जैसे
जैसे लोकसभा आम चुनाव नजदीक आ रहे है वैसे-वैसे राजनैतिक दलो में हलचल तेज होती जा
रही है, हर कोई अपने हिसाब से बिसात बिछाने की
कोशिश मे है और उसी के अनुसार अपनी चाले तय कर रहा है। कहीं हिन्दु होने का दंभ
भरा जा रहा है तो कंही जातिगत समीकरण तलाशे जा रहे है तो कंही गठबंधन की सुगबुगाहट
तेज हो चली है।
इन
सभ के बीच 2014 में प्रमुख भूमिका मे रहा विकास इस
बार अपनी बारी का इंतजार कर रहा है कि मेरी चर्चा कब कौन और कैसे करेगा।
हाल
मे जिस तरह का माहौल नजर आ रहा है उसमे कई सियासी चाले नजर आ रही है जैसे-
1.
हिन्दुः- देश मे कांग्रेस मंदिर-मंदिर जाकर अपने आप को हिंदु दिखाने का
प्रयास कर रही है। 2014 के चुनाव की समीक्षा के बाद ये बात
मुख्य तौर से उभर कर आई कि कांग्रेस की एंटी हिन्दु छवि उसकी हार का बड़ा कारण है।
वंही दुसरी ओर B.J.P
सियासत की तो शुरूआत ही हिंदु और कमण्ड़ल की राजनीति से हुई है तो B.J.P का तो एजेंडा ही सामने वाले को नकली
हिंदु साबित करना है इसी रणनीति के तहत कुछ दिन पूर्व ही B.J.P ने राहुल गांधी के गोत्र का मुद्दा
उठाया था। इसके अलावा देश में 80 प्रतिशत
जनसंख्या लगभग हिन्दु ही है तो बहुसंख्यक वर्ग होने के कारण हिंदु विरोधी छवि कोई
निर्माण नही करना चाहता बल्कि हिंदु हितैषी अपने आप को सबित करना आज की मांग है।
2. रामः-
राम तो आज से नही बल्कि दशको से भारतीय राजनीति के मुख्य किरदार रहे है। सबसे बड़े
राज्य यूपी जहां लोकसभा की सबसे अधिक 80
सीटे है वहां की राजनीति में इनका प्रभाव इतना है कि चुनाव आते ही बयानबाजी का दौर
और मंदिर निर्माण की हवाई बाते शुरू हो जाती है। इस बार मुश्किल B.J.P के लिए यह है कि राम के मुद्दे पर संत
समाज, अपने खुद के साथी शिवसेना, संगठन RSS और विश्व हिंदु परिषद सभी सुप्रीम
कोर्ट के ढीले रवैये के बाद कानुनी रूप से राम मंदिर पर अड़ गये है। राम को लेकर
देश में विपक्ष है ही नही जो आज के दौर मे राम मंदिर का विरोध करे साथ ही राज्य व
केंद्र दोनो मे B.J.P की सरकार है इन सभ अनुकुल परिस्थितियों के होते हुए भी यदि राम
मंदिर न बने तो ये B.J.P के लिए मुश्किल का सबब हो सकता है।
वंही दुसरी ओर विपक्ष इसे अलग तरह से देख रहा
है, उनका मानना है कि चुनाव नजदीक आते ही
राम मंदिर की याद आना स्वभाविक नही है यह चुनावी पैंतरा है जिससे हिंदु धुव्रीकरण
करने का प्रयास B.J.P करेगीं।
अगर
हिंदु धुव्रीकरण वाली विपक्ष की बात सही है तो राम के नाम पर हिन्दु वोट पाने की
चाल B.J.P के लिए रामबाण साबित हो सकती है परन्तु अगर ये चाल उल्टी पड़ी और
राम मंदिर न बनने से हिंदु B.J.P से खफा हुआ तो राम मंदिर ही B.J.P के लिए सबसे बड़ा सियासी नुकसान साबित
होगा।
3 विकासः- 2014 की
चुनावी चालो मे सबसे महत्वपूर्ण भूमिका में विकास ही था लगभग हर मंच से विकास की
बात की जाती थी और कांग्रेस को कम विकास करने तथा अधिक भ्रष्टाचार करने के लिए
कोसा जाता था लेकिन अबकि बार विकास अपनी बारी का इंतजार कर रहा है क्योंकि इस बार
उसे कोई नही पुंछ रहा है बिते साढ़े चार सालो मे सैंकडो योजनाएं घोषित की गई पर
उनकी चर्चा इस बार चुनाव में करने से सताधारी दल बचता नजर आ रहा है वहीं विपक्ष
चाहता है कि बात विकास की हो ताकि गिरता रूपया, डीजल
की कीमते, मंहगाई,योजनाओ का क्रियान्वयन , बेरोजगारी
दिखाकर विकास के मॉडल को फेल बताया जा सके।
4 राफेलः- इस डील के जरिए सता पक्ष को दगदार और
भ्रष्टाचारी बताने का पूर्ण प्रयास किया जा रहा है, जिस तरह से हर मंच से इसका जिक्र हो रहा है उसमे लगता तो ऐसा है कि 2019 में मुख्य चुनावी चाल ये साबित होगा।
इसकी जानकारी आम जनता तक पहुंचाना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है क्योंकि अभी तक
भ्रष्टाचार को लेकर B.J.P की छवि लगभग साफ सुथरी है।
राफेल
के साथ साथ बैंको का पैसा लेकर विदेश भागे लोगो का सता से गठजोड़ साबित कर भी
विपक्ष B.J.P को
भ्रष्टाचार मे लिप्त बताने के प्रयास में है। इसी रणनीति के तहत राफेल को सीधे
प्रधानमंत्री पर तथा भगोडो को भारत से बाहर भगाने को लेकर मंत्रियो पर जुबानी हमले
किए जा रहे है।
5 महागठबंधनः- इस चुनावी चाल के गर्त में आंकडों का
गणित छुपा हुआ है जिससे हर विपक्षी दल को लग रहा है कि यदि साथ मिल कर चले तभी
नैया पार होगी वरना अपने अस्तित्व का संकट पैदा हो जायेगा।
पिछली
बार 2014 में B.J.P को 31.3 प्रतिशत वोट मिला जबकि कांग्रेस को 19.5
प्रतिशत व समाजवादी पार्टी को 3.4 प्रतिशत , BSP को 4.2
प्रतिशत TMC को
4.7 प्रतिशत तथा अन्य को 37.7
प्रतिशत वोट मिले यदि SP,BSP,TMC व कांग्रेस के वोट मिला दिये जाए तो B.J.P के बराबर 31 प्रतिशत बैठता है इसके अलावा B.J.P की साढे चार साल की एंटी इनकमबैन्सी व
क्षेत्रीय दल जिनके पास बड़ा वोट बैक 37.7
प्रतिशत का है इनमे से भी कुछ को मिलाकर यदि बड़ा गठबंधन बना लिया जाए तो 2019 मे मजबूत चुनौती पेश की जा सकती है
इसी कारण विभिन्न विपरित विचाराधाराओ वाले दल आपस में गठबंधन बनाने को आतुर नजर आ
रहे है।
जहां
एक ओर आंकडो के लिहाज से गठबंधन की रजनीति विपक्ष को सकुन देने वाली है वंही इसमे
कई समस्यांए भी है जैसे गठबंधन का नेता कौन होगा जो सभी को स्वीकार्य हो, सभी की विचारधाराएं एक दुसरे से
अलग-अलग है, सीटो का बंटवारा किस प्रकार होगा आदि।
पर अगर ये गठबंधन बनता है तो ये चुनावी चाल देखने लायक और अनुठा नायाब प्रयोग होगा
क्योंकि राजनीति में दो और दो चार ही हो ये अवश्य नही और वोट प्रतिशत सीटो मे बदले
ये भी तय नही होता है।
6 नेता V.s नेताः- आज के दौर मे नरेन्द्र मोदी जी के
बराबर कद वाला ताकतवर नेता जो मोदी की छवि से टकरा सके जिसे सर्वमान्य नेता कहा जा
सके ऐसा कोई दिखाई नही पड़ता इसलिए B.J.P का प्रयास रहता है कि चुनाव को मोदी V.s विपक्षी नेता के रूप मे बना दिया जाये
जिससे मोदी के नाम पर वोट लिये जा सके जबकि विपक्ष की चाल है कि चुनाव मुद्दो, विकास और योजनाओं के क्रियान्वयन, आर्थिक मुद्दो पर केंद्रित हो जाये। अपनी
इसी चाल के तहत B.J.P प्रवक्ता अधिकतर मोदी राहुल की तुलना करते है और डिबेटो में सोनिया, राहुल पर निजी हमले करते है।
जैसे-जैसे
समय बीतेगा इस चुनावी शतरंज में नई-नई चाले सामने आती रहेंगी, समीकरण बनते बिगड़ते रहेंगे, शह और मात का खेल दिलचस्प होता जायेगा
और हो भी क्यो न 2019 सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनावी साल है।
तो आप भी मजा लिजिए इस खेल का क्योंकि इस खेल की अंतिम चाल आखिर आपको ही चलनी है
जो तय करेगी की कौन जीता ,
कौन हारा।
कल्पित हरित