“हम भारत के लोग” ये पंक्तिया तो भारत के संविधान कि प्रस्तावना
मे सबसे पहली पंक्ति है। जो कहती है कि हम सभ भारत के लोग है तो फिर उठती आजादी कि
मांग और लगते देशद्रोह के आरोपों का मतलब है क्या!
आज के दौर मे कोई उपनिवेशिक सरकार भारत मे नहीं है बल्कि
लोकतान्त्रिक प्रणाली है तो आपको विरोध का पूरा अधिकार है फिर भी जब गुरमेहर सरीखी
कोई लड़की सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरे पोस्ट करती है तो उसे देशद्रोही कह दिया जात
है। ये कहने वाले वे ही लोग है जो उमर खालिद के रामजस आने पर हिंसा भी खूब करते है।
मै खुद व्यक्तिगत
रूप से गुरमेहर के पोस्ट और रामजस मे खालिद का समर्थन नहीं करता और इसका विरोध
करने वालो कि भावनाओ को भी गलत नहीं मानता पर सवाल ये है कि अगर कोई आपके विचारो
से सहमत न हो तो उसे अराष्ट्रवादी(antinationalist) कह देना और हिंसा करने मे
भी कोइ परहेज़ न करना ये किस तरह का राष्ट्रवाद(nationalist) है। आप अपनी अभिव्यक्ति कि आजादी के नाम पर किसी को अराष्ट्रवादी कैसे बता सकते है
कयोकि अभिव्यक्ति के कुछ दायरे है जिसमे आपकी बातो से अन्य किसी कि भावनाए आहात
नहीं होनी चाहिए और दूसरा महत्वपूर्ण सवाल ये है कि क्या राष्ट्रवाद के नाम पर
हिंसा जायज है।
यूनिवर्सिटीज तो वे स्थान है जहा आप वाद विवाद कर सकते है
अपना पक्ष रख सकते है,दुसरो को सुन सकते है और अपनी असहमति जाता सकते है ,अपने
निंदको से भी कुछ सीख सकते है और वैसे भी कबीर दास जी ने कहा है” “निंदक नयारे राखिये आँगन
कुटीर छवाय ,बिन पानी साबुन के निर्मल करे सुहाय” अर्थात लोकतंत्र मे वाद विवाद का महत्त्व क्या होता है ये आप यही सीखेगे कयोकि
यही से पढ़कर आप के हाथो मे देश का भविष्य होगा और राष्ट्रीय राजनीत मे आप दिखाई
देंगे परन्तु अगर आप यहाँ से ही ये सीखेगे कि अपने विरोधियो को कुचल दो ,विरोध कि
आवाजों को अराष्ट्रवादी कह दो तो भारत कि एकता और अखंडता आपके हाथो मे सुरक्षित रह
पाएगी?
ये पंक्तिया रेशमी नगर नाम कि कविता कि है जिसे राष्ट्रीय कवि दिनकर ने नेहरू
कि सत्ता के विरोध मे लिखा था और नेहरु जी के कहने पर ही दिनकर जी ने इस कविता का
पाठ देश कि संसद मे किया था अर्थात उस समय अपने विरोधियो को सुना जात था और विरोध
को समझने का प्रयास होता था न कि विरोधियो को अराष्ट्रवादी कहकर विरोध को दबा दिया जाता था।
हमें यहाँ समझ लेना चाहिए कि देश मे रहने वाला
प्रत्येअक नागरिक राष्ट्रवादी है और कोई भी राष्ट्रविरोधी नहीं है।परन्तु
आज के दौर मे सत्ता अपने को राष्ट्रवादी बताना और दुसरो को अराष्ट्रवादी बताना
चाहती है ताकि उनकी तरफ लोगो का भावनात्मक जुडाव हो सके जिसका फायदा चुनाव मे
उन्हें मिले और शायद ये देश कि राजनीति मे पहली बार होगा जब राष्ट्रवाद को भी वोट
पाने का हथकंडा बनाया जा रहा है।
इस देश मे पैदा होने वाला हर व्यक्ति शुरू से
राष्ट्रवादी है हर किसी को राष्ट्र से प्रेंम
है और हमें बताने कि जरुरत नहीं कि जन गन मन सुनते ही खड़े होना है ये
संस्कार बचपन से हमारे अन्दर बोये जाते है एसे देश भक्ति से भरे देश मे हरियाणा के
मंत्री अनिल विज कहते है कि अगर आप गुरमेहर का समर्थन करते है तो आप pro Pakistani है और JNU मे ABVP के साथ खड़े होकर गायक अभिजीत कहते है
कि इन लोगो को हम यही ठोक देंगे और इन बातो के बावजूद इनके ऊपर कोई एक्शन नहीं
होता, तथाकथित राष्ट्रवादी इनका विरोध भी नहीं करते कयोकि अभिजीत ABVP के साथ खड़े है तो उनको कुछ भी कहने का हक है तो
अब आप सोचिये एक छात्र जो इस देश का नागरिक है उससे प्रेंम करता है अगर केवल इस
वजह से अराष्ट्रवादी कह दिया जाये कयोकि वह social media पे उस पोस्ट का समर्थन करता जिससे आप सहमत नहीं
है तो ये कहाँ का लोकतंत्र हुआ और कैसा एक तरफ़ा राष्ट्रवाद है?
देशद्रोह कानून कि अगर बात करे तो ये एक उपनिवेशिक
कानून है जिसे भारत ने ऐसा का ऐसा अपना लिया जिसके अनुसार सरकार के खिलाफ कुछ
लिखना बोलना,छापना देशद्रोह है पर आज तक ब्रिटेन ने अपने किसी नागरिक पर देशद्रोह
नहीं लगाया,अमेरिका और फ्रांस मे भी देशद्रोह कानून है पर वो केवल गैर नागरिकों के
लिए है। सुप्रिम कोर्ट ने अपनी देश्द्रोह कि व्याख्या मे कहा है जिससे
हिंसा हो वो देशद्रोह मे आता है तो ध्यान दीजिये कि रामजस मे जिन्होंने हिंसा कि
वे ही राष्ट्रवादी होने का दावा करते है और दुसरो को अराष्ट्रवादी बता रहे है।
अतः राष्ट्रवाद को राजनीतिक हथियार कि तरह उपयोग
नहीं किया जाना चाहिए और देश मे हर नागरिक जन्म से राष्ट्रवादी है और जो हिंसा
करते है और आतंकियों का साथ देते है वो वास्तव मे अराष्ट्रवादी है और इनका व्यापक
विरोध होना चाहिए। पर आप से असहमत होने पर किसी को भी अराष्ट्रवादी कह देना
किसी भी तरह से सही नहीं है।