राम तो अयोध्या के राजा थे और उनका राज्य एक आर्दश राज्य माना जाता था और उन्हीं राम के नाम पर नब्बे के दशक मे शुरू हुई राजनीति ने कईयो को राजनीति के शिखर तक भी पहुँचाया परन्तु राजनीति से परे भी राम का भारतीय समाज मे महत्वपूर्ण दर्जा है जो आस्था से जुड़ा है।
राम भारतीय संस्कृति मे आर्दशवादिता के प्रतीक है जीवन चक्र कैसा होना चाहिए कर्म और कर्तव्यों का पालन व उनके मध्य सामंजस्य कैसे बैठाना है इसकी शिक्षा आज भी रामायण के माध्यम से बड़े बुजुर्गो द्वारा घर की युवा पीढ़ी मे संचरित की जाती है।
आज जब देश मे अपराधो, उत्पीड़नो के आंकड़ो मे निरंतर बढोतरी हो रही है तो यह प्रमाण है कि राम आज केवल सियासत तक ही सीमित होकर रह गये है उनके द्वारा स्थापित आदर्शों पर कोई जोर नही देता जिस कारण मर्यादा पुरूषोतम राम के आदर्शों से समाज दुर होता जा रहा है।
राम को मर्यादा पुरूषोतम कहा जाता है अर्थात मर्यादाओं का पालन करने वाले व पुरूषों मे सबसे उतम पुरूष। परन्तु जो तस्वीरे आज हमे दिखाई देती है उनमे मर्यादाए तो तार-तार है तथा उतम पुरूष कोरी कल्पना लगती है आज के दौर मे आवश्यकता राम को समझने की है तथा उनके द्वारा बनाये गये मार्ग पर चलने की है।
वाल्मिकी रामायण( बालकाण्ड़, सर्ग-1 , श्लोक-18)
इक्ष्वाकुवंश्प्रभावो रामो नाम जैनैश्श्रतुः।
नित्यामा महावीर्यो, दयुतिमान्धृतिमान वशी।
अर्थात राजा इक्ष्वाकुश के वंश मे जन्मे जिन्हें लोग राम के नाम से जानेगे तथा उनमे निम्न गुण है- नित्यात्मा, माहावीर्य, दयुतिमान, धृतिमान, वशी ।
⦁ नित्यात्मा- इसका अर्थ है स्थिर प्रकृति । चाहे परिस्थितियां कैसी भी हो विकट या सरल वो हर परिस्थिति मे एक समान है। श्रीराम के जीवन काल मे कई कठिनाइयां आई पर अपने आदर्शों मे वह सदैव अड़िग रहे।
⦁ महावीर्यः(अद्वितीय कौशल) - राज्य का शासन कैसा हो इसके लिए अगर आज भी कोई उदहारण दिया जाता है तो जिक्र आता है रामराज्य का जो उनके शासन कौशल का प्रमाण है। प्रजा मे उनके लिए कोई भेदभाव नहीं था आज के राजनेताओं को श्रीराम के इस गुण को अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
⦁ दयुतिमान (स्वयं प्रकाशमान)- जिस प्रकार सूर्य स्वंय प्रकाशमान है और सदियों से हम उससे ऊर्जा प्राप्त करते आ रहे है और करते रहेंगे उसी प्रकार श्रीराम का चरित्र एक आर्दश चरित्र है। भ्राता, पुत्र, राजा, हर पात्र मे कर्तव्य का निर्वहन किस तरह करना है इसका मार्ग श्रीराम का प्रकाशमान चरित्र हमेशा बताता रहेगा।
⦁ धृतिमान(स्वयं पर नियंत्रण)- अपनी आत्मा की आवाज को सुनकर अपने निर्णय लेने की क्षमता । जो निर्णय किसी के प्रभाव मे आकर नहीं लिए जाए और ऐसे निर्णयो पर खुद का पूर्ण नियंत्रण हो।
⦁ वशी(इंद्रियों पर नियंत्रण)- मनुष्य द्वारा इंद्रियों पर नियंत्रण कर सात्विक जीवन व्यतीत किया जा सकता है साधारण मनुष्य से संत बनने की प्रकिया केवल इंद्रियों पर नियंत्रण द्वारा संभव है। श्रीराम के इस गुण का ही समाज मे सबसे ज्यादा हास्व हुआ है। बढ़ते उत्पीड़न, शोषण के मामले इंद्रियों पर नियंत्रण न होने का दोष है जो दीमक बनकर नैतिकता की जड़े कमजोर कर रहा है।
इस प्रकार श्रीराम के ऐसे अनेको गुण है जो आज हमे और समाज को अपनाने की आवश्यकता है यदि हम इन गुणो को नही अपनाते तो यकिन मानिए श्रीराम केवल मंदिरों और मंदिर की सियासत तक सिमट कर ही रह जायेंगें हमे श्रीराम के आदर्शों को गुणों को अपने जीवन मे लाने का प्रयास करना होगा ताकि सशक्त समाज का निर्माण हो जो श्रीराम के आदर्शों पर आधारित हो।
मंदिर कहां बनेगा कैसे बनेगा ये अभी भविष्य का प्रशन है लेकिन श्रीराम भक्त होने के नाते मेरा मन इस बात का पूर्ण समर्थन करता है कि "जहां जन्मे राम लला मंदिर वंही बने" और श्रीराम के आर्दश सारे विश्व मे प्रचारित हो।
कल्पित हरित