भारत मे प्राइवेट स्कूली शिक्षा का कारोबार लगभग 8 लाख करोड़ का है तो सरकारी शिक्षा बजट 46 हज़ार करोड़ का जबकि 18 करोड़ मे से 11 करोड़ बच्चे सरकारी स्कूलो मे पढ़ते है। प्राइमरी के 87% और उच्च कक्षाओं के 95% बच्चे प्राइवेट टयुशन लेते है। भारत इस किस्म का शायद एक मात्र ऐसा देश है जिसमे शिक्षा का निजीकरण इस हद तक हो चला है कि ये सबसे मुनाफे वाली इंडस्ट्री बन गयी है। ASSOCHAM कि 2013 कि रिपोर्ट के अनुसार देश मे कोचिंग isdustrइंडस्ट्री 23.4 BILLION कि है जो 2015 तक 50 BILLION पार करेगी जबकि देश मे उच्च शिक्षा बजट 30 हज़ार करोड़ है।
तो प्रधान मंत्री जिस युवा भारत का जिक्र लगभग हर मंच से करते है और उसके सहारे नए भारत कि कल्पना करते है उस युवा भारत कि आँखों मे कई सपने है चाहे वो नौकरी पाने का हो या उच्च शिक्षण संस्थान मे प्रवेश लेने का और हर सपना बाज़ार मे बिकने को तैयार है। युवा भारत और उसके अभिभावक हर कीमत पर सपनो को खरीदना चाहते है। एक मिडिल क्लास अपनी कमाइ का एक तिहाई बच्चो कि शिक्षा पर खर्च करते है।
जब सब कुछ ही दाव पर लगा दिया जाता है और सफलता नजर नहीं आती तो आत्महत्या एकमात्र रास्ता और मौत सबसे सही विकल्प लगने लगता है। जो रोज बढती आत्महत्या कि घटनाओं मे प्रघटित होता है। वैसे हमें कोचिंग से इंडस्ट्री से कोई परेशानी नहीं है। हमारी संवेदना तो शिक्षा के उस model की तरफ है जो युवा भारत को ये विशवास नहीं दिला पा रहा कि अगर आप शिक्षा बाज़ार मे उपभोक्त नहीं बन सकते तब भी आपके सपने पुरे हो सकते है।
इसमें क्या कोई ऐसा रास्ता है जो उच्च शिक्षण संस्थांनो/उच्च पदों के लिए होने वाली दौड़ को बाज़ार से निकाल कर उसे झुग्गियो, झोपड़ियो ,मजदूरी करने वाले बच्चो और समाज के निम्नतम वर्ग के बीच लाकर खड़ा कर दे । ताकि वे भी सपने देख सके और विपरीत परिस्थितियो मे भी कम से कम उम्मीद कर सके, सपने पुरे होने कि।
समाधान का रास्ता फिर उसी और जाता है जिसका सपना मौजूदा सरकार ने दिखाया है “डिजिटलाइजेशन” जहा ग्लोबल गाँव परिकल्पना नहीं भविष्य कि वास्तविकता है कयोकि हर तबके तक जो अच्छे शिक्षको तक पहुँच नहीं सकते वंहा मुफ्त मे इन्टरनेट से शिक्षक पहुच सकता है। कंप्यूटर के माध्यम से पढ़ा भी जा सकता है और पढाया भी जा सकता है। डिजिटल माध्यमो से कौशल विकास को अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुचाया भी जा सकता है।
परन्तु आवश्यकता जमीनी स्तर तक ऐसा डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की है जिसमे डिजिटलाइजेशन कि पहुच ग्राम पंचायत स्तर तक हो। वर्तमान आवश्यकताओ को देखते हुए देश के लिए पृथक डिजिटल शिक्षा निति पर विचार होना चाहिए। ताकि हर वो सपना चाहे वो IIT का हो , नौकरी पाने का हो उसके लिए युवा भारत को बाज़ार मे उसे खरीदने न जाना पड़े और वो सपना उसे अपने गाँव/नगर मे बिना किसी कीमत के मौजूद हो सके। इसके लिए प्रयास दोनों यानी केन्द्रीय व जमीनी दोनों स्तर पर आवश्यक है जहा केंद्र और राज्य विभिन्न प्रत्योगी परीक्षाओं/कौशल से सम्बंधित डिजिटल पाठ्यक्रम तैयार करे तथा जमीनी स्तर पर नगर पालिकाए /पंचायत डिजिटल LABs बनवाकर, जिनमे ऐसे कंप्यूटर हो जो तैयार पाठ्यक्रम से लेस हो के माध्यम से इन्हें पहुचाने का प्रयास करे।
आर्थिक रूप से कोई ग्रामीण या नगरीय इकाई इतनी कमजोर नहीं होगी जो कुछ कंप्यूटर या इन्टरनेट खर्च वहन न कर सके। नियत से कमजोर हो तो हम कह नहीं सकते हो सकता है कई ग्रामीण या नगरीय इकाइयों कि परिस्थितयो अनुसार अन्य महत्वपूर्ण प्रथमिकताए हो पर अधीकतर समर्थ ही है।
शायद इन प्रयासों से हम उस समानता कि तरफ एक कदम बढ़ सके जिसका जिक्र प्रस्तावना से मूलाधिकारो तक विधि निर्माताओ ने किया है।
“हंगामा खड़ा करना मेरा उद्देश नहीं ,
कोशिश ये है कि ये तस्वीर बदलनी चाहिए”
कल्पित हरित