था तो एक मित्र ने अचानक से कहा आज चाय सुरेन्द्र ने नहीं बनायीं है|
सुरेन्द्र बड़ी अच्छी चाय बनता है और लगभग रोज पीते पीते उसकी चाय की आदत सी हो गयी थी | आज सुरेन्द्र शायद आया नहीं था काम पे , तो मालुम हुआ कि आज किसी  रिश्तेदार की शादी में गया है और दो  दिन बाद आएगा | वास्तव में चाय की थडी किसी और की थी और सुरेन्द्र तो बस वहां काम करता था पर प्रसिद्धी तो सुरेन्द्र की ही थी | लोग उसे सुरेन्द्र की थडी के नाम से ही जानते थे |
हम जैसे अंजानो को तो बहुत समय तक ऐसा लगता था शायद ये थडी सुरेन्द्र के पिता की है | कई दिनों से थडी पर बैठने के कारण घुल मिल सा  गया था और ऐसा लगता था जैसे वह भी अपने  ही कॉलेज का सहपाठी ही हो | पर सुरेन्द्र केवल 12-13 वर्ष का एक बालक था|
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सुरेन्द्र वैसे तो उम्र में  मात्र 12-13 साल का बालक था पर शायद परिस्थितियों ने उसे परिपक्व बना दिया था| बालपन की नादानिया और चंचलता से दूर वह काफी गंभीर था जिन्दगी की कठनाइयो में बचपन की रौनक धूमिल हो चुकी थी और समय से पूर्व ही वयस्कता तथा व्यवहार में गंभीरता आ गयी थी |
वैसे कुछ ज्यादा बात वो करता नहीं था बस अपने ही काम से काम रखता था | एक बार की बात थी जब एक मित्र ने उससे कहा कि क्या यार सुरेन्द्र सारे दिन काम ही करता है आ थोड़ी देर बैठ बाते करें तो सुरेन्द्र ने तुरंत उत्तर दिया कि तुम चाय तो पिलाते नहीं हो क्या बात करू ! मुझे उसी दिन मालुम हुआ की ये तो बस यंहा काम करता है अर्थात बाल मजदूरी का उदहारण हमारे समक्ष मौजूद है |
उत्सुकता बढ़ी और मन में कई सवाल थे कि आखिर किन कारणों से ये यंहा काम करता है तो आसपास के लोगो और थडी पे रोज आने वाले कुछ ख़ास लोगो से पता किया तो मालुम हुआ कि सुरेन्द्र के पिता उसके साथ नहीं है माता और एक छोटा भाई है | पिता किसी पराई महिला के साथ उन्हें छोड़कर कहाँ चले गए उसका कोई पता किसी को नहीं है | सरकारी पेंशन जो उसकी माँ को विधवा मानकर दी जाती है वह केवल 750/- रूपए थी जिसमे दो बच्चो के साथ गुजर बसर मुश्किल था अलबत्ता छोटी उम्र से ही सुरेन्द्र ने यंहा कार्य करना शुरू कर दिया था |
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विधि के विद्यार्थी होने के कारण हम महाविद्यालय परिसर में कितनी ही समानता की बात कर ले बहार आते ही सारी  समानता सुरेन्द्र की परिस्थितियों के आगे केवल किताबी बाते नजर आने लगी थी तो कई दिनों से एक और सवाल मन में था कि सुरेन्द्र स्कूल जाता है कि नहीं क्योकि अक्सर दिन के समय वो थडी पर काम करता ही नज़र आता था | परन्तु अभी तक इस सवाल का जवाब ढूँढना बाकी था |
आखिर एक दिन पूंछ ही लिया कि क्यों सुरेन्द्र तू  स्कूल जाता है क्या ?” पर उत्तर में सुरेन्द्र ने पलट कर  सवाल ही  कर लिया कि स्कूल जाने से क्या हो जाएगा  ?” अब उसके सवाल का कोई उत्तर मेरे पास नहीं था कि अगर वो स्कूल जाकर भविष्य की सोचे तो वर्तमान का क्या होगा और क्या स्कूल चले जाने मात्र से सबकुछ बदल जाएगा |
उसके सवाल का जवाब आज भी मेरे पास नहीं है ?................

कल्पित हरित


Tuesday, 22 May 2018

बिन पानी सब सून







रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून |

अगर चौथा विश्वयुद्ध होगा तो वो पानी को लेकर होगा |

तो पानी को लेकर कभी कबीर दास जी ने सोचा तो कभी आधुनिक दौर मे आइंस्टीन जी ने भी चेताया और अपनी चिंताए जाहीर की | अगर पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता की ही कमी होती है तो कई सामस्याए स्वत: ही उत्पन्न हो जाएंगी जिनमे सम्पन्न वर्ग धन के आधार पर अपने हितो को साधेगा , असमानता बढ़ेगी और संघर्ष की स्थिति सीधे टकराव तक पहुँच सकती है | शायद इसी की कल्पना करते हुए आइंस्टीन जी ने चौथे विश्वयुद्ध की कल्पना की थी |
जल संरक्षण को लेकर कोई नीति होनी चाहिए , जल के अपव्य को रोकने के लिए नियम कानून होने चाहिए क्योकि जल अगर प्राक्रतिक संसाधन है तो सभी का उसपर बराबर का हक है और अपव्य की इजाजत किसी को दी नहीं जा सकती | अलबत्ता घरो मे बोरिंग लगा कर पानी के अंधाधुंध उपयोग , तथा अपव्यय आपको कई श्हरों मे कई जगह देखने को मिल जाएँगे पर इन पर रोक कैसे लगे इसका जवाब खोजे नहीं मिले क्योंकि जल के अपव्यय रोकने को लेकर कोई सोच हमने विकसित की ही नहीं शायद इसके पीछे एक कारण ये भी हो सकता है कि पानी मुफ्त का है , जो मुफ्त का है उसकी कोई कीमत हम समझते नहीं है या उसके अपव्यय से हमे कोई फर्क पड़ेगा नहीं , इस तरह कि सोच कि ओर हम बढ़ चले है |
भारत एक विकासशील देश है और चकाचौंध तथा आधुनिकता को विकास का पैमाना माना जाता है और ये वर्तमान की जरूरत भी है | फिर भी मूलभूत आवश्यकताओ और प्रक्रति को दरकिनार करके ऐसा नहीं किया जा सकता , विकास के नाम पर कंकरीट के जंगल खड़े कर दिये जाये ओर उसी अनुपात मे पेड़ लगाने कि ज़िम्मेदारी किसी की न हो , जमीन से पानी का अंधाधुंध दोहन हो जाये और जल संरक्षण के लिए उसकी कोई ज़िम्मेदारी तय न हो तो हम क्या माने कि विकास की चकाचोंध सभ्यता के अंत की ओर ले जा रही है ?   
Central GROUND WATER REPORT 2013  बताती है कि 411 (bcm = billion cubic meter ) ग्राउंड वॉटर की उपलब्धता पूरे देश मे है| जिसका मुख्य स्त्रोत मानसून मे होने वाली वर्षा है , लगभग 58% जल धरती मे वर्षा से आता है |
देश के कुल 4% कुएं अपना जल स्तर 4 मीटर बढ़ा पाये है तो 35% का स्तर 4 मीटर से कम बढ़ा है तथा 64% के जल स्तर मे गिरावट आई है औसत जल स्तर भी घाटा है | इसके बावजूद हर साल 251 cubic kilometer  जल धरती से निकाला जाता है जो कि देश के सबसे बड़े भाखडा बांध की क्षमता से 26 गुना ज्यादा है |
UN education scientific and cultural orgnisation की 2010 की रिपोर्ट ये कहती है कि ग्राउंड वॉटर का उपयोग करने मे भारत एक नंबर पर है तथा चाइना से 124% अधिक जमीनी जल का उपयोग भारत करता है |
देश मे जमीनी जल का स्तर घट रहा है पर बोतल बंद पानी का कारोबार 4000 करोड़ के पार कर चुका है |
जब आंकड़े ये कहानी बनया करते है तो तीन प्रश्न उभर के जहन मे आते है कि 1- जब जमीनी जल का उपयोग इतनी excess मे हो रहा है तो इस अनुपात मे इसे बढ़ाने के क्या उपाय किए जा रहे है ?
2- जो लोग जमीनी जल का उपयोग कर रहे है उनके द्वारा आवश्यक रूप से जल संरक्षण के उपाय किए जाये इसे लेकर कोई नियम या कानून नहीं होना चाहिए ?
3- अनावश्यक रूप से जमीनी जल का उपयोग करने से रोकने के लिए कोई कानून है जिसका पालन सख्ती से किया जाए ?
जल संरक्षण आज आवश्यकता ओर महत्व का प्रश्न है जिसके लिए सरकारी पर्यतन जरूरी है ताकि इस विषय के प्रति नीति बनाई जा सके और अनुपालना उचित तरह से हो जिसमे सामूहिक सहयोग द्वारा लक्ष्यो की पूर्ति की जाये| मानसून का मौसम आने ही वाला है जिस प्रकार पूर्व मे सरकार द्वारा कई कार्यो को सामाजिक सरोकार से जोड़ा गया उसी प्रकार इस विषय को भी जोड़ा जाना चाहिए |
अगर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो वह वक़्त दूर नहीं जब :-
 “सब पानी पानी होगा , बस पानी नहीं होगा” 

कल्पित हरित

Wednesday, 21 February 2018

काफिला क्यों लुटा

ललित मोदी ने IPL कमिशनर रहते तथा BCCI में रहते हुए वितीय गड़बड़ियाँ की| ललित मोदी की वसुंधराराजे से काफी नजदीकिया थी और उन्ही के पहले कार्यकाल के दौरान मोदी RCA  का अध्यक्ष बना पर अब वो लन्दन में जिन्दगी मज़े से जी रहा है|
माल्या ने बैंको को 9000 करोड़ का चुना लगाया और वे भी विदेश में मज़े से जी रहे है पर भाजपा कहती है कि माल्या को loan कांग्रेस के समय दिया गया यंहा तक की तत्कालीन प्रधानमंत्री जी ने बैंको को kingfisher airlines को loan देने की सिफारिश की थी|
नीरव मोदी की पहुच तो सिस्टम में इस हद तक थी कि बैंक अधिकारियों ने passward तक उसे बता दिए और 150 के करीब LOU (LETTER OF UNDERSTANDING) फर्जी तरीके से जारी कर उसने विदेशी ब्रांचो से PNB की गारंटी पर loan ले लिया और 11000 करोड़ लेकर चम्पत हो गया |
बाकि ये तो कुछ मोटी मोटी मछलिया है न जाने कितनो ने कैसे कैसे बैंको को चुना लगाया जिनका नाम जारी करने को बैंक तैयार नहीं है| ये वही बैंक है जो किसान के कुछ हज़ार के क़र्ज़ की वसूली के लिए उनके घर भाड़े के गुंडे भेजते है और नोटिस बोर्ड तक पे नाम चस्पा कर देते है पर कोई INDUSTRALIST कितना खा गया इसकी जानकारी देने में परहेज़ करते है |
वैसे बीते दो साल में (2015 -17) में बैंको में SBI में सबसे ज्यादा 2466, PNB में 471 फ्रॉड हुए | परन्तु फिर भी बैंको  की सेहत खराब न हो और बैलेंस शीट सही बनी रहे इसके लिए सरकार बैंको  की मदद करती है जिसके तहत पिछले वर्ष सरकार ने 2.11 लाख करोड़ बैंको की सेहत सुधारने के लिए सरकारी खजाने से दिए जो की TAX PAYER का पैसा है | अगर सब कुछ  ठीक रहता तो इस पैसे का उपयोग विकास कार्यो के लिए होता |
अब आप पुरे खेल को समझने की कोशिश कीजिये | देश में लोकतंत्र है और सत्ता में आने या बने रहने के लिए चुनाव जीतना होता है चुनाव जितने के लिए प्रचार और प्रचार के लिए पैसा पानी की तरह बहाना पड़ता है तो राजनैतिक पार्टियों को पैसा चंदे के रूप में मिलता है और चंदा CORPORATES देते है | यही CORPORATES चुनाव जीतने के बाद बैंक से loan लेते है तथा सरकारी नीतियों को प्रभावित करते है  |  इसी लिए LOAN से कारोबार करते है बाज़ार में चमक और धमक के साथ उतरते है मुनाफा कमाते है पर LOAN नहीं चुकाते और इनके द्वारा लिए गए loan की भरपाई सरकार करती है |
बात तो ध्यान देने की ये भी है कि इनके पास ऐसा कौन सा ख़ुफ़िया तंत्र है जो FIR दर्ज होने का पता लगा कर कुछ ही दिनों पहले विदेश भाग जाते है | आप पर कार्यवाही होने वाली है इसकी पूर्व सुचना किस माध्यम से इन्हें मिलती है | क्योकि अगर आप देखे तो नीरव मोदी के पुरे परिवार ने FIR होने के कुछ दिनों पूर्व ही थोड़े थोड़े समयांतराल में देश छोड़ दिया  और विजय माल्या तो थोड़े समय और देश में रहता तो वो पकडे जाता पर उन पर FIR उनके विदेश जाने के कुछ घंटो बाद ही दर्ज हुई |
सरकार अब हर प्रेस वार्ता में यही बता रही है कि 2011 का घोटाला है हमने तो इसे उजागर किया है और इसका श्रे लेने से नहीं चुक रही |
घोटाला उजागर होने वाला है और कार्यवाही होने वाली है इसकी पूर्व सुचना कैसे घोटालेबाजो तक पहुच गयी इसका कोई जवाब नहीं दे रही है या हो सकता है इसका जवाब उनके पास हो ही नहीं |
तो अंत में हमें बस एक  फिराक जलालपुरी  का शेयर याद आता है :-
तू इधर उधर की न बात कर ये बता काफिला  क्यु लुटा
मुझे रहजनो से गिला नहीं तिरी रहबरी पर सवाल है |”


कल्पित हरित  

Sunday, 7 January 2018

किसान और किसानी





भारत भले ही कृषि प्रधान देश हो और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था कहलाता हो पर जब उत्तर से दक्षिण तक चाहे राजस्थान , छत्तीसगढ़ ,UP, महाराष्ट्र , तमिलनाडु कोई सा भी राज्य हो अगर हर जगह किसान सडको के रास्ते संघर्ष कर रहा है तो सोचने का विषय है कि दुसरो का पेट पालने के लिए उत्पादन करने वाले का खुद का जीवन इतना कष्टप्रद क्यों होता जा रहा है ?
अगर आंकड़ो की बात की जाए तो देश में जितने किसान 1951 में थे  2011 census के अनुसार उनमे 50 % की कमी आई है | GDP में कृषि का योगदान लगातार घटता जा रहा है | कृषि मजदूरों की संख्या दुगनी हो गयी है | कृषि छोड़कर किसान  शहरो में जाकर मजदूरी करना ज्यादा मुनासिब समझ रहे है | देश में 12000 किसान लगभग हर साल खुदखुशी कर लेते है | किसान अपनी आने वाली पीढियों को किसान के रूप में देखना नहीं चाहते और देश में किसानी करना सबसे अलाभप्रद तथा घाटे का सौदा बनता जा रहा है |
कृषि सुधारो को लेकर बनी स्वामीनाथन कमेटी की 2006 में आई रिपोर्ट ये कहती है कि :- किसानो को समर्थन मूल्य लागत का  50% होना चाहिए | किसानो की कमाई  कम से कम एक civil Servant के बराबर होनी चाहिए | कृषि  उत्पादों के लिए घरेलु तथा अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार होना चाहिए और भारत को एकल बाज़ार व्यवस्था की और बढ़ना चाहिए | किसान technology से लैस होना चाहिए |
स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट 2006 से सरकारी खजाने में धुल फांक रही है और देश अगड़े पिछड़े की राजनीत में व्यस्त है | इस स्थिथि में सड़क के सहारे संघर्ष के अलावा कौन सा रास्ता है जो किसानो को अपना हक़ दिलवा सकता है ?
आज किसानो को लेकर देश के सामने तीन महत्वपूर्ण प्रशन है :-
1.     मरता किसान
2.     घटता किसान
3.     न्यूनतम के लिए लड़ता किसान
मरता किसान :- जब जिन्दगी इतनी कठिन हो जाए कि जीना मुश्किल लगने लगे और मरना आसान रास्ता तो उस परिस्थिति की कल्पना कर पाना मुश्किल है पर किसान की किसी भी खुदखुशी का जिक्र  कर लीजिये अंततः कर्ज का बोझ , फसल बर्बादी , उचित दाम न मिलना अर्थात खुदखुशी का कारण आर्थिक ही होता है |आर्थिक रूप से किसानो को मजबूत करने के लिए दो स्तर पर प्रयास आवश्यक है पहला  उत्पादन में वृधि और दुसरा उत्पाद को बेचने के लिए बाज़ार की उचित व्यवस्था |
स्वामीनाथन रिपोर्ट के सुझाव के अनुसार हमें एकल बाज़ार व्यवस्था करनी होगी जहाँ किसान अपना सीधे उत्पादको तथा ग्राहकों तक पहुचाये और जो उत्पाद वो उत्पादित कर रहा है उसके लिए कौन से ग्राहक मौजूद है उसकी जानकारी technology के माध्यम से उसे उपलब्ध हो |
ऐसी एक शुरुआत E-NAAM नामक पोर्टल बना कर सरकार द्वारा की गयी थी पर न तो इसका बड़े स्तर पर प्रचार किया गया और न ही किसानो को प्रशिक्षित किया गया | फलत: इसका कोई लाभ किसानो को नहीं हुआ | होना तो ये चाहिए की हर राज्य में एक  एकल बाज़ार व्यवस्था हो ताकि वहाँ के छोटे बड़े किसान मजबूर ,असहज किसान के तर्ज पर नहीं बल्कि कुशल व्यापारी की तर्ज पर अपना माल बेच सके |
घटता किसान :- किसान की छवि कुछ इस तरह की गढ़ दी गयी है कि हर किसी के जहन में किसान नाम से एक मजबूर , गरीब ,शोषित व्यक्ति का चेहरा उभर ही आता है तो कैसे आप भावी पीढ़ी से किसानी करने की उम्मीद कर सकते है | जबकि किसान तो उद्योगों के लिए कच्चा माल उत्पादित करता है वह तो अपने आप में एक enterpenure होना चाहिए  परन्तु किसानी करना देश में passion ही नहीं है जो ज्यादा पढ़ जाता है वह किसानी करेगा नहीं तो जिसके पास कोई रास्ता बचता नहीं है वह अंत में किसान बनता है और किसानी करता है |
अतः भावी पीढ़ी में कृषि के प्रति रुझान उत्पन्न करना अत्यंत आवश्यक है ताकि TECHNOLOGY से युक्त , मैनेजमेंट में दक्ष अगली पीढ़ी इस कृषि प्रधान देश में कृषि को ऐसे BUSINESS MODEL के रूप में उभार सके जंहा असीम संभावनाए  और लाभ हो वरना आज की परिस्थितियो के अनुसार अगर देश में किसानो की संख्या में कमी आती रही तो भविष्य में देश के कृषि प्रधान होने की बात सवालिया घेरे में होगी |
 न्यूनतम के लिए लड़ता किसान :- किसान की आय कम से कम से कम इतनी तो होनी चाहिए कि वे अपने जीवन स्तर में सुधार कर सके , अपने बच्चों की शिक्षा , स्वास्थ्य , रहन-सहन आदि पर खर्च कर सके | स्वामीनाथन आयोग कि सिफारिश भी यही है की कम से कम आय एक civil servent  के बराबर होनी ही चाहिए | परन्तु वर्तमान में तो हर राज्य में किस्सान सडको पर अपना उत्पाद फ़ेंक फ़ेंक कर प्रदर्शन कर रहे है क्योकि उनको उत्पादों के दाम मिल नहीं पा रहे ,या उत्पादों को खरीदने के लिए ग्राहक नहीं मिल रहे या फिर वे सरकारी समर्थन मूल्य से असंतुष्ट है अर्थात सड़क पर किसान न्यूनतम के लिए लड़ता ,संघर्ष करता नजर आ रहा है |
वास्तव में आज किसनी एक आर्थिक संकट के दौर में है जहां किसान द्वारा उत्पादित उत्पादों का उपयोग कर बड़ी – बड़ी कंपनिया करोडो का मुनाफा कम जाती  है पर किसानो को उचित दाम  नहीं मिलता | किसानो की हालत खस्ता है पर बिचोलियों के वारे न्यारे है |
कल्पित हरित