विपक्ष मुक्त भारत
2014 के पशचात यदि बिहार, जहाँ
दो धुर विरोधी केवल बी.जे.पी को रोकने के लिए साथ आ गए और दिल्ली जहाँ एक नए
राजनैतिक विकल्प के चलते आम आदमी पार्टी को सत्ता मिली; इनके अतिरिक्त लगभग हर
चुनाव चाहे वो UP,उतराखंड हो या BMB,DMC असम,मणिपुर हर चुनाव BJP के बढ़ते कद का गवाह बना। UP, DMC उतराखंड आदि मे मिली प्रचंड जीते और देश के मानचित्र के लगभग 60% मे BJP की सरकारे वर्तमान मे है
तो प्रधानमंत्री द्वारा देखा गया “कांग्रेस मुक्त भारत” का सपना निकट भविष्य मे साकार हो सकता है।
संकट कांग्रेस मुक्त भारत को लेकर नहीं पर कमजोर होती
विपक्ष कि राजनीत का है जो विपक्ष मुक्त भारत कि और बढ़ चला है वर्तमान मे हर
राजनैतिक दल स्वय के आंतरिक संकट से जूझ रहा है और सशक्त विपक्ष के तौर पर काम
नहीं कर पा रहा है।
कांग्रेस अपने संघटनात्मक परिवर्तन मे व्यस्त है और
कांग्रेस के सामने अपने नेताओ को साथ रखना एक चुनौती है। हाल ही मे जिस तरह बड़े
नेता जिनमे रीता बहुगुणा,N.D तिवारी,अरमिन्दर लवली जैसे दिग्गज भी शामिल है BJP मे शिफ्ट हुए है जो शीर्ष
नेतृत्व से होते मोह भंग को दर्शाता है। लगातार हर चुनाव मे गिरता प्रदर्शन और
पुनः जनता मे विशवास उत्पन करना भी उसके लिए चुनौती है। प्रभावी नेतृत्व और निचले
स्तर पर संघटनात्मक ढाचे कि कमजोरी के कारण कोई भी मुद्दा जन आन्दोलन का व्यापक
रूप नहीं ले पा रहा है जिस प्रकार पिछली सरकारों मे अन्ना आन्दोलन जैसे जन
अन्न्दोलानो ने सरकार को परेशान किया था।
अन्य विपक्षी दलों मे समाजवादी पार्टी बाप-बेटे-चाचा के
झगड़ो से बाहर नहीं निकल पा रही है मुलायम जी को लगता है हार कि वजह अखिलेश को
मुख्यमंत्री बनाना तथा कांग्रेस से हाथ मिलाना था तो अखिलेश का कहना है कि ये साथ लम्बा
चलेगा। वही चाचा शिवपाल अपनी नयी पार्टी बनाने के मूड मे है। इन्ही के चलते विपक्ष
के रूप मे जो मुद्दे उठाने चाहिए वे गौण हो चले है।
जब कोई मुद्दा बन नहीं पा रहा तो सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री
जी ने कहा कि गुजरात के सैनिक शहीद क्यो नहीं हो रहे है एसे बयान प्रमाण है कि
विपक्ष के तौर पर इनकी स्तिथि कितनी कमजोर है।
BSP मे बयानों का सिलसिला लगातार जारी है और कौन किस को
ब्लाक्मैलर साबित कर सकता है इसकी लड़ाई जोरो पर है।
दिल्ली मे बैठी आप के तो आप हाल पूछे ही मत 2015 मे जिस प्रचंड बहुमत के
साथ वो आये तो एक नए राजनितिक विकल्प के रूप मे उन्हें देखा जाने लगा और ये वे ही
केजरीवाल थे जिनके शपथ ग्रहण मे लोग कह रहे थे आज का CM कल का PM। अपनी महत्वकान्शाओ,पार्टी
का विस्तार ,कभी राज्यपाल,कभी मोदी और अपनी आंतरिक कलहो मे पार्टी जनता से दूर
होती चली गयी। विधानसभाओ और DMC मे मिली हार ने तो पार्टी के शीर्ष नेतृतव तक मे आपसी मतभेद उत्पन कर दिए
कहने का मतलब है कि ये पार्टी भी अपनी परेशानियों से ही जूझ रही है ।
वाही बिहार मे RJD प्रमुख चारे मे फसे है और उनके बेटे-बेटी सम्पति मामले मे रेड
का सामना कर रहे है जिसे वह केंद्र कि साजिश बता रहे है और शराबबंदी तथा नोटबंदी
पर नितीश और मोदी साथ दिखाई पढ़ते है अर्थात सत्ता मे साथ होते हुए भी लालू नितीश
दोनों कि धराए अलग अलग है।
हालांकि विपक्ष का थोडा बहुत शोर जो राज्य सभा मे सुनाई
पड़ता है वो भी थोड़े समय मे 2018 मे राज्यसभा मे बहुमत के साथ शांत हो जाएगा।
कुल मिलकर कहा जा सकता है कि देश का विपक्ष बेहद कमजोर
स्थिति मे है जो लोकतंत्र के लिए एक खराब स्थिति है गांधीजी का मानना था कि
लोकतंत्र “ बहुमत कि तानाशाही है” अतः मजबूत लोकतंत्र के लिए सशक्त विपक्ष अति आवश्यक है।
अपने आंतरिक संकटों से जूझ रही विपक्षी पार्टिया किसी भी
मुद्दे को व्यापक नहीं बना पा रही है। इस दौर मे आंदोलनों का अभाव भी स्पष्ट दिखाई
पड़ता है। चाहे किसानो कि आत्महत्या का मामला हो या गौरक्षाको का या लोकपाल
नियुक्ति का किसी भी मुद्दे पर सरकार को घेरने मे और जन चेतना पैदा करने मे असमर्थ
रहा है। कई बार तो सुप्रिम कोर्ट ने सरकार कि कार्यप्रणाली पर सवाल किये है फटकार
लगाई है पर विपक्ष हर बार एसे मुद्दों को हतियाने मे असमर्थ रहा है और BJP कि होती लगातार जीते प्रमाण
है कि आज भी जनाधार पर उसकी पकड़ मजबूत है। हर जीत सरकार के काम पर जनता के समर्थन
का प्रतिक है।
उम्मीद विपक्ष को इस बात से है कि 2019 मे अगर सभ एकजुट हो जाये
तो BJP के जनाधार को पछाड़ सकते है
पर हाल ही मे हुए (मुख्यत UP) चुनावो मे जिस प्रकार राजनैतिक समीकरण टूटे है उन्होंने ये संकेत दिया है कि
भविष्य मे चुनाव जाति,धर्म,ध्रुवीकरण से हटकर विकास VISION और मुद्दों पर आधारित
होंगे कयोकि युवा भारत मे सोच बदल रही है बदलती सोच के बीच पारंपरिक राजनीत को भी
बदलना होगा। जनहित के मुद्दे उठाने होगे विकास कि बात करनी होगी और मुद्दों के सहारे
जुड़ाव जनता से बनाना होगा।
आज जरुरत है विपक्ष को अपनी जिम्मेदारिया समझने कि सशक्त
रूप से जनसमस्याओ को उठाने कि यदि विपक्ष जनसमस्याओ को नही उठाएगा तो उसकी
लोकतंत्र मे भूमिका रहेगी ही नहीं।
वर्तमान मे BJP और मोदी के बढ़ते कद के सामने पस्त होता विपक्ष अपनी
राजनीति नहीं बदलेगा तो संभवता कांग्रेस मुक्त भारत का सपना जल्द ही “विपक्ष मुक्त भारत” का रूप ले सकता है जो BJP के लिए भले सही स्थिति हो पर लोकतंत्र के लिए कमजोर स्थिति का घोतक होगा।
कल्पित हरित