Saturday, 7 October 2017

देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव





चुनाव एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है परन्तु भारतीय परिपेक्ष में चुनाव केवल प्रक्रिया नहीं बल्कि उत्सव है ये उत्सव पुरे पांच साल देश में कही न कही चलता रहता है और ख़ास बात ये है कि  चुनाव किसी भी राज्य का हो उसके अक्स को महसूस पूरा देश करता है ।
चुनाव चाहे यूपी,बिहार ,दिल्ली,उतराखंड मणिपुर पंजाब ,हरियाणा ,राजस्थान कंही का भी हो चौपालों घरो नुक्कड़ो से लेकर राष्ट्रीय न्यूजो चैनल तक पर चुनावो से पूर्व के अनुमान और बाद के परिणामो पर चर्चा होती है अर्थात राजनैतिक रूप से आम जन में चेतना और सरकारी नीतियों के प्रति पक्ष और विपक्ष सोचने की स्थिथि  चुनाव के माध्यम से अनायास ही बन जाती है । इसी कारण केंद्र में सत्ता पक्ष राज्य चुनावों में सफलता को  अपनी प्रशासनिक और योजनाओ की सफलता से जोड़ता है तो विपक्ष इन चुनावों में सफलता को अपनी बढती लोकप्रियता से जोड़ता है।
अगर सीधे अर्थो में समझे तो ये निरंतर चुनाव देश में राजनैतिक शुन्यता नहीं आने देते। जिस कारण विपक्ष अपनी भूमिका अदा कर पाता है । वैसे भी लोकतंत्र में विपक्ष की अपनी भूमिका है उसका महत्वपूर्ण स्थान है क्योकि बिना विपक्ष की सत्ता तो लोकतांत्रिक तानाशाही के सामान है और विपक्ष ही है जो इस तानाशाही पर लगाम लगाने का कार्य करता है और हर बरस होने वाले चुनाव विपक्ष को अति सक्रिय रहने के लिए ,चुनावी जीत पाने के लिए प्रेरित करते है ।
इसी हर अगले चुनावी रण को जितने के लिए सत्ता उत्तम कार्य करती है ताकि उसी स्वीकार्यता बनी रहे और विपक्ष उसकी गलत नीतियों का विरोध करता है जनता भी अपनी आवाज़ सत्ता के समक्ष पहुचाने के लिए विपक्ष का सहारा लेती है । इन सभ से लोकतंत्र को मजबूती प्राप्त होती है ।
अगर देश में एक साथ चुनाव करा दिए जाते है तो मेरे ख्याल से एक चुनाव से दुसरे चुनाव के मध्य चार  साल के अन्दर राजनैतिक शुन्यता का माहौल  उत्पन होगा तथा सत्ता बिना रोक टोक तानाशाही व्यवहार करने से नहीं चुकेगी ।
हालाकि एक साथ चुनाव करवाने से आर्थिक लाभ अवशय होगा पर इसके लिए लोकतंत्र को कमजोर कर देना ठीक नहीं है

“कल्पित हरित”