Monday, 8 July 2019

पॉलिश वाला


भैया थोडा आगे तक छोड़ देगे।  सुबह 10 बजे का लगभग वक्त था। सरकारी स्कूलों का समय यही होता है। हाथ में बस्ता और मैली सी शर्ट ,टांके लगी पेंट और पैरों में हवाई चप्पल शायद कोई सरकारी स्कूल का विद्यार्थी होगा जो स्कूल के लिए लेट हो रहा है।
हां जरूर छोड़ देंगे बैठो! स्कूल जा रहे हो, नही। तो फिर कहां , वो जो आगे कचहरी वाली रोड पे जो ऑफिस है वहां, वहां कैसे ,मैं पॉलिश करता हूँ | कहां आफिस के बाहर नहीं आफिस के अन्दर जाकर।
कौन पॉलिश कराता है वहां, साहब लोग करा लेते है। रोज, नहीं कभी कोई कभी कोई,   काली, भूरी दोनो रंग की पॉलिश है तेरे पास। हां दोनो हैं पर मैं सफेद जूतो को भी पानी से बहुत साफ कर देता हूं। मेरे जूते सफेद थे उसने ये देख लिया था। आज शुरूआत यहीं से हो जाये ये समझ कर अपना पहला ग्राहक मुझमे ही तलाशने लगा। कचहरी वाली रोड़ के आगे ही बड़ा पेस्ट ऑफिस वहां नहीं जाता क्या तू। पहले गया था पर वहां घुसने नही देते इसलिए नहीं जाता।
वैसे रहता कहां है, नेहरू नगर, कच्ची बस्ती में , हां वहीं ,परिवार में कौन कौन है, चार भाई और दो बहने, तु सबसे छोटा है क्या, हां, क्या उम्र होगी तेरी, 11 साल का हूं। भाई भी काम पर जाता होगा, सभी जाते है। आप इस तरफ जाओगे क्या नही मूझे दूसरी तरफ जाना है, अच्छा तो मुझे यहीं उतार दो।
इसे सलाह दूं कि स्कूल जाया कर पर ये वास्तविकता से परे एक बेवजह की नसीहत ही होगी दिमाग ने तुरंत दिल के इस तर्क का खंडन कर दिया अक्सर दिमाग के तर्क प्रभावी हुआ करते है। सुन इस रोड़ के आगे से उल्टे हाथ पर जाकर एक बिल्डींग आती है वो देखी है तुने, हां देखी है पता है वहां बहुत सारे लोग आते है, शहर का सबसे बड़ा सरकारी कॉलेज है वो और वहां कोई अंदर जाने से भी नहीं रोकेगा। ठीक है जा आउंगा।
अरे.........अरे........अरे  सुन नाम तो बता जा तेरा बड़ी तेजी से निकल गया शायद ये प्रशन उसने सुना ही नहीं खैर विलियम शैक्सपीयर ने कहा है नाम मे क्या रखा है कुछ भी रख लिजिए” तो फिर पॉलिश वाला ही सही।



कल्पित हरित