Monday, 11 April 2022

जिसकी लाठी उसकी भैंस



पुरानी कहावत है जिसकी लाठी उसकी भैंस। यहां लाठी हथियार है जो शक्ति प्रदान करती है और शक्ति के बल पर ही प्रभुत्व स्थापित किया जा सकता है। ठीक यही हथियारों की होड आज विश्व मे देखने को मिल रही है। जिसमे हर देश अपने हथियारों के बेडे में मजबूत से मजबूत अस्त्र जोड लेना चाहता है ताकि वह शक्तिशाली नजर आये और किसी की हिम्मत उसकी संप्रभुता को डिगाने की न हो सके।

यूक्रेन रूस युद्ध मे यूक्रेन को नाटो में शामिल न होने देने की अपनी शर्त को मनवाने के परिणामस्वरूप रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया जिस जंग को आज लगभग एक महीने से भी ज्यादा समय हो गया है। संघर्ष इतना लंबा खिंचने के पीछे स्पष्ट रूप से यूक्रेन को प्राप्त अमेरिकी समर्थन है तो कुल मिलाकर अनऔपचारिक रूप से इस युद्ध में अमेरिका और रूस दो महाशक्तियां अपने को ज्यादा शक्तिशाली साबित करने की लडाई लड रही है।

दुसरी ओर अगर आप विश्व के हथियारों के एक्सपोर्ट के आंकडों की बात करें तो रूस व अमेंरिका यही वह दो देश है जो विश्व मे सबसे ज्यादा हथियार दुसरे देशो को बेचते है और जब नंबर एक और नंबर दो आमने सामने है तो ये जंग हथियारों के बाजार में अपना वर्चस्व बनाने के लिहाज से भी खासी महत्वपूर्ण है। अमेरिका द्वारा युद्ध के बहाने जहां रूस पर कई प्रतिबंद्ध लगाकर हथियारों के बाजार मे अपनी धाक जमाने की कोशिश होगी तो रूस युद्ध मे अपने प्रदर्शन के आधार पर उसके हथियारो की कुशलता साबित करना चाहेगा ताकि भविष्य मे उसके हथियारों की मांग बढे।

इन सभ परिस्थितियों के बीच एक प्रशन यूनाइटेड नेशन्स जैसी संस्थाओं को लेकर भी है जिनकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शांति की स्थापना के लिए हुई थी। ये संस्थांए आज महाशक्तियों को रोक पाने में असक्षम साबित हुई है। इन संस्थाओं की इस नाकामी ने अन्य छोटे देशो को संदेश गया है कि अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए शक्ति को बढाना ही एकमात्र तरीका है।

लाठी जितनी मजबूत होगी संप्रभुता को खतरा उतना ही कम होगा और लाठी बेचने वाले इस तनाव को बनाये रखने का प्रयास करते रहेगे ताकि बाजार में उनकी बनायी लाठिया बिकती रहें। हथियारों के बाजार में हथियार बनाने वाले ही ऐसी स्थितियां पैदा करते है जिससे हथियारो की मांग बनी रहे और उत्पादन की खपत होती रहे और यही युद्धों के पीछे छुपा अर्थशास्त्र है।

कल्पित हरित