गांधी जी का मानना था “लोकतंत्र बहुमत की
तानाशाही है ” ये कथन अपने आप में ही
लोकतांत्रिक व्यवस्था में मजबूत विपक्ष और सशक्त मीडिया की भूमिका को परिलक्षित
करता है पर क्या आप किसी विपक्ष से ये उम्मीद कर सकते है की वो निष्पक्ष हो सकता
है क्योकि उसकी निगाहे सदैव सत्ता के दरवाजे तक पहुचने पर होती
है तो विपक्ष केवल उसे ही सच कहेगा जो
उसके उसके राजनैतिक फायदे के लिए हो ।
एसे में लोकतंत्र की मजबूती के लिए स्वतंत्र और
निष्पक्ष विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका है जो सही को सही और गलत को गलत निर्भीकता
के साथ कह सके ताकि बहुमत वाली सत्ता बैखोफ होकर तानशाह न बन जाए ।
मीडिया की भूमिका दबाव समूह की है जो जनता की
आवाज़ को, परेशानियों को, दर्द को और
आवश्यकताओ को सत्ता के कानो तक पहुचाती है
और उनके हितो में काम करने के लिए
सत्ता पर दबाव बनाती है परन्तु सत्ता अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत
है उसके पास प्रशाशन है जिसका उपयोग वह अपने खिलाफ उठने वाली आवज़ को दबाने के
लिए करती है। अतः स्वतंत्र,निष्पक्ष और
निर्भीक पत्रकारिता ठीक वैसी है जैसे जंगल में रह कर शेर से बैर करना ।
अगर वर्तमान परस्थितियों की बात करे तो चाहे
केंद्र हो या राज्य विपक्ष की स्थिति कमजोर है और सत्ता बहुमत के साथ अधिक ताकतवर
जिसने पत्रकारिता के मार्ग को और भी कठिन बना दिया है
“माना अँधेरा घाना है ,
पर दिया जलाना कंहा
मना है ”
अँधेरा भले कितना ही घाना क्यों न हो सत्ता
चाहे कितनी भी बैखोफ होने की कोशिश करे पर जब तक निष्पक्ष और स्वतंत्र
पत्रकारिता रूपी दिया जल रहा है तब तक उम्मीद की जा सकती है की जनहित में अन्याय
और गलत के खिलाफ आवाज़ उठती रहेगी फिर चाहे वो नौकरशाही को बचाने के लिए काला कानून
हो , बेरोजगारी का मुद्दा हो, GST के नियम हो
,अर्थव्यवस्था की स्तिथि हो ,किसानो की आत्महत्या हो। चाहे सत्ता को इनसे कितना भी
बुरा क्यों न लगे।
वैसे भी इस देश में पत्रकारिता का गौरवशाली इतिहास रहा है जिसमे
ब्रिटिश काल से अब तक हर विपरीत परिस्थितियो में फिर चाहे वो imergency का दौर भी
हो , कलम की ताकत से गलत और अन्याय के
खिलाफ आवाज़ बुलंद होती आई है इसी का
ताज़ा उदहारण है “जब तक काला तब तक
ताला”।
ये गौरवशाली परंपरा इसी तरह जारी रहेगी इसी उम्मीद के
साथ ................................