तीन तलाक,निकाह
हलाल,बहु विवाह(polygamy)
तीन तलाक(triple talak),निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy) को लेकर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से चार सवाल पूछे है।
1- क्या तीन तलाक(triple talak),निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy) को सविधान के अनुछेद 25 के अंतर्गत मान्यता दी जा सकती है? 2- धार्मिक स्वतन्त्रता और
प्रचार का अधिकार,अनुछेद 14 (समानता के अधिकार) और अनुछेद 21(जीने का अधिकार) के सामान महत्वपूर्ण है?
3- क्या personal laws अनुछेद 13 के अंतर्गत आता है?
4- क्या इन तीनो नियमो कि अनुपालना भारत द्वारा हस्ताक्षर कि गई अंतराष्ट्रीय
संधियों के संगत है?
जब भी तीन तलाक कि बात आती है तो सविधान के मुख्यत 14,13,25,44 अनुछेद का अक्सर जीकर होता
है; तो सविधान का अनुछेद 13 कहता है कि अगर कोई भी कानून मूल अधिकार का हनन करता हो तो इस आधार पर न्यायालय
उसे रद्द कर सकता है I अनुछेद 14 सामानता का मूल अधिकार है
और ये सभी नागरिको के लिए विधि के समक्ष समानता को सुनिश्चित करता है ।
तो सवाल इन्ही को लेकर उठता है कि तीन तलाक(triple talak),निकाह हलाल,बहु विवाह(polygamy) ये एसे नियम है जिन्हें
मुस्लिमं पर्सनल लॉ तो मान्यता देता है पर वास्तिविकता मे ये मुस्लिम महिलाओ के
समानता के अधिकार का स्पष्ट रूप से हनन करते है। अतः सुप्रिम कोर्ट को इनहे
रद्द करना चाहिए। इस पर मुस्लिम लॉ बोर्ड का तर्क ये है कि अनुछेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता और
प्रचार का अधिकार देता है जिस आधार पर देश मे कई हिन्दू मुस्लिम पारसी क्रीशचन आदि
धर्मो के अपने अपने पर्सनल लॉ है और कोर्ट को धर्म से जुड़े मामले मे हस्तक्षेप
नहीं करना चाहिए कयोकि मुस्लिम पर्सनल लॉ पवित्र कुरान पर आधारित है अतः इसमें
परिवर्तन कुरान को वापस लिखने के सामान होगा।
मुस्लिम लॉ बोर्ड कि दलील से लगता तो यही है कि उनकी मंशा इसे
ख़तम करने कि है ही नहीं और ये बड़ा विचित्र भी लगता है जब आज हमारी पूरी कोशिशे महिला
सशक्तिकरण को लेकर है तो इस दौर मे ऐसे कानूनों को तो बिना किसी बहस के ही ख़तम कर दिया
जाना चाहिए था और अब खुद मुस्लिम महिलाओ के विरोध के बावजुद आप किसी तरह तीन तलाक
आदि को सही साबित करने मे लगे है।यहाँ तक कि अन्य इस्लामिक देशो मे पकिस्तान तक मे
भी तीन तलाक मान्य नहीं है I कोई भी सभ्य समाज इसे सवीकार नहीं करेगा कि तीन बार तलाक कह देने के बाद न मात्र
का maintenance और आप इस तरह कुछ मिनटों
मे आप विवाह बंधन से आजाद हो सकते है उसके बाद न आपको कोई मासिक निर्वाहन निधि (alimony) देनी है कयोकि मुस्लिम पर्सनल
लॉ मे इसका प्रावधान नहीं है ।
ये तीन तलाक का मुद्दा बहस का विषय शाह बानो केस के
बाद बना 62 वर्षीय शाह बानो के पति ने
उन्हें पांच बचो सहित छोड़ कर दूसरा विवाह कर लिया और तीन तलाक के माध्यम से उन्हें
तलाक देकर मुस्लिम लॉ के अनुसार 5400 रुपये देकर उन्हें हर महीने निर्वाहन निधि (alimony) देना बंद कर दिया I 1978 शाह बानो ने सुप्रिम कोर्ट मे केस दायर किया जिसका फैसला 1985 मे शाह बानो के पक्ष मे आया
और मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया और इसमें तत्कालीन राजीव गांधी
सरकार ने सुप्रिम कोर्ट के इस निर्णय को कमजोर करने के लिए मुस्लिम वुमन एक्ट 1986 पारित कर दिया जिसमे तलाक
के केवल 90 दिन तक निर्वाहन निधि (alimony) देने कि बात थी बाद मे इस
कानून को एक अन्य मामले मे सुप्रिम कोर्ट ने रद्द कर दिया ।
परन्तु तभी से एक बहस शुरू हुई सामान नागरिक
संहिता (comman
civil code) को लेकर जिस पर आज तक सहमती नहीं बन पायी है पर गोवा एक मात्र ऐसा राज्य है
जिसमे सामान नागरिक संहिता लागू है I सविधान के अनुचेअद 44 मे सामान नागरिक संहिता (comman civil code) का जिक्र है अर्थात देश मे
शादी,तलाक,गोद लेना आदि मामलो मे धर्म से हटकर सभी के लिए सामान कानून होना चाहिए
ताकि सभी के लिए समानता को सुनिश्चित किया जा सके ।
Kalpit harit
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